< ज़बूर 95 >

1 आओ हम ख़ुदावन्द के सामने नग़मासराई करे! अपनी नजात की चट्टान के सामने खु़शी से ललकारें।
αἶνος ᾠδῆς τῷ Δαυιδ δεῦτε ἀγαλλιασώμεθα τῷ κυρίῳ ἀλαλάξωμεν τῷ θεῷ τῷ σωτῆρι ἡμῶν
2 शुक्रगुज़ारी करते हुए उसके सामने में हाज़िर हों, मज़मूर गाते हुए उसके आगे ख़ुशी से ललकारें।
προφθάσωμεν τὸ πρόσωπον αὐτοῦ ἐν ἐξομολογήσει καὶ ἐν ψαλμοῖς ἀλαλάξωμεν αὐτῷ
3 क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा — ए — 'अज़ीम है, और सब इलाहों पर शाह — ए — 'अज़ीम है।
ὅτι θεὸς μέγας κύριος καὶ βασιλεὺς μέγας ἐπὶ πάντας τοὺς θεούς
4 ज़मीन के गहराव उसके क़ब्ज़े में हैं; पहाड़ों की चोटियाँ भी उसी की हैं।
ὅτι ἐν τῇ χειρὶ αὐτοῦ τὰ πέρατα τῆς γῆς καὶ τὰ ὕψη τῶν ὀρέων αὐτοῦ εἰσιν
5 समन्दर उसका है, उसी ने उसको बनाया, और उसी के हाथों ने खु़श्की को भी तैयार किया।
ὅτι αὐτοῦ ἐστιν ἡ θάλασσα καὶ αὐτὸς ἐποίησεν αὐτήν καὶ τὴν ξηρὰν αἱ χεῖρες αὐτοῦ ἔπλασαν
6 आओ हम झुकें और सिज्दा करें, और अपने खालिक़ ख़ुदावन्द के सामने घुटने टेकें!
δεῦτε προσκυνήσωμεν καὶ προσπέσωμεν αὐτῷ καὶ κλαύσωμεν ἐναντίον κυρίου τοῦ ποιήσαντος ἡμᾶς
7 क्यूँकि वह हमारा ख़ुदा है, और हम उसकी चरागाह के लोग, और उसके हाथ की भेड़ें हैं। काश कि आज के दिन तुम उसकी आवाज़ सुनते!
ὅτι αὐτός ἐστιν ὁ θεὸς ἡμῶν καὶ ἡμεῖς λαὸς νομῆς αὐτοῦ καὶ πρόβατα χειρὸς αὐτοῦ σήμερον ἐὰν τῆς φωνῆς αὐτοῦ ἀκούσητε
8 तुम अपने दिल को सख़्त न करो जैसा मरीबा में, जैसा मस्साह के दिन वीरान में किया था,
μὴ σκληρύνητε τὰς καρδίας ὑμῶν ὡς ἐν τῷ παραπικρασμῷ κατὰ τὴν ἡμέραν τοῦ πειρασμοῦ ἐν τῇ ἐρήμῳ
9 उस वक़्त तुम्हारे बाप — दादा ने मुझे आज़माया, और मेरा इम्तिहान किया और मेरे काम को भी देखा।
οὗ ἐπείρασαν οἱ πατέρες ὑμῶν ἐδοκίμασαν καὶ εἴδοσαν τὰ ἔργα μου
10 चालीस बरस तक मैं उस नसल से बेज़ार रहा, और मैने कहा, कि “ये वह लोग हैं जिनके दिल आवारा हैं, और उन्होंने मेरी राहों को नहीं पहचाना।”
τεσσαράκοντα ἔτη προσώχθισα τῇ γενεᾷ ἐκείνῃ καὶ εἶπα ἀεὶ πλανῶνται τῇ καρδίᾳ καὶ αὐτοὶ οὐκ ἔγνωσαν τὰς ὁδούς μου
11 चुनाँचे मैने अपने ग़ज़ब में क़सम खाई कि यह लोग मेरे आराम में दाख़िल न होंगे।
ὡς ὤμοσα ἐν τῇ ὀργῇ μου εἰ εἰσελεύσονται εἰς τὴν κατάπαυσίν μου

< ज़बूर 95 >