< ज़बूर 82 >
1 ख़ुदा की जमा'अत में ख़ुदा मौजूद है। वह इलाहों के बीच 'अदालत करता है:
[Ein Psalm; von Asaph.] Gott steht in der Versammlung [Anderswo üb.: Gemeinde] Gottes, [El] inmitten der Götter [d. h. der Richter; vergl. 2. Mose 21,6] richtet er.
2 “तुम कब तक बेइन्साफ़ी से 'अदालत करोगे, और शरीरों की तरफ़दारी करोगे? (सिलाह)
Bis wann wollt ihr ungerecht richten und die Person der Gesetzlosen ansehen? (Sela)
3 ग़रीब और यतीम का इन्साफ़ करो, ग़मज़दा और मुफ़लिस के साथ इन्साफ़ से पेश आओ।
Schaffet Recht dem Geringen und der Waise; dem Elenden und dem Armen lasset Gerechtigkeit widerfahren!
4 ग़रीब और मोहताज को बचाओ; शरीरों के हाथ से उनको छुड़ाओ।”
Befreiet den Geringen und den Dürftigen, errettet ihn aus der Hand der Gesetzlosen!
5 वह न तो कुछ जानते हैं न समझते हैं, वह अंधेरे में इधर उधर चलते हैं; ज़मीन की सब बुनियादें हिल गई हैं।
Sie wissen nichts und verstehen nichts, in Finsternis wandeln sie einher: es wanken alle Grundfesten der Erde. [O. des Landes]
6 मैंने कहा था, “तुम इलाह हो, और तुम सब हक़ता'ला के फ़र्ज़न्द हो;
Ich habe gesagt: Ihr seid Götter, und Söhne des Höchsten ihr alle!
7 तोभी तुम आदमियों की तरह मरोगे, और 'उमरा में से किसी की तरह गिर जाओगे।”
Doch wie ein Mensch werdet ihr sterben, und wie einer der Fürsten werdet ihr fallen.
8 ऐ ख़ुदा! उठ ज़मीन की 'अदालत कर क्यूँकि तू ही सब क़ौमों का मालिक होगा।
Stehe auf, o Gott, richte die Erde! denn du wirst zum Erbteil haben alle Nationen.