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I understand that the Aionian Bible republishes public domain and Creative Commons Bible texts and that volunteers may be needed to present the original text accurately. I also understand that apocryphal text is removed and most variant verse numbering is mapped to the English standard. I have entered my corrections under the verse(s) below. Proposed corrections to the Urdu Bible, Devanagari, Luke Chapter 2 https://www.AionianBible.org/Bibles/Urdu---Urdu-Bible/Luke/2 1) उन दिनों में ऐसा हुआ कि क़ैसर औगुस्तुस की तरफ़ से ये हुक्म जारी हुआ कि सारी दुनियाँ के लोगों के नाम लिखे जाएँ। 2) ये पहली इस्म नवीसी सूरिया के हाकिम कोरिन्युस के 'अहद में हुई। 3) और सब लोग नाम लिखवाने के लिए अपने — अपने शहर को गए। 4) पस यूसुफ़ भी गलील के शहर नासरत से दाऊद के शहर बैतलहम को गया जो यहूदिया में है, इसलिए कि वो दाऊद के घराने और औलाद से था। 5) ताकि अपनी होने वाली बीवी मरियम के साथ जो हामिला थी, नाम लिखवाए। 6) जब वो वहाँ थे तो ऐसा हुआ कि उसके वज़ा — ए — हम्ल का वक़्त आ पहुँचा, 7) और उसका पहलौठा बेटा पैदा हुआ और उसने उसको कपड़े में लपेट कर चरनी में रख्खा क्यूँकि उनके लिए सराय में जगह न थी। 8) उसी 'इलाक़े में चरवाहे थे, जो रात को मैदान में रहकर अपने गल्ले की निगहबानी कर रहे थे। 9) और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उनके पास आ खड़ा हुआ, और ख़ुदावन्द का जलाल उनके चारोंतरफ़ चमका, और वो बहुत डर गए। 10) मगर फ़रिश्ते ने उनसे कहा, डरो मत! क्यूँकि देखो, मैं तुम्हें बड़ी ख़ुशी की बशारत देता हूँ जो सारी उम्मत के वास्ते होगी, 11) कि आज दाऊद के शहर में तुम्हारे लिए एक मुन्जी पैदा हुआ है, या'नी मसीह ख़ुदावन्द। 12) इसका तुम्हारे लिए ये निशान है कि तुम एक बच्चे को कपड़े में लिपटा और चरनी में पड़ा हुआ पाओगे।' 13) और यकायक उस फ़रिश्ते के साथ आसमानी लश्कर की एक गिरोह ख़ुदा की हम्द करती और ये कहती ज़ाहिर हुई कि: 14) “'आलम — ए — बाला पर ख़ुदा की तम्जीद हो और ज़मीन पर आदमियों में जिनसे वो राज़ी है सुलह।” 15) जब फ़रिश्ते उनके पास से आसमान पर चले गए तो ऐसा हुआ कि चरवाहों ने आपस में कहा, “आओ, बैतलहम तक चलें और ये बात जो हुई है और जिसकी ख़ुदावन्द ने हम को ख़बर दी है देखें।” 16) पस उन्होंने जल्दी से जाकर मरियम और यूसुफ़ को देखा और इस बच्चे को चरनी में पड़ा पाया। 17) उन्हें देखकर वो बात जो उस लड़के के हक़ में उनसे कही गई थी मशहूर की, 18) और सब सुनने वालों ने इन बातों पर जो चरवाहों ने उनसे कहीं ता'ज्जुब किया। 19) मगर मरियम इन सब बातों को अपने दिल में रखकर ग़ौर करती रही। 20) और चरवाहे, जैसा उनसे कहा गया था वैसा ही सब कुछ सुन कर और देखकर ख़ुदा की तम्जीद और हम्द करते हुए लौट गए। 21) जब आठ दिन पुरे हुए और उसके ख़तने का वक़्त आया, तो उसका नाम ईसा रख्खा गया। जो फ़रिश्ते ने उसके रहम में पड़ने से पहले रख्खा था। 22) फिर जब मूसा की शरी'अत के मुवाफ़िक़ उनके पाक होने के दिन पुरे हो गए, तो वो उसको येरूशलेम में लाए ताकि ख़ुदावन्द के आगे हाज़िर करें 23) (जैसा कि ख़ुदावन्द की शरी'अत में लिखा है कि हर एक पहलौठा ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस ठहरेगा) 24) और ख़ुदावन्द की शरी'अत के इस क़ौल के मुवाफ़िक़ क़ुर्बानी करें, कि फ़ाख़्ता का एक जोड़ा या कबूतर के दो बच्चे लाओ। 25) और देखो, येरूशलेम में शमौन नाम एक आदमी था, और वो आदमी रास्तबाज़ और ख़ुदातरस और इस्राईल की तसल्ली का मुन्तज़िर था और रूह — उल — क़ुद्दूस उस पर था। 26) और उसको रूह — उल — क़ुद्दूस से अगवाही हुई थी कि जब तक तू ख़ुदावन्द के मसीह को देख न ले, मौत को न देखेगा। 27) वो रूह की हिदायत से हैकल में आया और जिस वक़्त माँ — बाप उस लड़के ईसा को अन्दर लाए ताकि उसके शरी'अत के दस्तूर पर 'अमल करें। 28) तो उसने उसे अपनी गोद में लिया और ख़ुदा की हम्द करके कहा: 29) “ऐ मालिक अब तू अपने ख़ादिम को अपने क़ौल के मुवाफ़िक़ सलामती से रुख़्सत करता है, 30) क्यूँकि मेरी आँखों ने तेरी नजात देख ली है, 31) जो तूने सब उम्मतों के रु — ब — रु तैयार की है, 32) ताकि ग़ैर क़ौमों को रौशनी देने वाला नूर और तेरी उम्मत इस्राईल का जलाल बने।” 33) और उसका बाप और उसकी माँ इन बातों पर जो उसके हक़ में कही जाती थीं, ता'ज्जुब करते थे। 34) और शमौन ने उनके लिए दु'आ — ए — ख़ैर की और उसकी माँ मरियम से कहा, “देख, ये इस्राईल में बहुतों के गिरने और उठने के लिए मुक़र्रर हुआ है, जिसकी मुख़ालिफ़त की जाएगी। 35) बल्कि तेरी जान भी तलवार से छिद जाएगी, ताकि बहुत लोगों के दिली ख़याल खुल जाएँ।” 36) और आशर के क़बीले में से हन्ना नाम फ़नूएल की बेटी एक नबीया थी — वो बहुत 'बूढ़ी थी — और उसने अपने कूँवारेपन के बाद सात बरस एक शौहर के साथ गुज़ारे थे। 37) वो चौरासी बरस से बेवा थी, और हैकल से जुदा न होती थी बल्कि रात दिन रोज़ों और दु'आओं के साथ इबादत किया करती थी। 38) और वो उसी घड़ी वहाँ आकर ख़ुदा का शुक्र करने लगी और उन सब से जो येरूशलेम के छुटकारे के मुन्तज़िर थे उसके बारे में बातें करने लगी। 39) और जब वो ख़ुदावन्द की शरी'अत के मुवाफ़िक़ सब कुछ कर चुके तो गलील में अपने शहर नासरत को लौट गए। 40) और वो लड़का बढ़ता और ताक़त पाता गया और हिक्मत से मा'मूर होता गया और ख़ुदा का फ़ज़ल उस पर था। 41) उसके माँ — बाप हर बरस 'ईद — ए — फ़सह पर येरूशलेम को जाया करते थे। 42) और जब वो बारह बरस का हुआ तो वो 'ईद के दस्तूर के मुवाफ़िक़ येरूशलेम को गए। 43) जब वो उन दिनों को पूरा करके लौटे तो वो लड़का ईसा येरूशलेम में रह गया — और उसके माँ — बाप को ख़बर न हुई। 44) मगर ये समझ कर कि वो क़ाफ़िले में है, एक मंज़िल निकल गए — और उसके रिश्तेदारों और उसके जान पहचानों में ढूँडने लगे। 45) जब न मिला तो उसे ढूँडते हुए येरूशलेम तक वापस गए। 46) और तीन रोज़ के बाद ऐसा हुआ कि उन्होंने उसे हैकल में उस्तादों के बीच में बैठा उनकी सुनते और उनसे सवाल करते हुए पाया। 47) जितने उसकी सुन रहे थे उसकी समझ और उसके जवाबों से दंग थे। 48) और वो उसे देखकर हैरान हुए। उसकी माँ ने उससे कहा, “बेटा, तू ने क्यूँ हम से ऐसा किया? देख तेरा बाप और मैं घबराते हुए तुझे ढूँडते थे?” 49) उसने उनसे कहा, “तुम मुझे क्यूँ ढूँडते थे? क्या तुम को मा'लूम न था कि मुझे अपने बाप के यहाँ होना ज़रूर है?” 50) मगर जो बात उसने उनसे कही उसे वो न समझे। 51) और वो उनके साथ रवाना होकर नासरत में आया और उनके साथ' रहा और उसकी माँ ने ये सब बातें अपने दिल में रख्खीं। 52) और ईसा हिक्मत और क़द — ओ — क़ियामत में और ख़ुदा की और इंसान की मक़बूलियत में तरक़्क़ी करता गया। Additional comments?
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