< ज़बूर 88 >

1 ऐ ख़ुदावन्द, मेरी नजात देने वाले ख़ुदा, मैंने रात दिन तेरे सामने फ़रियाद की है।
A Song. A Psalm by the sons of Korah. For the Chief Musician. To the tune of “The Suffering of Affliction.” A contemplation by Heman, the Ezrahite. LORD, the God of my salvation, I have cried day and night before you.
2 मेरी दुआ तेरे सामने पहुँचे, मेरी फ़रियाद पर कान लगा!
Let my prayer enter into your presence. Turn your ear to my cry.
3 क्यूँकि मेरा दिल दुखों से भरा है, और मेरी जान पाताल के नज़दीक पहुँच गई है। (Sheol h7585)
For my soul is full of troubles. My life draws near to Sheol (Sheol h7585).
4 मैं क़ब्र में उतरने वालों के साथ गिना जाता हूँ। मैं उस शख़्स की तरह हूँ, जो बिल्कुल बेकस हो।
I am counted among those who go down into the pit. I am like a man who has no help,
5 जैसे मक़्तूलो की तरह जो क़ब्र में पड़े हैं, मुर्दों के बीच डाल दिया गया हूँ, जिनको तू फिर कभी याद नहीं करता और वह तेरे हाथ से काट डाले गए।
set apart among the dead, like the slain who lie in the grave, whom you remember no more. They are cut off from your hand.
6 तूने मुझे गहराओ में, अँधेरी जगह में, पाताल की तह में रख्खा है।
You have laid me in the lowest pit, in the darkest depths.
7 मुझ पर तेरा क़हर भारी है, तूने अपनी सब मौजों से मुझे दुख दिया है। (सिलाह)
Your wrath lies heavily on me. You have afflicted me with all your waves. (Selah)
8 तूने मेरे जान पहचानों को मुझ से दूर कर दिया; तूने मुझे उनके नज़दीक घिनौना बना दिया। मैं बन्द हूँ और निकल नहीं सकता।
You have taken my friends from me. You have made me an abomination to them. I am confined, and I cannot escape.
9 मेरी आँख दुख से धुंधला चली। ऐ ख़ुदावन्द, मैंने हर रोज़ तुझ से दुआ की है; मैंने अपने हाथ तेरी तरफ़ फैलाए हैं।
My eyes are dim from grief. I have called on you daily, LORD. I have spread out my hands to you.
10 क्या तू मुर्दों को 'अजायब दिखाएगा? क्या वह जो मर गए हैं उठ कर तेरी ता'रीफ़ करेंगे? (सिलाह)
Do you show wonders to the dead? Do the departed spirits rise up and praise you? (Selah)
11 क्या तेरी शफ़क़त का ज़िक्र क़ब्र में होगा, या तेरी वफ़ादारी का जहन्नुम में?
Is your loving kindness declared in the grave? Or your faithfulness in Destruction?
12 क्या तेरे 'अजायब को अंधेरे में पहचानेंगे, और तेरी सदाक़त को फ़रामोशी की सरज़मीन में?
Are your wonders made known in the dark? Or your righteousness in the land of forgetfulness?
13 लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तो तेरी दुहाई दी है; और सुबह को मेरी दुआ तेरे सामने पहुँचेगी।
But to you, LORD, I have cried. In the morning, my prayer comes before you.
14 ऐ ख़ुदावन्द, तू क्यूँ। मेरी जान को छोड़ देता है? तू अपना चेहरा मुझ से क्यूँ छिपाता है?
LORD, why do you reject my soul? Why do you hide your face from me?
15 मैं लड़कपन ही से मुसीबतज़दा और मौत के क़रीब हूँ मैं तेरे डर के मारे बद हवास हो गया।
I am afflicted and ready to die from my youth up. While I suffer your terrors, I am distracted.
16 तेरा क़हर — ए — शदीद मुझ पर आ पड़ा: तेरी दहशत ने मेरा काम तमाम कर दिया।
Your fierce wrath has gone over me. Your terrors have cut me off.
17 उसने दिनभर सैलाब की तरह मेरा घेराव किया; उसने मुझे बिल्कुल घेर लिया।
They came around me like water all day long. They completely engulfed me.
18 तूने दोस्त व अहबाब को मुझ से दूर किया और मेरे जान पहचानों को अंधेरे में डाल दिया है।
You have put lover and friend far from me, and my friends into darkness.

< ज़बूर 88 >