< रोमियो 13 >
1 हर शख़्स आ'ला हुकूमतों का ता'बेदार रहे क्यूँकि कोई हुकूमत ऐसी नहीं जो ख़ुदा की तरफ़ से न हो और जो हुकूमतें मौजूद हैं वो ख़ुदा की तरफ़ से मुक़र्रर है।
Let every soul be subject to the higher authorities. For there is no authority except that which is from God; and the existing authorities have been ordained of God.
2 पस जो कोई हुकूमत का सामना करता है वो ख़ुदा के इन्तिज़ाम का मुख़ालिफ़ है और जो मुख़ालिफ़ है वो सज़ा पाएगा।
So the one resisting the authority, antagonizes the ordinance of God: and those antagonizing shall receive to themselves judgment.
3 नेक — ओ कारों को हाकिमों से ख़ौफ़ नहीं बल्कि बदकार को है, पस अगर तू हाकिम से निडर रहना चाहता है तो नेकी कर उसकी तरफ़ से तेरी तारीफ़ होगी।
For rulers are not a terror to the good work, but to the evil. Whether do you not wish to fear the authority? do the good, and you shall have praise from it:
4 क्यूँकि वो तेरी बेहतरी के लिए ख़ुदा का ख़ादिम है लेकिन अगर तू बदी करे तो डर, क्यूँकि वो तलवार बे'फ़ाइदा लिए हुए नहीं और ख़ुदा का ख़ादिम है कि उसके ग़ज़ब के मुवाफ़िक़ बदकार को सज़ा देता है
for he is the minister of God for you for good. But if you do evil, fear; for he bears not the sword in vain: for he is the minister of God, executing judgment unto wrath unto the one doing evil.
5 पस ताबे दार रहना न सिर्फ़ ग़ज़ब के डर से ज़रूर है बल्कि दिल भी यही गवाही देता है।
Therefore it is necessary to submit, not only on account of wrath, but also on account of conscience.
6 तुम इसी लिए लगान भी देते हो कि वो ख़ुदा का ख़ादिम है और इस ख़ास काम में हमेशा मशग़ूल रहते हैं।
For on account of this also pay tribute; for they are the ministers of God, attending to this very thing.
7 सब का हक़ अदा करो जिस को लगान चाहिए लगान दो, जिसको महसूल चाहिए महसूल जिससे डरना चाहिए उस से डरो, जिस की इज़्ज़त करना चाहिए उसकी इज़्ज़त करो।
Give to all their dues: custom to whom custom is due; tribute to whom tribute is due; fear to whom fear is due; honor to whom honor is due.
8 आपस की मुहब्बत के सिवा किसी चीज़ में किसी के क़र्ज़दार न हो क्यूँकि जो दूसरे से मुहब्बत रखता है उसने शरी'अत पर पूरा अमल किया।
Owe no man anything, but to love one another with divine love: for the one loving another with divine love has fulfilled the law.
9 क्यूँकि ये बातें कि ज़िना न कर, ख़ून न कर, चोरी न कर, लालच न कर और इसके सिवा और जो कोई हुक्म हो उन सब का ख़ुलासा इस बात में पाया जाता है “अपने पड़ोसी से अपनी तरह मुहब्बत रख।”
For, thou shalt not commit adultery, thou shalt not murder, thou shalt not steal, thou shalt not covet, and if there is any other commandment, it is fulfilled in this word, in this, Thou shalt love thy neighbor as thyself with divine love.
10 मुहब्बत अपने पड़ोसी से बदी नहीं करती इस वास्ते मुहब्बत शरी'अत की ता'मील है।
Divine love works no evil to its neighbor: for divine love is the fulfilling of the law.
11 वक़्त को पहचानकर ऐसा ही करो इसलिए कि अब वो घड़ी आ पहुँची कि तुम नींद से जागो; क्यूँकि जिस वक़्त हम ईमान लाए थे उस वक़्त की निस्बत अब हमारी नजात नज़दीक है।
And recognizing this time, that it is already the hour we should wake out of sleep: for now our salvation is nearer than when we believed.
12 रात बहुत गुज़र गई, और दिन निकलने वाला है पस हम अंधेरे के कामों को तर्क करके रौशनी के हथियार बाँध लें।
For the night is far spent, and the day is at hand. Therefore let us lay aside the works of the darkness, and let us put on the arms of the light.
13 जैसा दिन को दस्तूर है संजीदगी से चलें न कि नाच रंग और नशेबाज़ी से न ज़िनाकारी और शहवत परस्ती से और न झगड़े और हसद से।
Let us walk circumspectly, as in the day; not with revelries and drunkenness, not with debaucheries and impurities, not in strife and envy:
14 बल्कि ख़ुदावन्द ईसा मसीह को पहन लो और जिस्म की ख़वाहिशों के लिए तदबीरें न करो।
but put ye on the Lord Jesus Christ, and make no provision for the lust of the flesh.