< ज़बूर 65 >
1 ऐ ख़ुदा, सिय्यून में ता'रीफ़ तेरी मुन्तज़िर है; और तेरे लिए मिन्नत पूरी की जाएगी।
Dem Sangmeister, ein Psalm Davids. Ein Lied.
2 ऐ दुआ के सुनने वाले! सब बशर तेरे पास आएँगे।
Dir gebührt, Elohim, in Zion ein Lobgesang, / Dir soll man Gelübde bezahlen.
3 बद आ'माल मुझ पर ग़ालिब आ जाते हैं; लेकिन हमारी ख़ताओं का कफ़्फ़ारा तू ही देगा।
Du erhörest Gebete; / Drum kommen alle Menschen zu dir.
4 मुबारक है वह आदमी जिसे तू बरगुज़ीदा करता और अपने पास आने देता है, ताकि वह तेरी बारगाहों में रहे। हम तेरे घर की खू़बी से, या'नी तेरी पाक हैकल से आसूदा होंगे।
Sind meine Sünden mir unerträglich — / Du wirst unsre Frevel vergeben.
5 ऐ हमारे नजात देने वाले ख़ुदा! तू जो ज़मीन के सब किनारों का और समन्दर पर दूर दूर रहने वालों का तकिया है; ख़ौफ़नाक बातों के ज़रिए' से तू हमें सदाक़त से जवाब देगा।
Heil dem, den du erwählst und nahen lässest, / Daß er weile in deinen Höfen! / Laß uns deines Hauses Segen genießen, / Deines heiligen Tempels Segen!
6 तू कु़दरत से कमरबस्ता होकर, अपनी ताक़त से पहाड़ों को मज़बूती बख़्शता है।
In Huld erhörst du uns furchtbar, Gott unsers Heils. / Dir vertraun alle Enden der Erde und fernen Meere.
7 तू समन्दर के और उसकी मौजों के शोर को, और उम्मतों के हँगामे को ख़त्म कर देता है।
Er festigt die Berge durch seine Kraft, / Er ist umgürtet mit Stärke.
8 ज़मीन की इन्तिहा के रहने वाले, तेरे मु'मुअजिज़ों से डरते हैं; तू मतला' — ए — सुबह को और शाम को ख़ुशी बख़्शता है।
Er stillet das Brausen des Meeres, seiner Wellen Gedröhn / Und das Tosen der Völker.
9 तू ज़मीन पर तवज्जुह करके उसे सेराब करता है, तू उसे खू़ब मालामाल कर देता है; ख़ुदा का दरिया पानी से भरा है; जब तू ज़मीन को यूँ तैयार कर लेता है तो उनके लिए अनाज मुहय्या करता है।
Drum zittern die fernsten Erdbewohner vor deinen Zeichen. / Ost und West erfüllst du mit Jubel.
10 उसकी रेघारियों को खू़ब सेराब उसकी मेण्डों को बिठा देता उसे बारिश से नर्म करता है, उसकी पैदावार में बरकत देता
Du hast des Landes gedacht, ihm Fülle verliehn, / Es mit Reichtum begabt. / Der Bach Elohims war mit Wasser gefüllt. / Du hast den Menschen Getreide geschenkt, / Hast das Land so fruchtbar gemacht.
11 तू साल को अपने लुत्फ़ का ताज पहनाता है; और तेरी राहों से रौग़न टपकता है।
Des Erdreichs Furchen hast du getränkt, seine Schollen erweicht, / Es durch Regen gelockert / Und sein Gewächs gesegnet.
12 वह बियाबान की चरागाहों पर टपकता है, और पहाड़ियाँ ख़ुशी से कमरबस्ता हैं।
Du hast das Jahr deiner Güte gekrönt, / Und deine Geleise triefen von Fett.
13 चरागाहों में झुंड के झुंड फैले हुए हैं, वादियाँ अनाज से ढकी हुई हैं, वह ख़ुशी के मारे ललकारती और गाती हैं।
Es triefen die Auen der Steppe, / Mit Jubel die Hügel sich gürten. Es sind die Fluren mit Herden bedeckt, / Die Täler mit Korn gehüllt — / Alles jauchzet und singt!