< ज़बूर 88 >
1 ऐ ख़ुदावन्द, मेरी नजात देने वाले ख़ुदा, मैंने रात दिन तेरे सामने फ़रियाद की है।
A song of a Psalm for the sons of Core for the end, upon Maeleth for responsive [strains], of instruction for Aeman the Israelite. O Lord God of my salvation, I have cried by day and in the night before thee.
2 मेरी दुआ तेरे सामने पहुँचे, मेरी फ़रियाद पर कान लगा!
Let my prayer come in before thee; incline thine ear to my supplication, O Lord.
3 क्यूँकि मेरा दिल दुखों से भरा है, और मेरी जान पाताल के नज़दीक पहुँच गई है। (Sheol )
For my soul is filled with troubles, and my life has drawn nigh to Hades. (Sheol )
4 मैं क़ब्र में उतरने वालों के साथ गिना जाता हूँ। मैं उस शख़्स की तरह हूँ, जो बिल्कुल बेकस हो।
I have been reckoned with them that go down to the pit; I became as a man without help;
5 जैसे मक़्तूलो की तरह जो क़ब्र में पड़े हैं, मुर्दों के बीच डाल दिया गया हूँ, जिनको तू फिर कभी याद नहीं करता और वह तेरे हाथ से काट डाले गए।
free among the dead, as the slain ones cast out, who sleep in the tomb; whom thou rememberest no more; and they are rejected from thy hand.
6 तूने मुझे गहराओ में, अँधेरी जगह में, पाताल की तह में रख्खा है।
They laid me in the lowest pit, in dark [places], and in the shadow of death.
7 मुझ पर तेरा क़हर भारी है, तूने अपनी सब मौजों से मुझे दुख दिया है। (सिलाह)
Thy wrath has pressed heavily upon me, and thou hast brought upon me all thy billows. (Pause)
8 तूने मेरे जान पहचानों को मुझ से दूर कर दिया; तूने मुझे उनके नज़दीक घिनौना बना दिया। मैं बन्द हूँ और निकल नहीं सकता।
Thou hast removed my acquaintance far from me; they have made me an abomination to themselves; I have been delivered up, and have not gone forth.
9 मेरी आँख दुख से धुंधला चली। ऐ ख़ुदावन्द, मैंने हर रोज़ तुझ से दुआ की है; मैंने अपने हाथ तेरी तरफ़ फैलाए हैं।
Mine eyes are dimmed from poverty; but I cried to thee, O Lord, all the day; I spread forth my hands to thee.
10 क्या तू मुर्दों को 'अजायब दिखाएगा? क्या वह जो मर गए हैं उठ कर तेरी ता'रीफ़ करेंगे? (सिलाह)
Wilt thou work wonders for the dead? or shall physicians raise [them] up, that they shall praise thee?
11 क्या तेरी शफ़क़त का ज़िक्र क़ब्र में होगा, या तेरी वफ़ादारी का जहन्नुम में?
Shall any one declare thy mercy in the tomb? and thy truth in destruction?
12 क्या तेरे 'अजायब को अंधेरे में पहचानेंगे, और तेरी सदाक़त को फ़रामोशी की सरज़मीन में?
Shall thy wonders be known in darkness? and thy righteousness in a forgotten land?
13 लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तो तेरी दुहाई दी है; और सुबह को मेरी दुआ तेरे सामने पहुँचेगी।
But I cried to thee, O Lord; and in the morning shall my prayer prevent thee.
14 ऐ ख़ुदावन्द, तू क्यूँ। मेरी जान को छोड़ देता है? तू अपना चेहरा मुझ से क्यूँ छिपाता है?
Wherefore, O Lord, dost thou reject my prayer, [and] turn thy face away from me?
15 मैं लड़कपन ही से मुसीबतज़दा और मौत के क़रीब हूँ मैं तेरे डर के मारे बद हवास हो गया।
I am poor and in troubles from my youth; and having been exalted, I was brought low and into despair.
16 तेरा क़हर — ए — शदीद मुझ पर आ पड़ा: तेरी दहशत ने मेरा काम तमाम कर दिया।
Thy wrath has passed over me; and thy terrors have greatly disquieted me.
17 उसने दिनभर सैलाब की तरह मेरा घेराव किया; उसने मुझे बिल्कुल घेर लिया।
They compassed me like water; all the day they beset me together.
18 तूने दोस्त व अहबाब को मुझ से दूर किया और मेरे जान पहचानों को अंधेरे में डाल दिया है।
Thou hast put far from me [every] friend, and mine acquaintances because of [my] wretchedness.