< مارْکَح 10 >
اَنَنْتَرَں سَ تَتْسْتھاناتْ پْرَسْتھایَ یَرْدَّنَنَدْیاح پارے یِہُوداپْرَدیشَ اُپَسْتھِتَوانْ، تَتْرَ تَدَنْتِکے لوکاناں سَماگَمے جاتے سَ نِجَرِیتْیَنُسارینَ پُنَسْتانْ اُپَدِدیشَ۔ | 1 |
अनन्तरं स तत्स्थानात् प्रस्थाय यर्द्दननद्याः पारे यिहूदाप्रदेश उपस्थितवान्, तत्र तदन्तिके लोकानां समागमे जाते स निजरीत्यनुसारेण पुनस्तान् उपदिदेश।
تَدا پھِرُوشِنَسْتَتْسَمِیپَمْ ایتْیَ تَں پَرِیکْشِتُں پَپْرَچّھَح سْوَجایا مَنُجاناں تْیَجْیا نَ ویتِ؟ | 2 |
तदा फिरूशिनस्तत्समीपम् एत्य तं परीक्षितुं पप्रच्छः स्वजाया मनुजानां त्यज्या न वेति?
تَتَح سَ پْرَتْیَوادِیتْ، اَتْرَ کارْیّے مُوسا یُشْمانْ پْرَتِ کِماجْناپَیَتْ؟ | 3 |
ततः स प्रत्यवादीत्, अत्र कार्य्ये मूसा युष्मान् प्रति किमाज्ञापयत्?
تَ اُوچُح تْیاگَپَتْرَں لیکھِتُں سْوَپَتْنِیں تْیَکْتُنْچَ مُوسانُمَنْیَتے۔ | 4 |
त ऊचुः त्यागपत्रं लेखितुं स्वपत्नीं त्यक्तुञ्च मूसाऽनुमन्यते।
تَدا یِیشُح پْرَتْیُواچَ، یُشْماکَں مَنَساں کاٹھِنْیادّھیتو رْمُوسا نِدیشَمِمَمْ اَلِکھَتْ۔ | 5 |
तदा यीशुः प्रत्युवाच, युष्माकं मनसां काठिन्याद्धेतो र्मूसा निदेशमिमम् अलिखत्।
کِنْتُ سرِشْٹیرادَو اِیشْوَرو نَرانْ پُںرُوپینَ سْتْرِیرُوپینَ چَ سَسَرْجَ۔ | 6 |
किन्तु सृष्टेरादौ ईश्वरो नरान् पुंरूपेण स्त्रीरूपेण च ससर्ज।
"تَتَح کارَناتْ پُمانْ پِتَرَں ماتَرَنْچَ تْیَکْتْوا سْوَجایایامْ آسَکْتو بھَوِشْیَتِ، | 7 |
"ततः कारणात् पुमान् पितरं मातरञ्च त्यक्त्वा स्वजायायाम् आसक्तो भविष्यति,
تَو دْواوْ ایکانْگَو بھَوِشْیَتَح۔ " تَسْماتْ تَتْکالَمارَبھْیَ تَو نَ دْواوْ ایکانْگَو۔ | 8 |
तौ द्वाव् एकाङ्गौ भविष्यतः।" तस्मात् तत्कालमारभ्य तौ न द्वाव् एकाङ्गौ।
اَتَح کارَنادْ اِیشْوَرو یَدَیوجَیَتْ کوپِ نَرَسْتَنَّ وِییجَییتْ۔ | 9 |
अतः कारणाद् ईश्वरो यदयोजयत् कोपि नरस्तन्न वियेजयेत्।
اَتھَ یِیشُ رْگرِہَں پْرَوِشْٹَسْتَدا شِشْیاح پُنَسْتَتْکَتھاں تَں پَپْرَچّھُح۔ | 10 |
अथ यीशु र्गृहं प्रविष्टस्तदा शिष्याः पुनस्तत्कथां तं पप्रच्छुः।
تَتَح سووَدَتْ کَشْچِدْ یَدِ سْوَبھارْیّاں تْیَکْتَوانْیامْ اُدْوَہَتِ تَرْہِ سَ سْوَبھارْیّایاح پْراتِکُولْیینَ وْیَبھِچارِی بھَوَتِ۔ | 11 |
ततः सोवदत् कश्चिद् यदि स्वभार्य्यां त्यक्तवान्याम् उद्वहति तर्हि स स्वभार्य्यायाः प्रातिकूल्येन व्यभिचारी भवति।
کاچِنّارِی یَدِ سْوَپَتِں ہِتْوانْیَپُںسا وِواہِتا بھَوَتِ تَرْہِ ساپِ وْیَبھِچارِنِی بھَوَتِ۔ | 12 |
काचिन्नारी यदि स्वपतिं हित्वान्यपुंसा विवाहिता भवति तर्हि सापि व्यभिचारिणी भवति।
اَتھَ سَ یَتھا شِشُونْ سْپرِشیتْ، تَدَرْتھَں لوکَیسْتَدَنْتِکَں شِشَوَ آنِییَنْتَ، کِنْتُ شِشْیاسْتانانِیتَوَتَسْتَرْجَیاماسُح۔ | 13 |
अथ स यथा शिशून् स्पृशेत्, तदर्थं लोकैस्तदन्तिकं शिशव आनीयन्त, किन्तु शिष्यास्तानानीतवतस्तर्जयामासुः।
یِیشُسْتَدْ درِشْٹْوا کْرُدھْیَنْ جَگادَ، مَنِّکَٹَمْ آگَنْتُں شِشُونْ ما وارَیَتَ، یَتَ ایتادرِشا اِیشْوَرَراجْیادھِکارِنَح۔ | 14 |
यीशुस्तद् दृष्ट्वा क्रुध्यन् जगाद, मन्निकटम् आगन्तुं शिशून् मा वारयत, यत एतादृशा ईश्वरराज्याधिकारिणः।
یُشْمانَہَں یَتھارْتھَں وَچْمِ، یَح کَشْچِتْ شِشُوَدْ بھُوتْوا راجْیَمِیشْوَرَسْیَ نَ گرِہْلِییاتْ سَ کَداپِ تَدْراجْیَں پْرَویشْٹُں نَ شَکْنوتِ۔ | 15 |
युष्मानहं यथार्थं वच्मि, यः कश्चित् शिशुवद् भूत्वा राज्यमीश्वरस्य न गृह्लीयात् स कदापि तद्राज्यं प्रवेष्टुं न शक्नोति।
اَنَنَتَرَں سَ شِشُونَنْکے نِدھایَ تیشاں گاتْریشُ ہَسْتَو دَتّواشِشَں بَبھاشے۔ | 16 |
अननतरं स शिशूनङ्के निधाय तेषां गात्रेषु हस्तौ दत्त्वाशिषं बभाषे।
اَتھَ سَ وَرْتْمَنا یاتِ، ایتَرْہِ جَنَ ایکو دھاوَنْ آگَتْیَ تَتْسَمُّکھے جانُنِی پاتَیِتْوا پرِشْٹَوانْ، بھوح پَرَمَگُرو، اَنَنْتایُح پْراپْتَیے مَیا کِں کَرْتَّوْیَں؟ (aiōnios ) | 17 |
अथ स वर्त्मना याति, एतर्हि जन एको धावन् आगत्य तत्सम्मुखे जानुनी पातयित्वा पृष्टवान्, भोः परमगुरो, अनन्तायुः प्राप्तये मया किं कर्त्तव्यं? (aiōnios )
تَدا یِیشُرُواچَ، ماں پَرَمَں کُتو وَدَسِ؟ وِنیشْوَرَں کوپِ پَرَمو نَ بھَوَتِ۔ | 18 |
तदा यीशुरुवाच, मां परमं कुतो वदसि? विनेश्वरं कोपि परमो न भवति।
پَرَسْتْرِیں نابھِگَچّھَ؛ نَرَں ما گھاتَیَ؛ سْتییَں ما کُرُ؛ مرِشاساکْشْیَں ما دیہِ؛ ہِںسانْچَ ما کُرُ؛ پِتَرَو سَمَّنْیَسْوَ؛ نِدیشا ایتے تْوَیا جْناتاح۔ | 19 |
परस्त्रीं नाभिगच्छ; नरं मा घातय; स्तेयं मा कुरु; मृषासाक्ष्यं मा देहि; हिंसाञ्च मा कुरु; पितरौ सम्मन्यस्व; निदेशा एते त्वया ज्ञाताः।
تَتَسْتَنَ پْرَتْیُکْتَں، ہے گُرو بالْیَکالادَہَں سَرْوّانیتانْ آچَرامِ۔ | 20 |
ततस्तन प्रत्युक्तं, हे गुरो बाल्यकालादहं सर्व्वानेतान् आचरामि।
تَدا یِیشُسْتَں وِلوکْیَ سْنیہینَ بَبھاشے، تَوَیکَسْیابھاوَ آسْتے؛ تْوَں گَتْوا سَرْوَّسْوَں وِکْرِییَ دَرِدْریبھْیو وِشْرانَیَ، تَتَح سْوَرْگے دھَنَں پْراپْسْیَسِ؛ تَتَح پَرَمْ ایتْیَ کْرُشَں وَہَنْ مَدَنُوَرْتِّی بھَوَ۔ | 21 |
तदा यीशुस्तं विलोक्य स्नेहेन बभाषे, तवैकस्याभाव आस्ते; त्वं गत्वा सर्व्वस्वं विक्रीय दरिद्रेभ्यो विश्राणय, ततः स्वर्गे धनं प्राप्स्यसि; ततः परम् एत्य क्रुशं वहन् मदनुवर्त्ती भव।
کِنْتُ تَسْیَ بَہُسَمْپَدْوِدْیَمانَتْواتْ سَ اِماں کَتھاماکَرْنْیَ وِشَنو دُحکھِتَشْچَ سَنْ جَگامَ۔ | 22 |
किन्तु तस्य बहुसम्पद्विद्यमानत्वात् स इमां कथामाकर्ण्य विषणो दुःखितश्च सन् जगाम।
اَتھَ یِیشُشْچَتُرْدِشو نِرِیکْشْیَ شِشْیانْ اَوادِیتْ، دھَنِلوکانامْ اِیشْوَرَراجْیَپْرَویشَح کِیدرِگْ دُشْکَرَح۔ | 23 |
अथ यीशुश्चतुर्दिशो निरीक्ष्य शिष्यान् अवादीत्, धनिलोकानाम् ईश्वरराज्यप्रवेशः कीदृग् दुष्करः।
تَسْیَ کَتھاتَح شِشْیاشْچَمَچَّکْرُح، کِنْتُ سَ پُنَرَوَدَتْ، ہے بالَکا یے دھَنے وِشْوَسَنْتِ تیشامْ اِیشْوَرَراجْیَپْرَویشَح کِیدرِگْ دُشْکَرَح۔ | 24 |
तस्य कथातः शिष्याश्चमच्चक्रुः, किन्तु स पुनरवदत्, हे बालका ये धने विश्वसन्ति तेषाम् ईश्वरराज्यप्रवेशः कीदृग् दुष्करः।
اِیشْوَرَراجْیے دھَنِناں پْرَویشاتْ سُوچِرَنْدھْرینَ مَہانْگَسْیَ گَمَناگَمَنَں سُکَرَں۔ | 25 |
ईश्वरराज्ये धनिनां प्रवेशात् सूचिरन्ध्रेण महाङ्गस्य गमनागमनं सुकरं।
تَدا شِشْیا اَتِیوَ وِسْمِتاح پَرَسْپَرَں پْروچُح، تَرْہِ کَح پَرِتْرانَں پْراپْتُں شَکْنوتِ؟ | 26 |
तदा शिष्या अतीव विस्मिताः परस्परं प्रोचुः, तर्हि कः परित्राणं प्राप्तुं शक्नोति?
تَتو یِیشُسْتانْ وِلوکْیَ بَبھاشے، تَنْ نَرَسْیاسادھْیَں کِنْتُ نیشْوَرَسْیَ، یَتو ہیتورِیشْوَرَسْیَ سَرْوَّں سادھْیَمْ۔ | 27 |
ततो यीशुस्तान् विलोक्य बभाषे, तन् नरस्यासाध्यं किन्तु नेश्वरस्य, यतो हेतोरीश्वरस्य सर्व्वं साध्यम्।
تَدا پِتَرَ اُواچَ، پَشْیَ وَیَں سَرْوَّں پَرِتْیَجْیَ بھَوَتونُگامِنو جاتاح۔ | 28 |
तदा पितर उवाच, पश्य वयं सर्व्वं परित्यज्य भवतोनुगामिनो जाताः।
تَتو یِیشُح پْرَتْیَوَدَتْ، یُشْمانَہَں یَتھارْتھَں وَدامِ، مَدَرْتھَں سُسَںوادارْتھَں وا یو جَنَح سَدَنَں بھْراتَرَں بھَگِنِیں پِتَرَں ماتَرَں جایاں سَنْتانانْ بھُومِ وا تْیَکْتْوا | 29 |
ततो यीशुः प्रत्यवदत्, युष्मानहं यथार्थं वदामि, मदर्थं सुसंवादार्थं वा यो जनः सदनं भ्रातरं भगिनीं पितरं मातरं जायां सन्तानान् भूमि वा त्यक्त्वा
گرِہَبھْراترِبھَگِنِیپِترِماترِپَتْنِیسَنْتانَبھُومِینامِہَ شَتَگُنانْ پْریتْیانَنْتایُشْچَ نَ پْراپْنوتِ تادرِشَح کوپِ ناسْتِ۔ (aiōn , aiōnios ) | 30 |
गृहभ्रातृभगिनीपितृमातृपत्नीसन्तानभूमीनामिह शतगुणान् प्रेत्यानन्तायुश्च न प्राप्नोति तादृशः कोपि नास्ति। (aiōn , aiōnios )
کِنْتْوَگْرِییا اَنیکے لوکاح شیشاح، شیشِییا اَنیکے لوکاشْچاگْرا بھَوِشْیَنْتِ۔ | 31 |
किन्त्वग्रीया अनेके लोकाः शेषाः, शेषीया अनेके लोकाश्चाग्रा भविष्यन्ति।
اَتھَ یِرُوشالَمْیانَکالے یِیشُسْتیشامْ اَگْرَگامِی بَبھُووَ، تَسْماتّے چِتْرَں جْناتْوا پَشْچادْگامِنو بھُوتْوا بِبھْیُح۔ تَدا سَ پُنَ رْدْوادَشَشِشْیانْ گرِہِیتْوا سْوِییَں یَدْیَدْ گھَٹِشْیَتے تَتَّتْ تیبھْیَح کَتھَیِتُں پْراریبھے؛ | 32 |
अथ यिरूशालम्यानकाले यीशुस्तेषाम् अग्रगामी बभूव, तस्मात्ते चित्रं ज्ञात्वा पश्चाद्गामिनो भूत्वा बिभ्युः। तदा स पुन र्द्वादशशिष्यान् गृहीत्वा स्वीयं यद्यद् घटिष्यते तत्तत् तेभ्यः कथयितुं प्रारेभे;
پَشْیَتَ وَیَں یِرُوشالَمْپُرَں یامَح، تَتْرَ مَنُشْیَپُتْرَح پْرَدھانَیاجَکانامْ اُپادھْیایانانْچَ کَریشُ سَمَرْپَیِشْیَتے؛ تے چَ وَدھَدَنْڈاجْناں داپَیِتْوا پَرَدیشِییاناں کَریشُ تَں سَمَرْپَیِشْیَنْتِ۔ | 33 |
पश्यत वयं यिरूशालम्पुरं यामः, तत्र मनुष्यपुत्रः प्रधानयाजकानाम् उपाध्यायानाञ्च करेषु समर्पयिष्यते; ते च वधदण्डाज्ञां दापयित्वा परदेशीयानां करेषु तं समर्पयिष्यन्ति।
تے تَمُپَہَسْیَ کَشَیا پْرَہرِتْیَ تَدْوَپُشِ نِشْٹھِیوَں نِکْشِپْیَ تَں ہَنِشْیَنْتِ، تَتَح سَ ترِتِییَدِنے پْروتّھاسْیَتِ۔ | 34 |
ते तमुपहस्य कशया प्रहृत्य तद्वपुषि निष्ठीवं निक्षिप्य तं हनिष्यन्ति, ततः स तृतीयदिने प्रोत्थास्यति।
تَتَح سِوَدیح پُتْرَو یاکُوبْیوہَنَو تَدَنْتِکَمْ ایتْیَ پْروچَتُح، ہے گُرو یَدْ آوابھْیاں یاچِشْیَتے تَدَسْمَدَرْتھَں بھَوانْ کَروتُ نِویدَنَمِدَماوَیوح۔ | 35 |
ततः सिवदेः पुत्रौ याकूब्योहनौ तदन्तिकम् एत्य प्रोचतुः, हे गुरो यद् आवाभ्यां याचिष्यते तदस्मदर्थं भवान् करोतु निवेदनमिदमावयोः।
تَتَح سَ کَتھِتَوانْ، یُواں کِمِچّھَتھَح؟ کِں مَیا یُشْمَدَرْتھَں کَرَنِییَں؟ | 36 |
ततः स कथितवान्, युवां किमिच्छथः? किं मया युष्मदर्थं करणीयं?
تَدا تَو پْروچَتُح، آوَیوریکَں دَکْشِنَپارْشْوے وامَپارْشْوے چَیکَں تَوَیشْوَرْیَّپَدے سَمُپَویشْٹُمْ آجْناپَیَ۔ | 37 |
तदा तौ प्रोचतुः, आवयोरेकं दक्षिणपार्श्वे वामपार्श्वे चैकं तवैश्वर्य्यपदे समुपवेष्टुम् आज्ञापय।
کِنْتُ یِیشُح پْرَتْیُواچَ یُوامَجْناتْویدَں پْرارْتھَییتھے، یینَ کَںسیناہَں پاسْیامِ تینَ یُوابھْیاں کِں پاتُں شَکْشْیَتے؟ یَسْمِنْ مَجَّنیناہَں مَجِّشْیے تَنْمَجَّنے مَجَّیِتُں کِں یُوابھْیاں شَکْشْیَتے؟ تَو پْرَتْیُوچَتُح شَکْشْیَتے۔ | 38 |
किन्तु यीशुः प्रत्युवाच युवामज्ञात्वेदं प्रार्थयेथे, येन कंसेनाहं पास्यामि तेन युवाभ्यां किं पातुं शक्ष्यते? यस्मिन् मज्जनेनाहं मज्जिष्ये तन्मज्जने मज्जयितुं किं युवाभ्यां शक्ष्यते? तौ प्रत्यूचतुः शक्ष्यते।
تَدا یِیشُرَوَدَتْ یینَ کَںسیناہَں پاسْیامِ تیناوَشْیَں یُوامَپِ پاسْیَتھَح، یینَ مَجَّنینَ چاہَں مَجِّیّے تَتْرَ یُوامَپِ مَجِّشْییتھے۔ | 39 |
तदा यीशुरवदत् येन कंसेनाहं पास्यामि तेनावश्यं युवामपि पास्यथः, येन मज्जनेन चाहं मज्जिय्ये तत्र युवामपि मज्जिष्येथे।
کِنْتُ ییشامَرْتھَمْ اِدَں نِرُوپِتَں، تانْ وِہایانْیَں کَمَپِ مَمَ دَکْشِنَپارْشْوے وامَپارْشْوے وا سَمُپَویشَیِتُں مَمادھِکارو ناسْتِ۔ | 40 |
किन्तु येषामर्थम् इदं निरूपितं, तान् विहायान्यं कमपि मम दक्षिणपार्श्वे वामपार्श्वे वा समुपवेशयितुं ममाधिकारो नास्ति।
اَتھانْیَدَشَشِشْیا اِماں کَتھاں شْرُتْوا یاکُوبْیوہَنْبھْیاں چُکُپُح۔ | 41 |
अथान्यदशशिष्या इमां कथां श्रुत्वा याकूब्योहन्भ्यां चुकुपुः।
کِنْتُ یِیشُسْتانْ سَماہُویَ بَبھاشے، اَنْیَدیشِییاناں راجَتْوَں یے کُرْوَّنْتِ تے تیشامیوَ پْرَبھُتْوَں کُرْوَّنْتِ، تَتھا یے مَہالوکاسْتے تیشامْ اَدھِپَتِتْوَں کُرْوَّنْتِیتِ یُویَں جانِیتھَ۔ | 42 |
किन्तु यीशुस्तान् समाहूय बभाषे, अन्यदेशीयानां राजत्वं ये कुर्व्वन्ति ते तेषामेव प्रभुत्वं कुर्व्वन्ति, तथा ये महालोकास्ते तेषाम् अधिपतित्वं कुर्व्वन्तीति यूयं जानीथ।
کِنْتُ یُشْماکَں مَدھْیے نَ تَتھا بھَوِشْیَتِ، یُشْماکَں مَدھْیے یَح پْرادھانْیَں وانْچھَتِ سَ یُشْماکَں سیوَکو بھَوِشْیَتِ، | 43 |
किन्तु युष्माकं मध्ये न तथा भविष्यति, युष्माकं मध्ये यः प्राधान्यं वाञ्छति स युष्माकं सेवको भविष्यति,
یُشْماکَں یو مَہانْ بھَوِتُمِچّھَتِ سَ سَرْوّیشاں کِنْکَرو بھَوِشْیَتِ۔ | 44 |
युष्माकं यो महान् भवितुमिच्छति स सर्व्वेषां किङ्करो भविष्यति।
یَتو مَنُشْیَپُتْرَح سیوْیو بھَوِتُں ناگَتَح سیواں کَرْتّاں تَتھانیکیشاں پَرِتْرانَسْیَ مُولْیَرُوپَسْوَپْرانَں داتُنْچاگَتَح۔ | 45 |
यतो मनुष्यपुत्रः सेव्यो भवितुं नागतः सेवां कर्त्तां तथानेकेषां परित्राणस्य मूल्यरूपस्वप्राणं दातुञ्चागतः।
اَتھَ تے یِرِیہونَگَرَں پْراپْتاسْتَسْماتْ شِشْیَے رْلوکَیشْچَ سَہَ یِیشو رْگَمَنَکالے ٹِیمَیَسْیَ پُتْرو بَرْٹِیمَیَناما اَنْدھَسْتَنْمارْگَپارْشْوے بھِکْشارْتھَمْ اُپَوِشْٹَح۔ | 46 |
अथ ते यिरीहोनगरं प्राप्तास्तस्मात् शिष्यै र्लोकैश्च सह यीशो र्गमनकाले टीमयस्य पुत्रो बर्टीमयनामा अन्धस्तन्मार्गपार्श्वे भिक्षार्थम् उपविष्टः।
سَ ناسَرَتِییَسْیَ یِیشوراگَمَنَوارْتّاں پْراپْیَ پْروچَے رْوَکْتُماریبھے، ہے یِیشو دایُودَح سَنْتانَ ماں دَیَسْوَ۔ | 47 |
स नासरतीयस्य यीशोरागमनवार्त्तां प्राप्य प्रोचै र्वक्तुमारेभे, हे यीशो दायूदः सन्तान मां दयस्व।
تَتونیکے لوکا مَونِیبھَویتِ تَں تَرْجَیاماسُح، کِنْتُ سَ پُنَرَدھِکَمُچَّے رْجَگادَ، ہے یِیشو دایُودَح سَنْتانَ ماں دَیَسْوَ۔ | 48 |
ततोनेके लोका मौनीभवेति तं तर्जयामासुः, किन्तु स पुनरधिकमुच्चै र्जगाद, हे यीशो दायूदः सन्तान मां दयस्व।
تَدا یِیشُح سْتھِتْوا تَماہْواتُں سَمادِدیشَ، تَتو لوکاسْتَمَنْدھَماہُویَ بَبھاشِرے، ہے نَرَ، سْتھِرو بھَوَ، اُتِّشْٹھَ، سَ تْواماہْوَیَتِ۔ | 49 |
तदा यीशुः स्थित्वा तमाह्वातुं समादिदेश, ततो लोकास्तमन्धमाहूय बभाषिरे, हे नर, स्थिरो भव, उत्तिष्ठ, स त्वामाह्वयति।
تَدا سَ اُتَّرِییَوَسْتْرَں نِکْشِپْیَ پْروتّھایَ یِیشوح سَمِیپَں گَتَح۔ | 50 |
तदा स उत्तरीयवस्त्रं निक्षिप्य प्रोत्थाय यीशोः समीपं गतः।
تَتو یِیشُسْتَمَوَدَتْ تْوَیا کِں پْرارْتھْیَتے؟ تُبھْیَمَہَں کِں کَرِشْیامِی؟ تَدا سونْدھَسْتَمُواچَ، ہے گُرو مَدِییا درِشْٹِرْبھَویتْ۔ | 51 |
ततो यीशुस्तमवदत् त्वया किं प्रार्थ्यते? तुभ्यमहं किं करिष्यामी? तदा सोन्धस्तमुवाच, हे गुरो मदीया दृष्टिर्भवेत्।
تَتو یِیشُسْتَمُواچَ یاہِ تَوَ وِشْواسَسْتْواں سْوَسْتھَمَکارْشِیتْ، تَسْماتْ تَتْکْشَنَں سَ درِشْٹِں پْراپْیَ پَتھا یِیشوح پَشْچادْ یَیَو۔ | 52 |
ततो यीशुस्तमुवाच याहि तव विश्वासस्त्वां स्वस्थमकार्षीत्, तस्मात् तत्क्षणं स दृष्टिं प्राप्य पथा यीशोः पश्चाद् ययौ।