< गज़लुल 6 >

1 तेरा महबूब कहाँ गया ऐ 'औरतों में सब से जमीला? तेरा महबूब किस तरफ़ को निकला कि हम तेरे साथ उसकी तलाश में जाएँ?
أَيْنَ ذَهَبَ حَبِيبُكِ أَيَّتُهَا ٱلْجَمِيلَةُ بَيْنَ ٱلنِّسَاءِ؟ أَيْنَ تَوَجَّهَ حَبِيبُكِ فَنَطْلُبَهُ مَعَكِ؟١
2 मेरा महबूब अपने बोस्तान में बलसान की क्यारियों की तरफ़ गया है, ताकि बागों में चराये और सोसन जमा' करे।
حَبِيبِي نَزَلَ إِلَى جَنَّتِهِ، إِلَى خَمَائِلِ ٱلطِّيبِ، لِيَرْعَى فِي ٱلْجَنَّاتِ، وَيَجْمَعَ ٱلسَّوْسَنَ.٢
3 मैं अपने महबूब की हूँ और मेरा महबूब मेरा है। वह सोसनों में चराता है।
أَنَا لِحَبِيبِي وَحَبِيبِي لِي. ٱلرَّاعِي بَيْنَ ٱلسَّوْسَنِ.٣
4 ऐ मेरी प्यारी, तू तिर्ज़ा की तरह खू़बसूरत है। येरूशलेम की तरह खु़शमंज़र और 'अलमदार लश्कर की तरह दिल पसन्द है।
أَنْتِ جَمِيلَةٌ يَا حَبِيبَتِي كَتِرْصَةَ، حَسَنَةٌ كَأُورُشَلِيمَ، مُرْهِبَةٌ كَجَيْشٍ بِأَلْوِيَةٍ.٤
5 अपनी आँखें मेरी तरफ़ से फेर ले, क्यूँकि वह मुझे घबरा देती हैं; तेरे बाल बकरियों के गल्ले की तरह हैं, जो कोह — ए — जिल्आद पर बैठी हों।
حَوِّلِي عَنِّي عَيْنَيْكِ فَإِنَّهُمَا قَدْ غَلَبَتَانِي. شَعْرُكِ كَقَطِيعِ ٱلْمَعْزِ ٱلرَّابِضِ فِي جِلْعَادَ.٥
6 तेरे दाँत भेड़ों के गल्ले की तरह हैं, जिनको गु़स्ल दिया गया हो; जिनमें से हर एक ने दो बच्चे दिए हों, और उनमें एक भी बाँझ न हो।
أَسْنَانُكِ كَقَطِيعِ نِعَاجٍ صَادِرةٍ مِنَ ٱلْغَسْلِ، ٱللَّوَاتِي كُلُّ وَاحِدَةٍ مُتْئِمٌ وَلَيْسَ فِيهَا عَقِيمٌ.٦
7 तेरी कनपटियाँ तेरे नक़ाब के नीचे, अनार के टुकड़ों की तरह हैं।
كَفِلْقَةِ رُمَّانَةٍ خَدُّكِ تَحْتَ نَقَابِكِ.٧
8 साठ रानियाँ और अस्सी हरमें, और बेशुमार कुंवारियाँ भी हैं;
هُنَّ سِتُّونَ مَلِكَةً وَثَمَانُونَ سُرِّيَّةً وَعَذَارَى بِلَا عَدَدٍ.٨
9 लेकिन मेरी कबूतरी, मेरी पाकीज़ा बेमिसाल है; वह अपनी माँ की इकलौती, वह अपनी वालिदा की लाडली है। बेटियों ने उसे देखा और उसे मुबारक कहा। रानियों और हरमों ने देखकर उसकी बड़ाई की।
وَاحِدَةٌ هِيَ حَمَامَتِي كَامِلَتِي. ٱلْوَحِيدَةُ لِأُمِّهَا هِيَ. عَقِيلَةُ وَالِدَتِهَا هِيَ. رَأَتْهَا ٱلْبَنَاتُ فَطَوَّبْنَهَا. ٱلْمَلِكَاتُ وَٱلسَّرَارِيُّ فَمَدَحْنَهَا.٩
10 यह कौन है जिसका ज़हूर सुबह की तरह है, जो हुस्न में माहताब, और नूर में आफ़ताब, 'अलमदार लश्कर की तरह दिल पसन्द है?
مَنْ هِيَ ٱلْمُشْرِفَةُ مِثْلَ ٱلصَّبَاحِ، جَمِيلَةٌ كَٱلْقَمَرِ، طَاهِرَةٌ كَٱلشَّمْسِ، مُرْهِبَةٌ كَجَيْشٍ بِأَلْوِيَةٍ؟١٠
11 मैं चिलगोज़ों के बाग में गया, कि वादी की नबातात पर नज़र करूँ, और देखें कि ताक में गुंचे, और अनारों में फूल निकलें हैं कि नहीं।
نَزَلْتُ إِلَى جَنَّةِ ٱلْجَوْزِ لِأَنْظُرَ إِلَى خُضَرِ ٱلْوَادِي، وَلِأَنْظُرَ: هَلْ أَقْعَلَ ٱلْكَرْمُ؟ هَلْ نَوَّرَ ٱلرُّمَّانُ؟١١
12 मुझे अभी ख़बर भी न थी कि मेरे दिल ने मुझे मेरे उमरा के रथों पर चढ़ा दिया।
فَلَمْ أَشْعُرْ إِلَّا وَقَدْ جَعَلَتْنِي نَفْسِي بَيْنَ مَرْكَبَاتِ قَوْمِ شَرِيفٍ.١٢
13 लौट आ, लौट आ, ऐ शूलिमीत! लौट आ, लौट आ कि हम तुझ पर नज़र करें। तुम शूलिमीत पर क्यूँ नज़र करोगे, जैसे वह दो लश्करों का नाच है।
اِرْجِعِي، ٱرْجِعِي يَا شُولَمِّيثُ. ٱرْجِعِي، ٱرْجِعِي فَنَنْظُرَ إِلَيْكِ. مَاذَا تَرَوْنَ فِي شُولَمِّيثَ، مِثْلَ رَقْصِ صَفَّيْنِ؟١٣

< गज़लुल 6 >