< ज़बूर 69 >

1 ऐ ख़ुदा मुझ को बचा ले, क्यूँकि पानी मेरी जान तक आ पहुँचा है।
Au chef de musique. Sur Shoshannim. De David. Sauve-moi, ô Dieu! car les eaux [me] sont entrées jusque dans l’âme.
2 मैं गहरी दलदल में धंसा जाता हूँ, जहाँ खड़ा नहीं रहा जाता; मैं गहरे पानी में आ पड़ा हूँ, जहाँ सैलाब मेरे सिर पर से गुज़रता है।
Je suis enfoncé dans une boue profonde, et il n’y a pas où prendre pied; je suis entré dans la profondeur des eaux, et le courant me submerge.
3 मैं चिल्लाते चिल्लाते थक गया, मेरा गला सूख गया; मेरी आँखें अपने ख़ुदा के इन्तिज़ार में पथरा गई।
Je suis las de crier; mon gosier est desséché; mes yeux se consument, pendant que j’attends mon Dieu.
4 मुझ से बे वजह 'अदावत रखने वाले, मेरे सिर के बालों से ज़्यादा हैं; मेरी हलाकत के चाहने वाले और नाहक़ दुश्मन ज़बरदस्त हैं, तब जो मैंने छीना नहीं मुझे देना पड़ा।
Ceux qui me haïssent sans cause sont plus nombreux que les cheveux de ma tête; ceux qui voudraient me perdre, qui sont à tort mes ennemis, sont puissants; ce que je n’avais pas ravi, je l’ai alors rendu.
5 ऐ ख़ुदा, तू मेरी बेवक़ूफ़ी से वाक़िफ़ है, और मेरे गुनाह तुझ से पोशीदा नहीं हैं।
Ô Dieu! tu connais ma folie, et mes fautes ne te sont pas cachées.
6 ऐ ख़ुदावन्द, लश्करों के ख़ुदा, तेरी उम्मीद रखने वाले मेरी वजह से शर्मिन्दा न हों, ऐ इस्राईल के ख़ुदा, तेरे तालिब मेरी वजह से रुस्वा न हों।
Que ceux qui s’attendent à toi ne soient pas rendus honteux à cause de moi, Seigneur, Éternel des armées! Que ceux qui te cherchent ne soient pas rendus confus à cause de moi, ô Dieu d’Israël!
7 क्यूँकि तेरे नाम की ख़ातिर मैंने मलामत उठाई है, शर्मिन्दगी मेरे मुँह पर छा गई है।
Car à cause de toi j’ai porté l’opprobre, la confusion a couvert mon visage.
8 मैं अपने भाइयों के नज़दीक बेगाना बना हूँ, और अपनी माँ के फ़रज़न्दों के नज़दीक अजनबी।
Je suis devenu un étranger à mes frères, et un inconnu aux fils de ma mère;
9 क्यूँकि तेरे घर की गै़रत मुझे खा गई, और तुझ को मलामत करने वालों की मलामतें मुझ पर आ पड़ीं हैं।
Car le zèle de ta maison m’a dévoré, et les outrages de ceux qui t’outragent sont tombés sur moi.
10 मेरे रोज़ा रखने से मेरी जान ने ज़ारी की, और यह भी मेरी मलामत का ज़रिए' हुआ।
Et j’ai pleuré, mon âme était dans le jeûne; et cela m’a été en opprobre.
11 जब मैं ने टाट ओढ़ा, तो उनके लिए ज़र्ब — उल — मसल ठहरा।
J’ai pris aussi un sac pour mon vêtement, et je leur suis devenu un proverbe.
12 फाटक पर बैठने वालों में मेरा ही ज़िक्र रहता है, और मैं नशे बाज़ों का हम्द हूँ।
Ceux qui sont assis dans la porte parlent contre moi, et je sers de chanson aux buveurs.
13 लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, तेरी ख़ुशनूदी के वक़्त मेरी दुआ तुझ ही से है; ऐ ख़ुदा, अपनी शफ़क़त की फ़िरावानी से, अपनी नजात की सच्चाई में जवाब दे।
Mais, pour moi, ma prière s’adresse à toi, Éternel, en un temps agréé. – Ô Dieu! selon la grandeur de ta bonté, réponds-moi selon la vérité de ton salut.
14 मुझे दलदल में से निकाल ले और धसने न दे: मुझ से 'अदावत रखने वालों, और गहरे पानी से मुझे बचा ले।
Délivre-moi du bourbier, et que je n’y enfonce point; que je sois délivré de ceux qui me haïssent et des profondeurs des eaux.
15 मैं सैलाब में डूब न जाऊँ, और गहराव मुझे निगल न जाए, और पाताल मुझ पर अपना मुँह बन्द न कर ले
Que le courant des eaux ne me submerge pas, et que la profondeur ne m’engloutisse pas, et que le puits ne ferme pas sa gueule sur moi.
16 ऐ ख़ुदावन्द, मुझे जवाब दे, क्यूँकि मेरी शफ़क़त ख़ूब है अपनी रहमतों की कसरत के मुताबिक़ मेरी तरफ़ मुतवज्जिह हो।
Réponds-moi, ô Éternel! car ta gratuité est bonne; selon la grandeur de tes compassions, tourne-toi vers moi;
17 अपने बन्दे से रूपोशी न कर; क्यूँकि मैं मुसीबत में हूँ, जल्द मुझे जवाब दे।
Et ne cache pas ta face de ton serviteur, car je suis en détresse. Hâte-toi, réponds-moi.
18 मेरी जान के पास आकर उसे छुड़ा ले मेरे दुश्मनों के सामने मेरा फ़िदिया दे।
Approche-toi de mon âme, sois son rédempteur; rachète-moi à cause de mes ennemis.
19 तू मेरी मलामत और शर्मिन्दगी और रुस्वाई से वाक़िफ़ है; मेरे दुश्मन सब के सब तेरे सामने हैं।
Toi, tu connais mon opprobre, et ma honte, et ma confusion: tous mes adversaires sont devant toi.
20 मलामत ने मेरा दिल तोड़ दिया, मैं बहुत उदास हूँ और मैं इसी इन्तिज़ार में रहा कि कोई तरस खाए लेकिन कोई न था; और तसल्ली देने वालों का मुन्तज़िर रहा लेकिन कोई न मिला।
L’opprobre m’a brisé le cœur, et je suis accablé; et j’ai attendu que [quelqu’un] ait compassion [de moi], mais il n’y a eu personne, … et des consolateurs, mais je n’en ai pas trouvé.
21 उन्होंने मुझे खाने को इन्द्रायन भी दिया, और मेरी प्यास बुझाने को उन्होंने मुझे सिरका पिलाया।
Ils ont mis du fiel dans ma nourriture, et, dans ma soif, ils m’ont abreuvé de vinaigre.
22 उनका दस्तरख़्वान उनके लिए फंदा हो जाए। और जब वह अमन से हों तो जाल बन जाए।
Que leur table soit un piège devant eux, et que ce qui tend à la prospérité leur soit un filet;
23 उनकी आँखें तारीक हो जाएँ, ताकि वह देख न सके, और उनकी कमरें हमेशा काँपती रहें।
Que leurs yeux soient obscurcis de sorte qu’ils ne voient pas, et fais continuellement chanceler leurs reins.
24 अपना ग़ज़ब उन पर उँडेल दे, और तेरा शदीद क़हर उन पर आ पड़े।
Répands sur eux ton indignation, et que l’ardeur de ta colère les atteigne.
25 उनका घर उजड़ जाए, उनके खे़मों में कोई न बसे।
Que leur demeure soit désolée, qu’il n’y ait personne qui habite dans leurs tentes.
26 क्यूँकि वह उसको जिसे तूने मारा है और जिनको तूने जख़्मी किया है, उनके दुख का ज़िक्र करते हैं।
Car ils persécutent celui que toi tu as frappé, et parlent pour la douleur de ceux que tu as blessés.
27 उनके गुनाह पर गुनाह बढ़ा; और वह तेरी सदाक़त में दाख़िल न हों।
Mets iniquité sur leur iniquité, et qu’ils n’entrent pas en ta justice;
28 उनके नाम किताब — ए — हयात से मिटा और सादिकों के साथ मुन्दर्ज न हों।
Qu’ils soient effacés du livre de vie, et qu’ils ne soient pas inscrits avec les justes.
29 लेकिन मैं तो ग़रीब और ग़मगीन हूँ। ऐ ख़ुदा तेरी नजात मुझे सर बुलन्द करे।
Mais pour moi, je suis affligé et dans la douleur: que ton salut, ô Dieu, m’élève en un lieu de sûreté!
30 मैं हम्द गाकर ख़ुदा के नाम की ता'रीफ़ करूँगा, और शुक्रगुज़ारी के साथ उसकी तम्जीद करूँगा।
Je louerai le nom de Dieu dans un cantique, et je le magnifierai par ma louange;
31 यह ख़ुदावन्द को बैल से ज़्यादा पसन्द होगा, बल्कि सींग और खुर वाले बछड़े से ज़्यादा।
Et cela plaira plus à l’Éternel qu’un taureau, un bœuf qui a des cornes et l’ongle divisé.
32 हलीम इसे देख कर ख़ुश हुए हैं; ऐ ख़ुदा के तालिबो, तुम्हारे दिल ज़िन्दा रहें।
Les débonnaires le verront, ils se réjouiront; vous qui cherchez Dieu, votre cœur vivra.
33 क्यूँकि ख़ुदावन्द मोहताजों की सुनता है, और अपने क़ैदियों को हक़ीर नहीं जानता।
Car l’Éternel écoute les pauvres, et ne méprise pas ses prisonniers.
34 आसमान और ज़मीन उसकी ता'रीफ़ करें, और समन्दर और जो कुछ उनमें चलता फिरता है।
Les cieux et la terre le loueront, les mers et tout ce qui se meut en elles.
35 क्यूँकि ख़ुदा सिय्यून को बचाएगा, और यहूदाह के शहरों को बनाएगा; और वह वहाँ बसेंगे और उसके वारिस होंगे।
Car Dieu sauvera Sion, et bâtira les villes de Juda; et on y habitera, et on la possédera;
36 उसके बन्दों की नसल भी उसकी मालिक होगी, और उसके नाम से मुहब्बत रखने वाले उसमें बसेंगे।
Et la semence de ses serviteurs l’héritera, et ceux qui aiment son nom y demeureront.

< ज़बूर 69 >