< ज़बूर 65 >

1 ऐ ख़ुदा, सिय्यून में ता'रीफ़ तेरी मुन्तज़िर है; और तेरे लिए मिन्नत पूरी की जाएगी।
For the Chief Musician. A Psalm. A Song of David. Praise waiteth for thee, O God, in Zion: and unto thee shall the vow be performed.
2 ऐ दुआ के सुनने वाले! सब बशर तेरे पास आएँगे।
O thou that hearest prayer, unto thee shall all flesh come.
3 बद आ'माल मुझ पर ग़ालिब आ जाते हैं; लेकिन हमारी ख़ताओं का कफ़्फ़ारा तू ही देगा।
Iniquities prevail against me: as for our transgressions, thou shalt purge them away.
4 मुबारक है वह आदमी जिसे तू बरगुज़ीदा करता और अपने पास आने देता है, ताकि वह तेरी बारगाहों में रहे। हम तेरे घर की खू़बी से, या'नी तेरी पाक हैकल से आसूदा होंगे।
Blessed is the man whom thou choosest, and causest to approach [unto thee], that he may dwell in thy courts: we shall be satisfied with the goodness of thy house, the holy place of thy temple.
5 ऐ हमारे नजात देने वाले ख़ुदा! तू जो ज़मीन के सब किनारों का और समन्दर पर दूर दूर रहने वालों का तकिया है; ख़ौफ़नाक बातों के ज़रिए' से तू हमें सदाक़त से जवाब देगा।
By terrible things thou wilt answer us in righteousness, O God of our salvation; thou that art the confidence of all the ends of the earth, and of them that are afar off upon the sea:
6 तू कु़दरत से कमरबस्ता होकर, अपनी ताक़त से पहाड़ों को मज़बूती बख़्शता है।
Which by his strength setteth fast the mountains; being girded about with might:
7 तू समन्दर के और उसकी मौजों के शोर को, और उम्मतों के हँगामे को ख़त्म कर देता है।
Which stilleth the roaring of the seas, the roaring of their waves, and the tumult of the peoples.
8 ज़मीन की इन्तिहा के रहने वाले, तेरे मु'मुअजिज़ों से डरते हैं; तू मतला' — ए — सुबह को और शाम को ख़ुशी बख़्शता है।
They also that dwell in the uttermost parts are afraid at thy tokens: thou makest the outgoings of the morning and evening to rejoice.
9 तू ज़मीन पर तवज्जुह करके उसे सेराब करता है, तू उसे खू़ब मालामाल कर देता है; ख़ुदा का दरिया पानी से भरा है; जब तू ज़मीन को यूँ तैयार कर लेता है तो उनके लिए अनाज मुहय्या करता है।
Thou visitest the earth, and waterest it, thou greatly enrichest it; the river of God is full of water: thou providest them corn, when thou hast so prepared the earth.
10 उसकी रेघारियों को खू़ब सेराब उसकी मेण्डों को बिठा देता उसे बारिश से नर्म करता है, उसकी पैदावार में बरकत देता
Thou waterest her furrows abundantly; thou settlest the ridges thereof: thou makest it soft with showers; thou blessest the springing thereof.
11 तू साल को अपने लुत्फ़ का ताज पहनाता है; और तेरी राहों से रौग़न टपकता है।
Thou crownest the year with thy goodness; and thy paths drop fatness.
12 वह बियाबान की चरागाहों पर टपकता है, और पहाड़ियाँ ख़ुशी से कमरबस्ता हैं।
They drop upon the pastures of the wilderness: and the hills are girded with joy.
13 चरागाहों में झुंड के झुंड फैले हुए हैं, वादियाँ अनाज से ढकी हुई हैं, वह ख़ुशी के मारे ललकारती और गाती हैं।
The pastures are clothed with flocks; the valleys also are covered over with corn; they shout for joy, they also sing.

< ज़बूर 65 >