< ज़बूर 9 >
1 मैं अपने पूरे दिल से ख़ुदावन्द की शुक्रगुज़ारी करूँगा; मैं तेरे सब 'अजीब कामों का बयान करूँगा।
Daré gracias a Yavé con todo mi corazón. Contaré todas tus maravillas.
2 मैं तुझ में ख़ुशी मनाऊँगा और मसरूर हूँगा; ऐ हक़ता'ला, मैं तेरी सिताइश करूँगा।
Me alegraré y me regocijaré en Ti. Cantaré alabanza a tu Nombre, oh Altísimo.
3 जब मेरे दुश्मन पीछे हटते हैं, तो तेरी हुजू़री की वजह से लग़ज़िश खाते और हलाक हो जाते हैं।
Cuando mis enemigos se volvieron atrás, Tropezaron y perecieron delante de Ti.
4 क्यूँकि तूने मेरे हक़ की और मेरे मु'आमिले की ताईद की है। तूने तख़्त पर बैठकर सदाक़त से इन्साफ़ किया।
Porque Tú mantuviste mi justicia y mi causa. Te sentaste en el trono a juzgar justamente.
5 तूने क़ौमों को झिड़का, तूने शरीरों को हलाक किया है; तूने उनका नाम हमेशा से हमेशा के लिए मिटा डाला है।
Reprendiste a las naciones, Destruíste a los perversos, Borraste su nombre para siempre.
6 दुश्मन ख़त्म हुए, वह हमेशा के लिए बर्बाद हो गए; और जिन शहरों को तूने ढा दिया, उनकी यादगार तक मिट गई।
El enemigo sucumbió en desolación eterna, Destruiste sus ciudades, Y con ellas se desvaneció su recuerdo.
7 लेकिन ख़ुदावन्द हमेशा तक तख़्त नशीन है, उसने इन्साफ़ के लिए अपना तख़्त तैयार किया है;
Pero Yavé permanece para siempre. Él estableció su trono para el juicio
8 और वही सदाक़त से जहान की 'अदालत करेगा, और रास्ती से कौमों का इन्साफ़ करेगा।
Y juzgará al mundo con justicia. Hará juicio con equidad a las naciones.
9 ख़ुदावन्द मज़लूमों के लिए ऊँचा बुर्ज होगा, मुसीबत के दिनों में ऊँचा बुर्ज।
Yavé será un refugio, una torre alta para el oprimido, Un baluarte y fortaleza en tiempos de angustia.
10 और वह जो तेरा नाम जानते हैं तुझ पर भरोसा करेंगे, क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, तूने अपने चाहनें वालो को नहीं छोड़ा।
En Ti confiarán los que conocen tu Nombre, Por cuanto Tú, oh Yavé, no abandonas a los que te buscan.
11 ख़ुदावन्द की सिताइश करो, जो सिय्यूनमें रहता है! लोगों के बीच उसके कामों का बयान करो
¡Canten alabanzas a Yavé, Quien mora en Sion! ¡Anuncien entre los pueblos sus proezas!
12 क्यूँकि खू़न का पूछताछ करने वाला उनको याद रखता है; वह ग़रीबों की फ़रियाद को नहीं भूलता।
Porque Aquel que demanda la sangre se acuerda de ellos. No olvida el clamor de los afligidos.
13 ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर रहम कर। तू जो मौत के फाटकों से मुझे उठाता है, मेरे उस दुख को देख जो मेरे नफ़रत करने वालों की तरफ़ से है।
Oh Yavé, ten compasión de mí. Mira mi aflicción a causa de los que me aborrecen. Tú, que me levantas de las puertas de la muerte,
14 ताकि मैं तेरी कामिल सिताइश का इज़हार करूँ। सिय्यून की बेटी के फाटकों पर, मैं तेरी नजात से ख़ुश हूँगा
Para que cuente todas tus alabanzas En las puertas de la hija de Sion, Y me regocije en tu salvación.
15 क़ौमें खु़द उस गढ़े में गिरी हैं जिसे उन्होंने खोदा था; जो जाल उन्होंने लगाया था उसमें उन ही का पाँव फंसा।
Las naciones se hundieron en la fosa que cavaron, Sus pies fueron atrapados en la red que ellos mismos escondieron.
16 ख़ुदावन्द की शोहरत फैल गई, उसने इन्साफ़ किया है; शरीर अपने ही हाथ के कामों में फंस गया है। हरगायून, (सिलाह)
Yavé se dio a conocer. Impartió justicia. El perverso fue atrapado en la obra de sus propias manos. Meditación. (Selah)
17 शरीर पाताल में जाएँगे, या'नी वह सब क़ौमें जो ख़ुदा को भूल जाती हैं (Sheol )
Los perversos serán trasladados al Seol, Todas las gentes que se olvidan de ʼElohim. (Sheol )
18 क्यूँकि ग़रीब सदा भूले बिसरे न रहेंगे, न ग़रीबों की उम्मीद हमेशा के लिए टूटेगी।
Porque el pobre no será olvidado para siempre, Ni perecerá la esperanza de los afligidos para siempre.
19 उठ, ऐ ख़ुदावन्द! इंसान ग़ालिब न होने पाए। क़ौमों की 'अदालत तेरे सामने हो।
¡Levántate, oh Yavé, y no prevalezca el mortal! ¡Sean las naciones juzgadas delante de Ti!
20 ऐ ख़ुदावन्द! उनको ख़ौफ़ दिला। क़ौमें अपने आपको इंसान ही जानें।
¡Infúndeles tu terror, oh Yavé, Y conozcan las naciones que no son sino hombres!