< गज़लुल 8 >

1 काश कि तू मेरे भाई की तरह होता, जिसने मेरी माँ की छातियों से दूध पिया। मैं जब तुझे बाहर पाती, तो तेरी मच्छियाँ लेती, और कोई मुझे हक़ीर न जानता।
(الْمَحْبُوبَةُ): لَيْتَكَ كُنْتَ أَخِي الَّذِي رَضَعَ ثَدْيَ أُمِّي، حَتَّى إِذَا الْتَقَيْتُكَ فِي الْخَارِجِ أُقَبِّلُكَ وَلَيْسَ مَنْ يَلُومُنِي!١
2 मैं तुझ को अपनी माँ के घर में ले जाती, वह मुझे सिखाती। मैं अपने अनारों के रस से तुझे मम्जूज मय पिलाती।
ثُمَّ أَقُودُكَ وَأَدْخُلُ بِكَ بَيْتَ أُمِّي الَّتِي تُعَلِّمُنِي الْحُبَّ، فَأُقَدِّمُ لَكَ خَمْرَةً مَمْزُوجَةً مِنْ سُلافِ رُمَّانِي.٢
3 उसका बायाँ हाथ मेरे सिर के नीचे होता, और दहना मुझे गले से लगाता!
شِمَالُهُ تَحْتَ رَأْسِي، وَيَمِينُهُ تُعَانِقُنِي.٣
4 ऐ येरूशलेम की बेटियो, मैं तुम को क़सम देती हूँ कि तुम मेरे प्यारे को न जगाओ न उठाओ, जब तक कि वह उठना न चाहे।
أَسْتَحْلِفُكُنَّ يَا بَنَاتِ أُورُشَلِيمَ أَلّا تُوْقِظْنَ وَلا تُنَبِّهْنَ الْحَبِيبَ حَتَّى يَشَاءَ.٤
5 यह कौन है जो वीराने से, अपने महबूब पर तकिया किए चली आती है? मैंने तुझे सेब के दरख़्त के नीचे जगाया। जहाँ तेरी पैदाइश हुई, जहाँ तेरी माँ ने तुझे पैदा किया।
(بَنَاتُ أُورُشَلِيمَ): مَنْ هَذِهِ الصَّاعِدَةُ مِنَ الْقَفْرِ مُتَّكِئَةً عَلَى حَبِيبِهَا؟ (المُحِبُّ): تَحْتَ شَجَرَةِ التُّفَّاحِ حَيْثُ حَبِلَتْ بِكِ أُمُّكِ، وَحَيْثُ تَمَخَّضَتْ بِكِ وَأَنْجَبَتْكِ، أَيْقَظْتُ فِيكِ أَشْوَاقَكِ.٥
6 नगीन की तरह मुझे अपने दिल में लगा रख और तावीज़ की तरह अपने बाज़ू पर, क्यूँकि इश्क मौत की तरह ज़बरदस्त है, और गै़रत पाताल सी बेमुरव्वत है उसके शो'ले आग के शोले हैं, और ख़ुदावन्द के शोले की तरह। (Sheol h7585)
(الْمَحْبُوبَةُ): اجْعَلْنِي كَخَاتَمٍ عَلَى قَلْبِكَ، كَوَشْمٍ عَلَى ذِرَاعِكَ، فَإِنَّ الْمَحَبَّةَ قَوِيَّةٌ كَالْمَوْتِ، وَالْغَيْرَةَ قَاسِيَةٌ كَالْهَاوِيَةِ. وَلَهِيبَهَا لَهِيبُ نَارٍ، كَأَنَّهَا نَارُ الرَّبِّ! (Sheol h7585)٦
7 सैलाब 'इश्क़ को बुझा नहीं सकता, बाढ़ उसको डुबा नहीं सकती, अगर आदमी मुहब्बत के बदले अपना सब कुछ दे डाले तो वह सरासर हिकारत के लायक़ ठहरेगा।
لَا يُمْكِنُ لِلْمِيَاهِ الْغَزِيرَةِ أَنْ تُخْمِدَ الْمَحَبَّةَ، وَلا تَسْتَطِيعُ السُّيُولُ أَنْ تَغْمُرَهَا. لَوْ بَذَلَ الإِنْسَانُ كُلَّ ثَرْوَةِ بَيْتِهِ ثَمَناً لِلْمَحَبَّةِ لاحْتُقِرَتْ أَشَدَّ الاحْتِقَارِ.٧
8 हमारी एक छोटी बहन है, अभी उसकी छातियाँ नहीं उठीं। जिस रोज़ उसकी बात चले, हम अपनी बहन के लिए क्या करें?
لَنَا أُخْتٌ صَغِيرَةٌ لَمْ يَنْمُ نَهْدَاهَا بَعْدُ، فَمَاذَا نَصْنَعُ لأُخْتِنَا فِي يَوْمِ خِطْبَتِهَا؟٨
9 अगर वह दीवार हो, तो हम उस पर चाँदी का बुर्ज बनाएँगेऔर अगर वह दरवाज़ा हो; हम उस पर देवदार के तख़्ते लगाएँगे।
لَوْ كَانَتْ سُوراً لَبَنَيْنَا عَلَيْهِ صَرْحاً مِنْ فِضَّةٍ، وَلَوْ كَانَتْ بَاباً لَدَعَمْنَاهُ بِأَلْوَاحٍ مِنْ أَرْزٍ.٩
10 मैं दीवार हूँ और मेरी छातियाँ बुर्ज हैं और मैं उसकी नज़र में सलामती याफ़्ता, की तरह थी।
(الْمَحْبُوبَةُ): أَنَا كَسُورٍ وَنَهْدَايَ كَبُرْجَيْنِ، حِينَئِذٍ صِرْتُ فِي عَيْنَيْهِ كَامِلَةً.١٠
11 बाल हामून में सुलेमान का खजूर का बाग़ था उसने उस खजूर के बाग़ को बाग़बानों के सुपुर्द किया कि उनमें से हर एक उसके फल के बदले हज़ार मिस्क़ाल चाँदी अदा करे।
كَانَ لِسُلَيْمَانَ كَرْمٌ فِي بَعْلِ هَامُونَ، فَعَهِدَ بِالْكَرْمِ إِلَى النَّوَاطِيرِ عَلَى أَنْ يُؤَدِّيَ كُلُّ وَاحِدٍ مِنْهُمْ أَلْفاً مِنَ الْفِضَّةِ لِقَاءَ الثَّمَرِ.١١
12 मेरा खजूर का बाग़ जो मेरा ही है मेरे सामने है ऐ सुलेमान तू तो हज़ार ले, और उसके फल के निगहबान दो सौ पाएँ।
لَكِنَّ كَرْمِي الَّذِي لِي هُوَ أَمَامِي. الأَلْفُ لَكَ يَا سُلَيْمَانُ، وَمِئَتَانِ مِنَ الْفِضَّةِ لِلنَّوَاطِيرِ.١٢
13 ऐ बूस्तान में रहनेवाली, दोस्त तेरी आवाज़ सुनते हैं; मुझ को भी सुना।
(المُحِبُّ): أَنْتِ أَيَّتُهَا الْجَالِسَةُ فِي الْجَنَّاتِ، إِنَّ مُرَافِقِيَّ يُصْغُونَ بِانْتِبَاهٍ إِلَى صَوْتِكِ، فَأَسْمِعِينِي إِيَّاهُ.١٣
14 ऐ मेरे महबूब जल्दी कर और उस ग़ज़ाल या आहू बच्चे की तरह हो जा, जो बलसानी पहाड़ियों पर है।
(الْمَحْبُوبَةُ): أَسْرِعْ إِلَيَّ كَالْهَارِبِ يَا حَبِيبِي، وَكُنْ كَالظَّبْيِ أَوِ الأُيَّلِ الْفَتِيِّ عَلَى جِبَالِ الأَطْيَابِ!١٤

< गज़लुल 8 >