< गज़लुल 4 >

1 देख, तू ख़ूबसूरत है ऐ मेरी प्यारी! देख, तू ख़ूबसूरत है; तेरी आँखें तेरे नक़ाब के नीचे दो कबूतर हैं, तेरे बाल बकरियों के गल्ले की तरह हैं, जो कोह — ए — जिल्'आद पर बैठी हों।
(الْمُحِبُّ): لَشَّدَ مَا أَنْتِ جَمِيلَةٌ يَا حَبِيبَتِي، لَشَّدَ مَا أَنْتِ جَمِيلَةٌ! عَيْنَاكِ مِنْ وَرَاءِ نَقَابِكِ كَحَمَامَتَيْنِ، وَشَعْرُكِ لِسَوَادِهِ كَقَطِيعِ مِعْزٍ مُنْحَدِرٍ مِنْ جَبَلِ جِلْعَادَ.١
2 तेरे दाँत भेड़ों के ग़ल्ले की तरह हैं, जिनके बाल कतरे गए हों और जिनको गु़स्ल दिया गया हो, जिनमें से हर एक ने दो बच्चे दिए हों, और उनमें एक भी बाँझ न हो।
أَسْنَانُكِ كَقَطِيعٍ مَجْزُوزٍ خَارِجٍ مِنَ الاغْتِسَالِ، كُلُّ وَاحِدَةٍ ذَاتُ تَوْأَمٍ، وَمَا فِيهَا عَقِيمٌ.٢
3 तेरे होंठ किर्मिज़ी डोरे हैं, तेरा मुँह दिल फ़रेब है, तेरी कनपटियाँ तेरे नक़ाब के नीचे अनार के टुकड़ों की तरह हैं।
شَفَتَاكِ كَخَيْطٍ مِنَ الْقِرْمِزِ، وَحَدِيثُ فَمِكِ عَذْبٌ، وَخَدَّاكِ كَفِلْقَتَيْ رُمَّانَةٍ خَلْفَ نَقَابِكِ.٣
4 तेरी गर्दन दाऊद का बुर्ज है जो सिलाहख़ाने के लिए बना जिस पर हज़ार ढाल लटकाई गई हैं, वह सब की सब पहलवानों की ढालें हैं।
عُنُقُكِ مُمُاثِلٌ لِبُرْجِ دَاوُدَ الْمُشَيَّدِ لِيَكُونَ قَلْعَةً لِلسِّلاحِ، حَيْثُ عُلِّقَ فِيهِ أَلْفُ تُرْسٍ مِنْ تُرُوسِ الْمُحَارِبِينَ الصَّنَادِيدِ.٤
5 तेरी दोनों छातियाँ दो तोअम आहू बच्चे हैं, जो सोसनों में चरते हैं।
نَهْدَاكِ كَتَوْأَمَيْ ظَبْيَةٍ، تَوْأَمَيْنِ يَرْعَيَانِ بَيْنَ السَّوْسَنِ.٥
6 जब तक दिन ढले और साया बढ़े, मैं मुर के पहाड़ और लुबान के टीले पर जा रहूँगा।
وَمَا يَكَادُ يَتَنَفَّسُ النَّهَارُ وَتَنْهَزِمُ الظِّلالُ حَتَّى أَنْطَلِقَ إِلَى جَبَلِ الْمُرِّ وَإِلَى تَلِّ اللُّبَانِ.٦
7 ऐ मेरी प्यारी, तू सरापा जमाल है; तुझ में कोई 'ऐब नहीं।
كُلُّكِ جَمِيلَةٌ يَا حَبِيبَتِي وَلا عَيْبَ فِيكِ.٧
8 लुबनान से मेरे साथ, ऐ दुल्हन! तू लुबनान से मेरे साथ चली आ। अमाना की चोटी पर से, सनीर और हरमून की चोटी पर से, शेरों की मांदों से, और चीतों के पहाड़ों पर से नज़र दौड़ा।
تَعَالَيْ مَعِي مِنْ لُبْنَانَ يَا عَرُوسِي. تَعَالَيْ مَعِي مِنْ لُبْنَانَ! انْظُرِي مِنْ قِمَّةِ جَبَلِ أَمَانَةَ، مِنْ رَأْسِ سَنِيرَ وَحَرْمُونَ، فِي عَرِينِ الأُسُودِ، مِنْ جِبَالِ النُّمُورِ.٨
9 ऐ मेरी प्यारी, मेरी ज़ोजा, तू ने मेरा दिल लूट लिया। अपनी एक नज़र से, अपनी गर्दन के एक तौक़ से तू ने मेरा दिल ग़ारत कर लिया।
قَدْ سَلَبْتِ قَلْبِي، يَا أُخْتِي يَا عَرُوسِي! قَدْ سَلَبْتِ قَلْبِي بِنَظْرَةِ عَيْنَيْكِ وَقِلادَةِ عُنُقِكِ.٩
10 ऐ मेरी प्यारी, मेरी ज़ौजा, तेरा 'इश्क क्या ख़ूब है। तेरी मुहब्बत मय से ज़्यादा लज़ीज़ है, और तेरे इत्रों की महक हर तरह की ख़ुश्बू से बढ़कर है।
مَا أَعْذَبَ حُبَّكِ يَا أُخْتِي يَا عَرُوسِي! لَكَمْ حُبُّكِ أَلَذُّ مِنَ الْخَمْرِ، وَأَرِيجُ أَطْيَابِكِ أَزْكَى مِنْ كُلِّ الْعُطُورِ.١٠
11 ऐ मेरी ज़ोजा, तेरे होटों से शहद टपकता है; शहद — ओ — शीर तेरे ज़बान तले है तेरी पोशाक की खु़श्बू लुबनान की जैसी है।
شَفَتَاكِ تَقْطُرَانِ شَهْداً أَيَّتُهَا الْعَرُوسُ، وَتَحْتَ لِسَانِكِ عَسَلٌ وَلَبَنٌ، وَرَائِحَةُ ثِيَابِكِ كَشَذَى لُبْنَانَ.١١
12 मेरी प्यारी, मेरी ज़ोजा एक महफ़ूज़ बाग़ीचा है; वह महफ़ूज़ सोता और सर बमुहर चश्मा है।
أَنْتِ جَنَّةٌ مُغْلَقَةٌ يَا أُخْتِي الْعَرُوسَ. أَنْتِ عَيْنٌ مُقْفَلَةٌ وَيَنْبُوعٌ مَخْتُومٌ!١٢
13 तेरे बाग़ के पौधे लज़ीज़ मेवादार अनार हैं, मेहन्दी और सुम्बुल भी हैं।
أَغْرَاسُكِ فِرْدَوْسُ رُمَّانٍ مَعَ خِيرَةِ الأَثْمَارِ وَالحِنَّاءِ وَالنَّارْدِينِ.١٣
14 जटामासी और ज़ा'फ़रान, बेदमुश्क और दारचीनी और लोबान के तमाम दरख़्त, मुर और ऊद और हर तरह की ख़ास खु़श्बू।
نَارِدِينٍ وَزَعْفَرَانَ، قَصَبِ الذَّرِيرَةِ وَقِرْفَةٍ مَعَ كُلِّ أَصْنَافِ اللُّبَانِ وَالْمُرِّ وَالْعُودِ مَعَ أَفْخَرِ الْعُطُورِ.١٤
15 तू बाग़ों में एक मम्बा', आब — ए — हयात का चश्मा, और लुबनान का झरना है।
أَنْتِ يَنْبُوعُ جَنَّاتٍ وَبِئْرُ مِيَاهٍ حَيَّةٍ وَجَدَاوِلُ دَافِقَةٌ مِنْ لُبْنَانَ.١٥
16 ऐ शिमाली हवा बेदार हो, ऐ दख्खिनी हवा चली आ! मेरे बाग़ पर से गुज़र, ताकि उसकी ख़ुशबू फैले। मेरा महबूब अपने बाग़ में आए, और अपने लज़ीज़ मेवे खाए।
(الْمَحْبُوبَةُ): اسْتَيْقِظِي يَا رِيحَ الشِّمَالِ، وَهُبِّي يَا رِيحَ الْجَنُوبِ، هُبِّي عَلَى جَنَّتِي فَيَنْتَشِرَ عَبِيرُهَا. لِيُقْبِلْ حَبِيبِي إِلَى جَنَّتِهِ وَيَتَذَوَّقْ أَطْيَبَ أَثْمَارِهَا.١٦

< गज़लुल 4 >