< ज़बूर 65 >

1 ऐ ख़ुदा, सिय्यून में ता'रीफ़ तेरी मुन्तज़िर है; और तेरे लिए मिन्नत पूरी की जाएगी।
Jusqu'à la Fin. Hymne de David, inspiré des paroles de Jérémie et Ezéchiel à l'époque de la déportation, et quand ils étaient sur le point de sortir. O Dieu, il convient en Sion de te chanter des hymnes; et des vœux te seront rendus.
2 ऐ दुआ के सुनने वाले! सब बशर तेरे पास आएँगे।
Exauce ma prière; toute chair ira à toi.
3 बद आ'माल मुझ पर ग़ालिब आ जाते हैं; लेकिन हमारी ख़ताओं का कफ़्फ़ारा तू ही देगा।
Les paroles des méchants ont prévalu contre nous; mais tu nous pardonneras nos impiétés.
4 मुबारक है वह आदमी जिसे तू बरगुज़ीदा करता और अपने पास आने देता है, ताकि वह तेरी बारगाहों में रहे। हम तेरे घर की खू़बी से, या'नी तेरी पाक हैकल से आसूदा होंगे।
Heureux celui que tu auras élu et adopté; il habitera en tes parvis. Nous nous rassasierons des biens de ta demeure. Ton temple est saint; il est admirable en justice.
5 ऐ हमारे नजात देने वाले ख़ुदा! तू जो ज़मीन के सब किनारों का और समन्दर पर दूर दूर रहने वालों का तकिया है; ख़ौफ़नाक बातों के ज़रिए' से तू हमें सदाक़त से जवाब देगा।
Exauce-nous, ô Dieu notre Sauveur, espérance de toute la terre et de ceux qui sont au loin sur la mer.
6 तू कु़दरत से कमरबस्ता होकर, अपनी ताक़त से पहाड़ों को मज़बूती बख़्शता है।
Par ta force tu as formé les monts; tu es revêtu de puissance.
7 तू समन्दर के और उसकी मौजों के शोर को, और उम्मतों के हँगामे को ख़त्म कर देता है।
Tu ébranles l'abîme de la mer, et ses flots retentissent; et les nations seront troublées.
8 ज़मीन की इन्तिहा के रहने वाले, तेरे मु'मुअजिज़ों से डरते हैं; तू मतला' — ए — सुबह को और शाम को ख़ुशी बख़्शता है।
Et ceux qui demeurent aux confins de la terre seront saisis de crainte, à cause de tes signes; tu répandras la joie de l'Orient à l'Occident.
9 तू ज़मीन पर तवज्जुह करके उसे सेराब करता है, तू उसे खू़ब मालामाल कर देता है; ख़ुदा का दरिया पानी से भरा है; जब तू ज़मीन को यूँ तैयार कर लेता है तो उनके लिए अनाज मुहय्या करता है।
Tu as visité la terre, et tu l'as enivrée; tu as multiplié tes dons pour l'enrichir. Le fleuve de Dieu a été rempli d'eau; tu as préparé leur nourriture: voilà comment est fertilisée la terre.
10 उसकी रेघारियों को खू़ब सेराब उसकी मेण्डों को बिठा देता उसे बारिश से नर्म करता है, उसकी पैदावार में बरकत देता
Abreuve ses sillons, multiplie ses fruits; la récolte qui germe se réjouira de ses rosées.
11 तू साल को अपने लुत्फ़ का ताज पहनाता है; और तेरी राहों से रौग़न टपकता है।
Tu béniras le cercle des mois qui est la couronne de ta bonté, et tes champs seront remplis d'abondance.
12 वह बियाबान की चरागाहों पर टपकता है, और पहाड़ियाँ ख़ुशी से कमरबस्ता हैं।
Les montagnes du désert seront engraissées, et les collines seront revêtues d'allégresse.
13 चरागाहों में झुंड के झुंड फैले हुए हैं, वादियाँ अनाज से ढकी हुई हैं, वह ख़ुशी के मारे ललकारती और गाती हैं।
Les béliers du troupeau sont couverts de toison; les vallées regorgeront de froment; elles crieront, et chanteront un hymne au Seigneur.

< ज़बूर 65 >