< ज़बूर 54 >
1 ऐ ख़ुदा! अपने नाम के वसीले से मुझे बचा, और अपनी कु़दरत से मेरा इन्साफ़ कर।
“To the chief musician on Neginoth, a Maskil of David, When the Ziphim came and said to Saul, Behold, David is hiding himself with us.” O God, by thy name save me, and by thy strength grant me justice.
2 ऐ ख़ुदा मेरी दुआ सुन ले; मेरे मुँह की बातों पर कान लगा।
O God, hear my prayer; give ear to the words of my mouth.
3 क्यूँकि बेगाने मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं, और टेढ़े लोग मेरी जान के तलबगार हुए हैं; उन्होंने ख़ुदा को अपने सामने नहीं रख्खा।
For strangers [to goodness] are risen up against me, and powerful oppressors seek after my soul: they have not set God before them. (Selah)
4 देखो, ख़ुदा मेरा मददगार है! ख़ुदावन्द मेरी जान को संभालने वालों में है।
Behold, God is a helper unto me: the Lord is among those that uphold my soul.
5 वह बुराई को मेरे दुश्मनों ही पर लौटा देगा; तू अपनी सच्चाई की रूह से उनको फ़ना कर!
He will cause the evil to return upon those that regard me with envy: in thy truth cut them off.
6 मैं तेरे सामने रज़ा की कु़र्बानी चढ़ाऊँगा; ऐ ख़ुदावन्द! मैं तेरे नाम की शुक्रगु़ज़ारी करूँगा क्यूँकि वह खू़ब है।
I will liberally sacrifice unto thee: I will give thanks unto thy name, O Lord; for it is good.
7 क्यूँकि उसने मुझे सब मुसीबतों से छुड़ाया है, और मेरी आँख ने मेरे दुश्मनों को देख लिया है।
For out of all distress hath he delivered me: and my eye hath seen [its desire] on my enemies.