< ज़बूर 95 >

1 आओ हम ख़ुदावन्द के सामने नग़मासराई करे! अपनी नजात की चट्टान के सामने खु़शी से ललकारें।
এস, আমরা সদাপ্রভুুর উদ্দেশ্যে আনন্দ গান করি, আমাদের পরিত্রানের শৈলর জন্য জয়ধ্বনি করি।
2 शुक्रगुज़ारी करते हुए उसके सामने में हाज़िर हों, मज़मूर गाते हुए उसके आगे ख़ुशी से ललकारें।
আমরা ধন্যবাদ দিতে দিতে তার উপস্থিতিতে প্রবেশ করি, গান গেয়ে তার উদ্দেশ্যে জয়ধ্বনি করি।
3 क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा — ए — 'अज़ीम है, और सब इलाहों पर शाह — ए — 'अज़ीम है।
কারণ সদাপ্রভুু, মহান ঈশ্বর, তিনি সমস্ত দেবতাদের উপরে মহান রাজা,
4 ज़मीन के गहराव उसके क़ब्ज़े में हैं; पहाड़ों की चोटियाँ भी उसी की हैं।
পৃথিবীর গভীরতম স্থানগুলো তার হাতের মধ্যে, পর্বতের চূড়াগুলো তারই।
5 समन्दर उसका है, उसी ने उसको बनाया, और उसी के हाथों ने खु़श्की को भी तैयार किया।
সমুদ্র তার, তিনিই তা নির্মাণ করেছেন, তার হাত শুকনো জমি গঠন করেছে।
6 आओ हम झुकें और सिज्दा करें, और अपने खालिक़ ख़ुदावन्द के सामने घुटने टेकें!
এস, আমরা আরাধনা করি ও নত হই, আমাদের সৃষ্টিকর্ত্তা সদাপ্রভুুর সামনে হাঁটু পাতি।
7 क्यूँकि वह हमारा ख़ुदा है, और हम उसकी चरागाह के लोग, और उसके हाथ की भेड़ें हैं। काश कि आज के दिन तुम उसकी आवाज़ सुनते!
কারণ তিনিই আমাদের ঈশ্বর, আমরা তার চরানির প্রজা ও তার নিজের মেষ। আহা আজই, তোমরা তার স্বর শুনবে।
8 तुम अपने दिल को सख़्त न करो जैसा मरीबा में, जैसा मस्साह के दिन वीरान में किया था,
তোমরা নিজেদের হৃদয়কে কঠিন করনা, যেমন মরীরায়, যেমন মরুপ্রান্তের মধ্যে মঃসার দিনের, করেছিলে।
9 उस वक़्त तुम्हारे बाप — दादा ने मुझे आज़माया, और मेरा इम्तिहान किया और मेरे काम को भी देखा।
তখন তোমাদের পিতৃপুরুষেরা আমার পরীক্ষা করল, আমার বিচার করল, আমার কাজও দেখল।
10 चालीस बरस तक मैं उस नसल से बेज़ार रहा, और मैने कहा, कि “ये वह लोग हैं जिनके दिल आवारा हैं, और उन्होंने मेरी राहों को नहीं पहचाना।”
১০চল্লিশ বছর পর্যন্ত আমি সেই জাতির প্রতি অসন্তুষ্ট ছিলাম, আমি বলেছিলাম এদের মন উদ্ভ্রান্ত; তারা আমার আজ্ঞা মানলো না।
11 चुनाँचे मैने अपने ग़ज़ब में क़सम खाई कि यह लोग मेरे आराम में दाख़िल न होंगे।
১১তাই আমি রেগে শপথ করলাম, এরা আমার বিশ্রামের জায়গায় কখনো ঢুকবে না।

< ज़बूर 95 >