< ज़बूर 1 >

1 मुबारक है वह आदमी जो शरीरों की सलाह पर नहीं चलता, और ख़ताकारों की राह में खड़ा नहीं होता; और ठट्ठा बाज़ों की महफ़िल में नहीं बैठता।
Bienheureux l’homme qui ne marche pas dans le conseil des méchants, et ne se tient pas dans le chemin des pécheurs, et ne s’assied pas au siège des moqueurs,
2 बल्कि ख़ुदावन्द की शरी'अत में ही उसकी ख़ुशी है; और उसी की शरी'अत पर दिन रात उसका ध्यान रहता है।
Mais qui a son plaisir en la loi de l’Éternel, et médite dans sa loi jour et nuit!
3 वह उस दरख़्त की तरह होगा, जो पानी की नदियों के पास लगाया गया है। जो अपने वक़्त पर फलता है, और जिसका पत्ता भी नहीं मुरझाता। इसलिए जो कुछ वह करे फलदार होगा।
Et il sera comme un arbre planté près des ruisseaux d’eaux, qui rend son fruit en sa saison, et dont la feuille ne se flétrit point; et tout ce qu’il fait prospère.
4 शरीर ऐसे नहीं, बल्कि वह भूसे की तरह हैं, जिसे हवा उड़ा ले जाती है।
Il n’en est pas ainsi des méchants, mais ils sont comme la balle que le vent chasse.
5 इसलिए शरीर 'अदालत में क़ाईम न रहेंगे, न ख़ताकार सादिक़ों की जमा'अत में।
C’est pourquoi les méchants ne subsisteront point dans le jugement, ni les pécheurs dans l’assemblée des justes;
6 क्यूँकि ख़ुदावन्द सादिक़ो की राह जानता है लेकिन शरीरों की राह बर्बाद हो जाएगी।
Car l’Éternel connaît la voie des justes; mais la voie des méchants périra.

< ज़बूर 1 >