< मुकाशफ़ा 12 >

1 फिर आसमान पर एक बड़ा निशान दिखाई दिया, या'नी एक 'औरत नज़र आई जो अफ़ताब को ओढ़े हुए थी, और चाँद उसके पाँव के नीचे था, और बारह सितारों का ताज उसके सिर पर।
tataH paraM svarge mahAchitraM dR^iShTaM yoShidekAsIt sA parihitasUryyA chandrashcha tasyAshcharaNayoradho dvAdashatArANAM kirITa ncha shirasyAsIt|
2 वो हामिला थी और दर्द — ए — ज़ेह में चिल्लाती थी, और बच्चा जनने की तकलीफ़ में थी।
sA garbhavatI satI prasavavedanayA vyathitArttarAvam akarot|
3 फिर एक और निशान आसमान पर दिखाई दिया, या'नी एक बड़ा लाल अज़दहा, उसके सात सिर और दस सींग थे, और उसके सिरों पर सात ताज;
tataH svarge. aparam ekaM chitraM dR^iShTaM mahAnAga eka upAtiShThat sa lohitavarNastasya sapta shirAMsi sapta shR^i NgANi shiraHsu cha sapta kirITAnyAsan|
4 और उसकी दुम ने आसमान के तिहाई सितारे खींच कर ज़मीन पर डाल दिए। और वो अज़दहा उस औरत के आगे जा खड़ा हुआ जो जनने को थी, ताकि जब वो जने तो उसके बच्चे को निगल जाए।
sa svalA NgUlena gaganasthanakShatrANAM tR^itIyAMsham avamR^ijya pR^ithivyAM nyapAtayat| sa eva nAgo navajAtaM santAnaM grasitum udyatastasyAH prasaviShyamANAyA yoShito. antike. atiShThat|
5 और वो बेटा जनी, या'नी वो लड़का जो लोहे के 'लाठी से सब क़ौमों पर हुकूमत करेगा, और उसका बच्चा यकायक ख़ुदा और उसके तख़्त के पास तक पहुँचा दिया गया;
sA tu puMsantAnaM prasUtA sa eva lauhamayarAjadaNDena sarvvajAtIshchArayiShyati, ki ncha tasyAH santAna Ishvarasya samIpaM tadIyasiMhAsanasya cha sannidhim uddhR^itaH|
6 और वो 'औरत उस जंगल को भाग गई, जहाँ ख़ुदा की तरफ़ से उसके लिए एक जगह तैयार की गई थी, ताकि वहाँ एक हज़ार दो सौ साठ दिन तक उसकी परवरिश की जाए।
sA cha yoShit prAntaraM palAyitA yatastatreshvareNa nirmmita Ashrame ShaShThyadhikashatadvayAdhikasahasradinAni tasyAH pAlanena bhavitavyaM|
7 फिर आसमान पर लड़ाई हुई, मीकाईल और उसके फ़रिश्ते अज़दहा से लड़ने को निकले; और अज़दहा और उसके फ़रिश्ते उनसे लड़े,
tataH paraM svarge saMgrAma upApiShThat mIkhAyelastasya dUtAshcha tena nAgena sahAyudhyan tathA sa nAgastasya dUtAshcha saMgrAmam akurvvan, kintu prabhavituM nAshaknuvan
8 लेकिन ग़ालिब न आए, और इसके बाद आसमान पर उनके लिए जगह न रही।
yataH svarge teShAM sthAnaM puna rnAvidyata|
9 और बड़ा अज़दहा, या'नी वही पुराना साँप जो इब्लीस और शैतान कहलाता है और सारे दुनियाँ को गुमराह कर देता है, ज़मीन पर गिरा दिया गया और उसके फ़रिश्ते भी उसके साथ गिरा दिए गए।
aparaM sa mahAnAgo. arthato diyAvalaH (apavAdakaH) shayatAnashcha (vipakShaH) iti nAmnA vikhyAto yaH purAtanaH sarpaH kR^itsnaM naralokaM bhrAmayati sa pR^ithivyAM nipAtitastena sArddhaM tasya dUtA api tatra nipAtitAH|
10 फिर मैंने आसमान पर से ये बड़ी आवाज़ आती सुनी, अब हमारे ख़ुदा की नजात और क़ुदरत और बादशाही, और उसके मसीह का इख़्तियार ज़ाहिर हुआ, क्यूँकि हमारे भाइयों पर इल्ज़ाम लगाने वाला जो रात दिन हमारे ख़ुदा के आगे उन पर इल्ज़ाम लगाया करता है, गिरा दिया गया।
tataH paraM svarge uchchai rbhAShamANo ravo. ayaM mayAshrAvi, trANaM shaktishcha rAjatvamadhunaiveshvarasya naH| tathA tenAbhiShiktasya trAtuH parAkramo. abhavatM|| yato nipAtito. asmAkaM bhrAtR^iNAM so. abhiyojakaH| yeneshvarasya naH sAkShAt te. adUShyanta divAnishaM||
11 और वो बर्रे के ख़ून और अपनी गवाही के कलाम के ज़रिए उस पर ग़ालिब आए; और उन्होंने अपनी जान को 'अज़ीज़ न समझा, यहाँ तक कि मौत भी गंवारा की।
meShavatsasya raktena svasAkShyavachanena cha| te tu nirjitavantastaM na cha sneham akurvvata| prANoShvapi svakIyeShu maraNasyaiva sa NkaTe|
12 “पस ऐ आसमानों और उनके रहनेवालो, ख़ुशी मनाओ। ऐ ख़ुश्की और तरी, तुम पर अफ़सोस, क्यूँकि इब्लीस बड़े क़हर में तुम्हारे पास उतर कर आया है, इसलिए कि जानता है कि मेरा थोड़ा ही सा वक़्त बाक़ी है।”
tasmAd Anandatu svargo hR^iShyantAM tannivAminaH| hA bhUmisAgarau tApo yuvAmevAkramiShyati| yuvayoravatIrNo yat shaitAno. atIva kApanaH| alpo me samayo. astyetachchApi tenAvagamyate||
13 और जब अज़दहा ने देखा कि मैं ज़मीन पर गिरा दिया गया हूँ, तो उस 'औरत को सताया जो बेटा जनी थी।
anantaraM sa nAgaH pR^ithivyAM svaM nikShiptaM vilokya tAM putraprasUtAM yoShitam upAdravat|
14 और उस 'औरत को बड़े; उक़ाब के दो पर दिए गए, ताकि साँप के सामने से उड़ कर वीराने में अपनी उस जगह पहुँच जाए, जहाँ एक ज़माना और ज़मानो और आधे ज़माने तक उसकी परवरिश की जाएगी।
tataH sA yoShit yat svakIyaM prAntarasthAshramaM pratyutpatituM shaknuyAt tadarthaM mahAkurarasya pakShadvayaM tasvai dattaM, sA tu tatra nAgato dUre kAlaikaM kAladvayaM kAlArddha ncha yAvat pAlyate|
15 और साँप ने उस 'औरत के पीछे अपने मुँह से नदी की तरह पानी बहाया, ताकि उसको इस नदी से बहा दे।
ki ncha sa nAgastAM yoShitaM srotasA plAvayituM svamukhAt nadIvat toyAni tasyAH pashchAt prAkShipat|
16 मगर ज़मीन ने उस 'औरत की मदद की, और अपना मुँह खोलकर उस नदी को पी लिया जो अज़दहा ने अपने मुँह से बहाई थी।
kintu medinI yoShitam upakurvvatI nijavadanaM vyAdAya nAgamukhAd udgIrNAM nadIm apivat|
17 और अज़दहा को 'औरत पर ग़ुस्सा आया, और उसकी बाक़ी औलाद से, जो ख़ुदा के हुक्मों पर 'अमल करती है और ईसा की गवाही देने पर क़ाईम है, लड़ने को गया और समुन्दर की रेत पर जा खड़ा हुआ।
tato nAgo yoShite kruddhvA tadvaMshasyAvashiShTalokairarthato ya IshvarasyAj nAH pAlayanti yIshoH sAkShyaM dhArayanti cha taiH saha yoddhuM nirgatavAn|

< मुकाशफ़ा 12 >