< यहेजकेल 12 >
1 १ फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा,
Das Wort des Herrn erging an mich:
2 २ “हे मनुष्य के सन्तान, तू बलवा करनेवाले घराने के बीच में रहता है, जिनके देखने के लिये आँखें तो हैं, परन्तु नहीं देखते; और सुनने के लिये कान तो हैं परन्तु नहीं सुनते; क्योंकि वे बलवा करनेवाले घराने के हैं।
"Hör, Menschensohn! Du wohnst im Haus der Widerspenstigkeit bei solchen, die zum Sehen Augen haben und doch nicht sehen, zum Hören Ohren, die jedoch nicht hören. Sie sind ein Haus der Widerspenstigkeit.
3 ३ इसलिए हे मनुष्य के सन्तान, दिन को बँधुआई का सामान तैयार करके उनके देखते हुए उठ जाना, उनके देखते हुए अपना स्थान छोड़कर दूसरे स्थान को जाना। यद्यपि वे बलवा करनेवाले घराने के हैं, तो भी सम्भव है कि वे ध्यान दें।
Du aber, Menschensohn, mach dir ein Reisebündel und zieh bei Tag vor ihren Augen weg! Vor ihren Augen sollst du dann von einem Ort zum andern ziehen! Vielleicht, daß sie dabei zur Einsicht kommen, was für ein Haus der Widerspenstigkeit sie sind.
4 ४ इसलिए तू दिन को उनके देखते हुए बँधुआई के सामान को निकालना, और तब तू साँझ को बँधुआई में जानेवाले के समान उनके देखते हुए उठ जाना।
Trag deine Habe als ein Reisebündel fort bei Tag vor ihren Augen, wie man's beim Auszug macht!
5 ५ उनके देखते हुए दीवार को फोड़कर उसी से अपना सामान निकालना।
Vor ihren Augen grab dir durch die Wand ein Loch, und trag es so hindurch
6 ६ उनके देखते हुए उसे अपने कंधे पर उठाकर अंधेरे में निकालना, और अपना मुँह ढाँपे रहना कि भूमि तुझे न देख पड़े; क्योंकि मैंने तुझे इस्राएल के घराने के लिये एक चिन्ह ठहराया है।”
Vor ihren Augen nimm's dann auf die Schulter und bring's im Dunkeln fort! Verhüll dein Angesicht dabei, daß du das Land nicht siehst! Zu einem Wahrzeichen des Hauses Israel mache ich dich."
7 ७ उस आज्ञा के अनुसार मैंने वैसा ही किया। दिन को मैंने अपना सामान बँधुआई के सामान के समान निकाला, और साँझ को अपने हाथ से दीवार को फोड़ा; फिर अंधेरे में सामान को निकालकर, उनके देखते हुए अपने कंधे पर उठाए हुए चला गया।
Ich tat, wie mir befohlen ward. Ich trug als Reisebündel meine Habe fort bei Tag, und ich ich durchgrub am Abend mit der Hand die Wand. Im Dunkeln trug ich's fort und nahm's vor ihren Augen auf die Schulter.
8 ८ सवेरे यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा,
Darauf erging das Wort des Herrn an mich am andern Morgen:
9 ९ “हे मनुष्य के सन्तान, क्या इस्राएल के घराने ने अर्थात् उस बलवा करनेवाले घराने ने तुझ से यह नहीं पूछा, ‘यह तू क्या करता है?’
"Du Menschensohn! Hat dich nicht das Haus Israel, das Haus der Widerspenstigkeit, gefragt: 'Was machst du da?'
10 १० तू उनसे कह, ‘प्रभु यहोवा यह कहता है: यह प्रभावशाली वचन यरूशलेम के प्रधान पुरुष और इस्राएल के सारे घराने के विषय में है जिसके बीच में वे रहते हैं।’
Sag ihnen: Also spricht der Herr, der Herr: 'Dies Schleppen gilt dem Fürsten in Jerusalem sowie dem ganzen Hause Israel, das drinnen wohnt.'
11 ११ तू उनसे कह, ‘मैं तुम्हारे लिये चिन्ह हूँ; जैसा मैंने किया है, वैसा ही इस्राएली लोगों से भी किया जाएगा; उनको उठकर बँधुआई में जाना पड़ेगा।’
Dann sprich: 'Ich muß zum Wahrzeichen euch dienen. Wie ich getan, so geht's auch ihnen. Sie müssen in Verbannung ziehen und Gefangenschaft.
12 १२ उनके बीच में जो प्रधान है, वह अंधेरे में अपने कंधे पर बोझ उठाए हुए निकलेगा; वह अपना सामान निकालने के लिये दीवार को फोड़ेगा, और अपना मुँह ढाँपे रहेगा कि उसको भूमि न देख पड़े।
Der Fürst in ihrer Mitte aber zieht im Dunkeln mit dem Bündel auf der Schulter fort. Zu seinem Abzug läßt man ihm die Wand durchbrechen. Dabei verhüllt er sein Gesicht. Er schaut das Land mit seinen Augen nimmer wieder.'
13 १३ और मैं उस पर अपना जाल फैलाऊँगा, और वह मेरे फंदे में फँसेगा; और मैं उसे कसदियों के देश के बाबेल में पहुँचा दूँगा; यद्यपि वह उस नगर में मर जाएगा, तो भी उसको न देखेगा।
Denn ich umstricke ihn mit meinem Netz; in meinem Garn soll er sich fangen. Ich bringe ihn nach Babel ins Chaldäerland. Das soll er zwar nicht sehen, aber dennoch in ihm sterben.
14 १४ जितने उसके सहायक उसके आस-पास होंगे, उनको और उसकी सारी टोलियों को मैं सब दिशाओं में तितर-बितर कर दूँगा; और तलवार खींचकर उनके पीछे चलवाऊँगा।
Was um ihn ist, all seine Dienerschaft und alle seine Scharen zerstreue ich in alle Winde und halte noch das Schwert gezogen hinter ihnen.
15 १५ जब मैं उन्हें जाति-जाति में तितर-बितर कर दूँगा, और देश-देश में छिन्न भिन्न कर दूँगा, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Dann wissen sie, daß ich der Herr bin, wenn ich sie unter diese Heiden hab' zerstreut und in die Länder sie versprengt.
16 १६ परन्तु मैं उनमें से थोड़े से लोगों को तलवार, भूख और मरी से बचा रखूँगा; और वे अपने घृणित काम उन जातियों में बखान करेंगे जिनके बीच में वे पहुँचेंगे; तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।”
Nur wenige laß ich von ihnen übrig, verschont vom Schwert, vom Hunger, von der Pest. Sie sollen alle ihre Greuel den Heiden eingestehn, wohin sie kommen, und dann erkennen, daß ich der Herr.'"
17 १७ तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा,
Darauf erging das Wort des Herrn an mich:
18 १८ “हे मनुष्य के सन्तान, काँपते हुए अपनी रोटी खाना और थरथराते और चिन्ता करते हुए अपना पानी पीना;
"Ach, Menschensohn! Nun iß dein Brot mit Zittern! Dein Wasser trink in Angst und Sorgen
19 १९ और इस देश के लोगों से यह कहना, कि प्रभु यहोवा यरूशलेम और इस्राएल के देश के निवासियों के विषय में यह कहता है, वे अपनी रोटी चिन्ता के साथ खाएँगे, और अपना पानी विस्मय के साथ पीएँगे; क्योंकि देश अपने सब रहनेवालों के उपद्रव के कारण अपनी सारी भरपूरी से रहित हो जाएगा।
und sprich zum Volk des Landes: 'So spricht der Herr, der Herr, von denen, die Jerusalem im Lande Israel bewohnen: In Sorgen werden sie ihr Brot verzehren, mit Angst ihr Wasser trinken. Von Grund aus wird ihr Land verwüstet um des Frevels willen, den die verübt, die es bewohnt.
20 २० बसे हुए नगर उजड़ जाएँगे, और देश भी उजाड़ हो जाएगा; तब तुम लोग जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।”
Und die bewohnten Städte werden öde; das Land wird eine Wüste, daß ihr es erkennt: Ich bin der Herr.'"
21 २१ फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा,
Das Wort des Herrn erging an mich:
22 २२ “हे मनुष्य के सन्तान यह क्या कहावत है जो तुम लोग इस्राएल के देश में कहा करते हो, ‘दिन अधिक हो गए हैं, और दर्शन की कोई बात पूरी नहीं हुई?’
"Sag, Menschensohn! Was habt ihr da für einen Spruch im Lande Israel: 'Die Zeit verzieht sich; doch kein Gesicht trifft ein.'
23 २३ इसलिए उनसे कह, ‘प्रभु यहोवा यह कहता है: मैं इस कहावत को बन्द करूँगा; और यह कहावत इस्राएल पर फिर न चलेगी।’ और तू उनसे कह कि वह दिन निकट आ गया है, और दर्शन की सब बातें पूरी होने पर हैं।
Drum sag zu ihnen: 'Also spricht der Herr, der Herr: Ich mache diesem Spruch ein Ende, daß sie in Israel ihn länger nicht gebrauchen.' So sag zu ihnen: 'Die Tage kommen schon heran mit der Erfüllung jeglichen Gesichtes!
24 २४ क्योंकि इस्राएल के घराने में न तो और अधिक झूठे दर्शन की कोई बात और न कोई चिकनी-चुपड़ी बात फिर कही जाएगी।
Denn fürderhin heißt kein Gesicht mehr falsch und keine Prophezeiung trügerisch im Hause Israel.
25 २५ क्योंकि मैं यहोवा हूँ; जब मैं बोलूँ, तब जो वचन मैं कहूँ, वह पूरा हो जाएगा। उसमें विलम्ब न होगा, परन्तु, हे बलवा करनेवाले घराने तुम्हारे ही दिनों में मैं वचन कहूँगा, और वह पूरा हो जाएगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।”
Denn ich, der Herr, ich werde sprechen, und was ich spreche, wird geschehn. Nicht lange wird's verschoben. In euren Tagen, Haus der Widerspenstigkeit, vollziehe ich, was ich einst angedroht. Ein Spruch des Herrn, des Herrn.'"
26 २६ फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा,
Das Wort des Herrn erging an mich:
27 २७ “हे मनुष्य के सन्तान, देख, इस्राएल के घराने के लोग यह कह रहे हैं कि जो दर्शन वह देखता है, वह बहुत दिन के बाद पूरा होनेवाला है; और कि वह दूर के समय के विषय में भविष्यद्वाणी करता है।
"Hör, Menschensohn! Fürwahr, es sagt das Haus von Israel: 'Es geht auf späte Tage das Gesicht, das er geschaut; von fernen Zeiten hat er prophezeit.'
28 २८ इसलिए तू उनसे कह, प्रभु यहोवा यह कहता है: मेरे किसी वचन के पूरा होने में फिर विलम्ब न होगा, वरन् जो वचन मैं कहूँ, वह निश्चय पूरा होगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।”
Drum sprich zu ihnen: 'Also spricht der Herr, der Herr: Auf lange Zeit wird keines meiner Worte mehr verschoben; jetzt trifft ein, was ich verkünde.'" Ein Spruch des Herrn, des Herrn.