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I understand that the Aionian Bible republishes public domain and Creative Commons Bible texts and that volunteers may be needed to present the original text accurately. I also understand that apocryphal text is removed and most variant verse numbering is mapped to the English standard. I have entered my corrections under the verse(s) below. Proposed corrections to the Hindi Bible, Luke Chapter 14 https://www.AionianBible.org/Bibles/Hindi---Hindi-Bible/Luke/14 1 १) फिर वह सब्त के दिन फरीसियों के सरदारों में से किसी के घर में रोटी खाने गया: और वे उसकी घात में थे। 2 २) वहाँ एक मनुष्य उसके सामने था, जिसे जलोदर का रोग था। 3 ३) इस पर यीशु ने व्यवस्थापकों और फरीसियों से कहा, “क्या सब्त के दिन अच्छा करना उचित है, कि नहीं?” 4 ४) परन्तु वे चुपचाप रहे। तब उसने उसे हाथ लगाकर चंगा किया, और जाने दिया। 5 ५) और उनसे कहा, “तुम में से ऐसा कौन है, जिसका पुत्र या बैल कुएँ में गिर जाए और वह सब्त के दिन उसे तुरन्त बाहर न निकाल ले?” 6 ६) वे इन बातों का कुछ उत्तर न दे सके। 7 ७) जब उसने देखा, कि आमन्त्रित लोग कैसे मुख्य-मुख्य जगह चुन लेते हैं तो एक दृष्टान्त देकर उनसे कहा, 8 ८) “जब कोई तुझे विवाह में बुलाए, तो मुख्य जगह में न बैठना, कहीं ऐसा न हो, कि उसने तुझ से भी किसी बड़े को नेवता दिया हो। 9 ९) और जिसने तुझे और उसे दोनों को नेवता दिया है, आकर तुझ से कहे, ‘इसको जगह दे,’ और तब तुझे लज्जित होकर सबसे नीची जगह में बैठना पड़े। 10 १०) पर जब तू बुलाया जाए, तो सबसे नीची जगह जा बैठ, कि जब वह, जिसने तुझे नेवता दिया है आए, तो तुझ से कहे ‘हे मित्र, आगे बढ़कर बैठ,’ तब तेरे साथ बैठनेवालों के सामने तेरी बड़ाई होगी। 11 ११) क्योंकि जो कोई अपने आपको बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो कोई अपने आपको छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।” 12 १२) तब उसने अपने नेवता देनेवाले से भी कहा, “जब तू दिन का या रात का भोज करे, तो अपने मित्रों या भाइयों या कुटुम्बियों या धनवान पड़ोसियों को न बुला, कहीं ऐसा न हो, कि वे भी तुझे नेवता दें, और तेरा बदला हो जाए। 13 १३) परन्तु जब तू भोज करे, तो कंगालों, टुण्डों, लँगड़ों और अंधों को बुला। 14 १४) तब तू धन्य होगा, क्योंकि उनके पास तुझे बदला देने को कुछ नहीं, परन्तु तुझेधर्मियों के जी उठनेपर इसका प्रतिफल मिलेगा।” 15 १५) उसके साथ भोजन करनेवालों में से एक ने ये बातें सुनकर उससे कहा, “धन्य है वह, जो परमेश्वर के राज्य में रोटी खाएगा।” 16 १६) उसने उससे कहा, “किसी मनुष्य ने बड़ा भोज दिया और बहुतों को बुलाया। 17 १७) जब भोजन तैयार हो गया, तो उसने अपने दास के हाथ आमन्त्रित लोगों को कहला भेजा, ‘आओ; अब भोजन तैयार है।’ 18 १८) पर वे सब के सब क्षमा माँगने लगे, पहले ने उससे कहा, ‘मैंने खेत मोल लिया है, और अवश्य है कि उसे देखूँ; मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे क्षमा कर दे।’ 19 १९) दूसरे ने कहा, ‘मैंने पाँच जोड़े बैल मोल लिए हैं, और उन्हें परखने जा रहा हूँ; मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे क्षमा कर दे।’ 20 २०) एक और ने कहा, ‘मैंने विवाह किया है, इसलिए मैं नहीं आ सकता।’ 21 २१) उस दास ने आकर अपने स्वामी को ये बातें कह सुनाईं। तब घर के स्वामी ने क्रोध में आकर अपने दास से कहा, ‘नगर के बाजारों और गलियों में तुरन्त जाकर कंगालों, टुण्डों, लँगड़ों और अंधों को यहाँ ले आओ।’ 22 २२) दास ने फिर कहा, ‘हे स्वामी, जैसे तूने कहा था, वैसे ही किया गया है; फिर भी जगह है।’ 23 २३) स्वामी ने दास से कहा, ‘सड़कों पर और बाड़ों की ओर जाकर लोगों को बरबस ले ही आ ताकि मेरा घर भर जाए। 24 २४) क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, किउन आमन्त्रित लोगों में से कोई मेरे भोज को न चखेगा।’” 25 २५) और जब बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी, तो उसने पीछे फिरकर उनसे कहा। 26 २६) “यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्नी और बच्चों और भाइयों और बहनों वरन् अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता; 27 २७) और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता। 28 २८) “तुम में से कौन है कि गढ़ बनाना चाहता हो, और पहले बैठकर खर्च न जोड़े, कि पूरा करने की सामर्थ्य मेरे पास है कि नहीं? 29 २९) कहीं ऐसा न हो, कि जब नींव डालकर तैयार न कर सके, तो सब देखनेवाले यह कहकर उसका उपहास करेंगे, 30 ३०) ‘यह मनुष्य बनाने तो लगा, पर तैयार न कर सका?’ 31 ३१) या कौन ऐसा राजा है, कि दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो, और पहले बैठकर विचार न कर ले कि जो बीस हजार लेकर मुझ पर चढ़ा आता है, क्या मैं दस हजार लेकर उसका सामना कर सकता हूँ, कि नहीं? 32 ३२) नहीं तो उसके दूर रहते ही, वह दूत को भेजकर मिलाप करना चाहेगा। 33 ३३) इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता। 34 ३४) “नमक तो अच्छा है, परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा। 35 ३५) वह न तो भूमि के और न खाद के लिये काम में आता है: उसे तो लोग बाहर फेंक देते हैं। जिसके सुनने के कान हों वह सुन ले।” Additional comments?
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