< ज़बूर 56 >
1 ऐ ख़ुदा! मुझ पर रहम फ़रमा, क्यूँकि इंसान मुझे निगलना चाहता है; वह दिन भर लड़कर मुझे सताता है।
Dem Vorsänger, nach: “Die Taube der fernen Terebinthen”. Von David, ein Gedicht, als die Philister ihn zu Gath ergriffen. Sei mir gnädig, o Gott! Denn es schnaubt nach mir der Mensch; den ganzen Tag mich befehdend, bedrückt er mich.
2 मेरे दुश्मन दिन भर मुझे निगलना चाहते हैं, क्यूँकि जो गु़रूर करके मुझ से लड़ते हैं, वह बहुत हैं।
Es schnauben meine Feinde den ganzen Tag; denn viele befehden mich in Hochmut.
3 जिस वक़्त मुझे डर लगेगा, मैं तुझ पर भरोसा करूँगा।
An dem Tage, da ich mich fürchte, vertraue ich auf dich.
4 मेरा फ़ख़्र ख़ुदा पर और उसके कलाम पर है। मेरा भरोसा ख़ुदा पर है, मैं डरने का नहीं: बशर मेरा क्या कर सकता है?
In Gott werde ich rühmen sein Wort; auf Gott vertraue ich, ich werde mich nicht fürchten; was sollte das Fleisch mir tun?
5 वह दिन भर मेरी बातों को मरोड़ते रहते हैं; उनके ख़याल सरासर यही हैं, कि मुझ से बदी करें।
Meine Worte verdrehen sie den ganzen Tag, alle ihre Gedanken sind wider mich zum Bösen.
6 वह इकठ्ठे होकर छिप जाते हैं; वह मेरे नक्श — ए — क़दम को देखते भालते हैं, क्यूँकि वह मेरी जान की घात में हैं।
Sie rotten sich zusammen, verstecken sich, sie beobachten meine Fersen, weil sie meiner Seele auflauern.
7 क्या वह बदकारी करके बच जाएँगे? ऐ ख़ुदा, क़हर में उम्मतों को गिरा दे!
Sollte bei ihrem Frevel Rettung für sie sein? Im Zorn stürze nieder die Völker, o Gott!
8 तू मेरी आवारगी का हिसाब रखता है; मेरे आँसुओं को अपने मश्कीज़े में रख ले। क्या वह तेरी किताब में लिखे नहीं हैं?
Mein Umherirren zählst du. Lege in deinen Schlauch meine Tränen; sind sie nicht in deinem Buche?
9 तब तो जिस दिन मैं फ़रियाद करूँगा, मेरे दुश्मन पस्पा होंगे। मुझे यह मा'लूम है कि ख़ुदा मेरी तरफ़ है।
Dann werden meine Feinde umkehren an dem Tage, da ich rufe; dieses weiß ich, daß Gott für mich ist.
10 मेरा फ़ख़्र ख़ुदा पर और उसके कलाम पर है; मेरा फ़ख़्र ख़ुदावन्द पर और उसके कलाम पर है।
In Gott werde ich rühmen das Wort, in Jehova werde ich rühmen das Wort.
11 मेरा भरोसा ख़ुदा पर है, मैं डरने का नहीं। इंसान मेरा क्या कर सकता है?
Auf Gott vertraue ich; ich werde mich nicht fürchten; was sollte der Mensch mir tun?
12 ऐ ख़ुदा! तेरी मन्नतें मुझ पर हैं; मैं तेरे हुजू़र शुक्रगुज़ारी की कु़र्बानियाँ पेश करूँगा।
Auf mir, o Gott, sind deine Gelübde, ich werde dir Dankopfer entrichten.
13 क्यूँकि तूने मेरी जान को मौत से छुड़ाया; क्या तूने मेरे पाँव को फिसलने से नहीं बचाया, ताकि मैं ख़ुदा के सामने ज़िन्दों के नूर में चलूँ?
Denn du hast meine Seele vom Tode errettet, ja, meine Füße vom Sturz, um zu wandeln vor dem Angesicht Gottes im Lichte der Lebendigen.