< ज़बूर 77 >
1 मैं बुलन्द आवाज़ से ख़ुदा के सामने फ़रियाद करूँगा ख़ुदा ही के सामने बुलन्द आवाज़ से, और वह मेरी तरफ़ कान लगाएगा।
Dem Vorsänger, für Jeduthun. Von Asaph, ein Psalm. Meine Stimme ist zu Gott, und ich will schreien; meine Stimme ist zu Gott, und er wird mir Gehör schenken.
2 अपनी मुसीबत के दिन मैंने ख़ुदावन्द को ढूँढा, मेरे हाथ रात को फैले रहे और ढीले न हुए; मेरी जान को तस्कीन न हुई।
Am Tage meiner Drangsal suchte ich den Herrn; meine Hand war des Nachts ausgestreckt und ließ nicht ab; meine Seele weigerte sich getröstet zu werden.
3 मैं ख़ुदा को याद करता हूँ और बेचैन हूँ मैं वावैला करता हूँ और मेरी जान निढाल है।
Ich gedachte Gottes, und ich stöhnte; ich sann nach, und mein Geist ermattete. (Sela)
4 तू मेरी आँखें खुली रखता है; मैं ऐसा बेताब हूँ कि बोल नहीं सकता।
Du hieltest fest die Lider meiner Augen; ich war voll Unruhe und redete nicht.
5 मैं गुज़रे दिनों पर, या'नी क़दीम ज़माने के बरसों पर सोचता रहा।
Ich durchdachte die Tage vor alters, die Jahre der Urzeit.
6 मुझे रात को अपना हम्द याद आता है; मैं अपने दिल ही में सोचता हूँ। मेरी रूह बड़ी तफ़्तीश में लगी है:
Ich gedachte meines Saitenspiels in der Nacht; ich sann nach in meinem Herzen, und es forschte mein Geist.
7 “क्या ख़ुदावन्द हमेशा के लिए छोड़ देगा? क्या वह फिर कभी मेंहरबान न होगा?
Wird der Herr auf ewig verwerfen, und hinfort keine Gunst mehr erweisen?
8 क्या उसकी शफ़क़त हमेशा के लिए जाती रही? क्या उसका वा'दा हमेशा तक बातिल हो गया?
Ist zu Ende seine Güte für immer? Hat das Wort aufgehört von Geschlecht zu Geschlecht?
9 क्या ख़ुदा करम करना भूल गया? क्या उसने क़हर से अपनी रहमत रोक ली?” (सिलाह)
Hat Gott vergessen gnädig zu sein? Hat er im Zorn verschlossen seine Erbarmungen? (Sela)
10 फिर मैंने कहा, “यह मेरी ही कमज़ोरी है; मैं तो हक़ ता'ला की कुदरत के ज़माने को याद करूँगा।”
Da sprach ich: Das ist mein Kranksein. Der Jahre der Rechten des Höchsten,
11 मैं ख़ुदावन्द के कामों का ज़िक्र करूँगा; क्यूँकि मुझे तेरे क़दीम 'अजाईब यादआएँगे।
will ich gedenken, der Taten des Jah; denn deiner Wunder von alters her will ich gedenken;
12 मैं तेरी सारी सन'अत पर ध्यान करूँगा, और तेरे कामों को सोचूँगा।
und ich will nachdenken über all dein Tun, und über deine Taten will ich sinnen.
13 ऐ ख़ुदा, तेरी राह मक़दिस में है। कौन सा देवता ख़ुदा की तरह बड़ा है।
Gott! Dein Weg ist im Heiligtum; wer ist ein großer Gott wie Gott?
14 तू वह ख़ुदा है जो 'अजीब काम करता है, तूने क़ौमों के बीच अपनी क़ुदरत ज़ाहिर की।
Du bist der Gott, der Wunder tut, du hast deine Stärke kundwerden lassen unter den Völkern.
15 तूने अपने ही बाज़ू से अपनी क़ौम, बनी या'क़ूब और बनी यूसुफ़ को फ़िदिया देकर छुड़ाया है।
Du hast dein Volk erlöst mit erhobenem Arm, die Söhne Jakobs und Josephs. (Sela)
16 ऐ ख़ुदा, समन्दरों ने तुझे देखा, समन्दर तुझे देख कर डर गए, गहराओ भी काँप उठे।
Dich sahen die Wasser, o Gott, dich sahen die Wasser: sie bebten; ja, es erzitterten die Tiefen.
17 बदलियों ने पानी बरसाया, आसमानों से आवाज़ आई, तेरे तीर भी चारों तरफ़ चले।
Die Wolken ergossen Wasser; das Gewölk ließ eine Stimme erschallen, und deine Pfeile fuhren hin und her.
18 बगोले में तेरे गरज़ की आवाज़ थी, बर्क़ ने जहान को रोशन कर दिया, ज़मीन लरज़ी और काँपी।
Die Stimme deines Donners war im Wirbelwind, Blitze erleuchteten den Erdkreis; es zitterte und bebte die Erde.
19 तेरी राह समन्दर में है, तेरे रास्ते बड़े समुन्दरों में हैं; और तेरे नक़्श — ए — क़दम ना मा'लूम हैं।
Im Meere ist dein Weg, und deine Pfade in großen Wassern, und deine Fußstapfen sind nicht bekannt.
20 तूने मूसा और हारून के वसीले से, क़ि'ला की तरह अपने लोगों की रहनुमाई की।
Du hast dein Volk geleitet wie eine Herde durch die Hand Moses und Aarons.