< ज़बूर 55 >

1 ऐ खु़दा! मेरी दुआ पर कान लगा; और मेरी मिन्नत से मुँह न फेर।
Inclina ó Deus os teus ouvidos à minha oração, e não te escondas da minha súplica.
2 मेरी तरफ़ मुतवज्जिह हो और मुझे जवाब दे; मैं ग़म से बेक़रार होकर कराहता हूँ।
Atende-me, e ouve-me: lamento na minha queixa, e faço ruído,
3 दुश्मन की आवाज़ से, और शरीर के जु़ल्म की वजह; क्यूँकि वह मुझ पर बदी लादते, और क़हर में मुझे सताते हैं।
Pelo clamor do inimigo e por causa da opressão do ímpio: pois lançou sobre mim a iniquidade, e com furor me aborrecem.
4 मेरा दिल मुझ में बेताब है; और मौत का हौल मुझ पर छा गया है।
O meu coração está dolorido dentro de mim, e terrores da morte cairam sobre mim.
5 ख़ौफ़ और कपकपी मुझ पर तारी है, डर ने मुझे दबा लिया है;
Temor e tremor vieram sobre mim; e o horror me cobriu.
6 और मैंने कहा, “काश कि कबूतर की तरह मेरे पर होते तो मैं उड़ जाता और आराम पाता!
Pelo que disse: Oh! quem me dera asas como de pomba! porque então voaria, e estaria em descanço.
7 फिर तो मैं दूर निकल जाता, और वीरान में बसेरा करता। (सिलाह)
Eis que fugiria para longe, e pernoitaria no deserto (Selah)
8 मैं आँधी के झोंके और तूफ़ान से, किसी पनाह की जगह में भाग जाता।”
Apressar-me-ia a escapar da fúria do vento e da tempestade.
9 ऐ ख़ुदावन्द! उनको हलाक कर, और उनकी ज़बान में तफ़रिक़ा डाल; क्यूँकि मैंने शहर में जु़ल्म और झगड़ा देखा है।
Despedaça, Senhor, e divide as suas línguas, pois tenho visto violência e contenda na cidade.
10 दिन रात वह उसकी फ़सील पर गश्त लगाते हैं; बदी और फ़साद उसके अंदर हैं।
De dia e de noite a cercam sobre os seus muros; iniquidade e malícia estão no meio dela.
11 शरारत उसके बीच में बसी हुई है; सितम और फ़रेब उसके कूचों से दूर नहीं होते।
Maldade há dentro dela: astúcia e engano não se apartam das suas ruas.
12 जिसने मुझे मलामत की वह दुश्मन न था, वरना मैं उसको बर्दाश्त कर लेता; और जिसने मेरे ख़िलाफ़ तकब्बुर किया वह मुझ से 'अदावत रखने वाला न था, नहीं तो मैं उससे छिप जाता।
Pois não era um inimigo que me afrontava: então eu o houvera suportado: nem era o que me aborrecia que se engrandecia contra mim, porque dele me teria escondido.
13 बल्कि वह तो तू ही था जो मेरा हमसर, मेरा रफ़ीक और दिली दोस्त था।
Mas eras tu, homem meu igual, meu guia e meu intimo amigo.
14 हमारी आपसी गुफ़्तगू शीरीन थी; और हुजूम के साथ ख़ुदा के घर में फिरते थे।
Consultávamos juntos suavemente, e andavamos em companhia na casa de Deus.
15 उनकी मौत अचानक आ दबाए; वह जीते जी पाताल में उतर जाएँ: क्यूँकि शरारत उनके घरों में और उनके अन्दर है। (Sheol h7585)
A morte os assalte, e vivos desçam ao inferno; porque há maldade nas suas habitações e no meio deles. (Sheol h7585)
16 लेकिन मैं तो ख़ुदा को पुकारूँगा; और ख़ुदावन्द मुझे बचा लेगा।
Porém eu invocarei a Deus, e o Senhor me salvará.
17 सुबह — ओ — शाम और दोपहर को मैं फ़रियाद करूँगा और कराहता रहूँगा, और वह मेरी आवाज़ सुन लेगा।
De tarde e de manhã e ao meio dia orarei; e clamarei, e ele ouvirá a minha voz.
18 उसने उस लड़ाई से जो मेरे ख़िलाफ़ थी, मेरी जान को सलामत छुड़ा लिया। क्यूँकि मुझसे झगड़ा करने वाले बहुत थे।
Livrou em paz a minha alma da peleja que havia contra mim; pois havia muitos comigo.
19 ख़ुदा जो क़दीम से है, सुन लेगा और उनको जवाब देगा। यह वह हैं जिनके लिए इन्क़लाब नहीं, और जो ख़ुदा से नहीं डरते।
Deus ouvirá, e os afligirá, aquele que preside desde a antiguidade (Selah) porque não há neles nenhuma mudança, e portanto não temem a Deus
20 उस शख़्स ने ऐसों पर हाथ बढ़ाया है, जो उससे सुल्ह रखते थे। उसने अपने 'अहद को तोड़ दिया है।
Ele pôs as suas mãos naqueles que tem paz com ele: quebrou a sua aliança.
21 उसका मुँह मख्खन की तरह चिकना था, लेकिन उसके दिल में जंग थी। उसकी बातें तेल से ज़्यादा मुलायम, लेकिन नंगी तलवारें थीं।
As palavras da sua boca eram mais macias do que a manteiga, mas havia guerra no seu coração: as suas palavras eram mais brandas do que o azeite: contudo, eram espadas nuas.
22 अपना बोझ ख़ुदावन्द पर डाल दे, वह तुझे संभालेगा। वह सादिक़ को कभी जुम्बिश न खाने देगा।
Lança a tua carga sobre o Senhor, e ele te susterá: não permitirá nunca que o justo seja abalado.
23 लेकिन ऐ ख़ुदा! तू उनको हलाकत के गढ़े में उतारेगा। खू़नी और दग़ाबाज़ अपनी आधी उम्र तक भी ज़िन्दा न रहेंगे। लेकिन मैं तुझ पर भरोसा करूँगा।
Mas tu, ó Deus, os farás descer ao poço da perdição; homens de sangue e de fraude não viverão metade dos seus dias; mas eu em ti confiarei.

< ज़बूर 55 >