< ज़बूर 60 >
1 ऐ ख़ुदा, तूने हमें रद्द किया; तूने हमें शिकस्ता हाल कर दिया। तू नाराज़ रहा है। हमें फिर बहाल कर।
in finem his qui inmutabuntur in tituli inscriptione David in doctrina cum succendit Syriam Mesopotamiam et Syriam Soba et convertit Ioab et percussit vallem Salinarum duodecim milia Deus reppulisti nos et destruxisti nos iratus es et misertus es nobis
2 तूने ज़मीन को लरज़ा दिया; तूने उसे फाड़ डाला है। उसके रख़्ने बन्द कर दे क्यूँकि वह लरज़ाँ है।
commovisti terram et turbasti eam sana contritiones eius quia commota est
3 तूने अपने लोगों को सख़्तियाँ दिखाई, तूने हमको लड़खड़ा देने वाली मय पिलाई।
ostendisti populo tuo dura potasti nos vino conpunctionis
4 जो तुझ से डरते हैं, तूने उनको एक झंडा दिया है; ताकि वह हक़ की ख़ातिर बुलन्द किया जाएं। (सिलाह)
dedisti metuentibus te significationem ut fugiant a facie arcus diapsalma ut liberentur dilecti tui
5 अपने दहने हाथ से बचा और हमें जवाब दे, ताकि तेरे महबूब बचाए जाएँ।
salvum fac dextera tua et exaudi me
6 ख़ुदा ने अपनी पाकीज़गी में फ़रमाया है, “मैं ख़ुशी करूँगा; मैं सिकम को तक़सीम करूँगा, और सुकात की वादी को बाटूँगा।
Deus locutus est in sancto suo laetabor et partibor Sicima et convallem tabernaculorum metibor
7 जिल'आद मेरा है, मनस्सी भी मेरा है; इफ़्राईम मेरे सिर का खू़द है, यहूदाह मेरा 'असा है।
meus est Galaad et meus est Manasses et Effraim fortitudo capitis mei Iuda rex meus
8 मोआब मेरी चिलमची है, अदोम पर मैं जूता फेफूँगा; ऐ फ़िलिस्तीन, मेरी वजह से ललकार।”
Moab olla spei meae in Idumeam extendam calciamentum meum mihi alienigenae subditi sunt
9 मुझे उस मुहकम शहर में कौन पहुँचाएगा? कौन मुझे अदोम तक ले गया है?
quis deducet me in civitatem munitam quis deducet me usque in Idumeam
10 ऐ ख़ुदा, क्या तूने हमें रद्द नहीं कर दिया? ऐ ख़ुदा, तू हमारे लश्करों के साथ नहीं जाता।
nonne tu Deus qui reppulisti nos et non egredieris Deus in virtutibus nostris
11 मुख़ालिफ़ के मुक़ाबले में हमारी मदद कर, क्यूँकि इंसानी मदद बेकार है।
da nobis auxilium de tribulatione et vana salus hominis
12 ख़ुदा की मदद से हम बहादुरी करेंगे, क्यूँकि वही हमारे मुख़ालिफ़ों को पस्त करेगा।
in Deo faciemus virtutem et ipse ad nihilum deducet tribulantes nos