< ज़बूर 43 >
1 ऐ ख़ुदा, मेरा इन्साफ़ कर और बेदीन क़ौम के मुक़ाबले में मेरी वकालत कर, और दग़ाबाज़ और बेइन्साफ़ आदमी से मुझे छुड़ा।
Psaume de David. Juge-moi, ô mon Dieu; sépare ma cause de celle d'une nation impie; sauve-moi de l'homme inique et trompeur.
2 क्यूँकि तू ही मेरी ताक़त का ख़ुदा है, तूने क्यूँ मुझे छोड़ दिया? मैं दुश्मन के ज़ुल्म की वजह से क्यूँ मातम करता फिरता हूँ?
Car, ô mon Dieu, tu es ma force; pourquoi m'as-tu repoussé? et d'où vient que je chemine tout abattu, quand mon ennemi m'opprime?
3 अपने नूर, अपनी सच्चाई को भेज, वही मेरी रहबरी करें, वही मुझ को तेरे पाक पहाड़ और तेरे घर तक पहुँचाए।
Envoie-moi ta lumière et ta vérité; elles m'ont guidé, elles m'ont conduit sur ta montagne sainte et dans tes tabernacles.
4 तब मैं ख़ुदा के मज़बह के पास जाऊँगा, ख़ुदा के सामने जो मेरी कमाल ख़ुशी है; ऐ ख़ुदा! मेरे ख़ुदा! मैं सितार बजा कर तेरी सिताइश करूँगा।
Et j'entrerai à l'autel de Dieu, vers le Dieu qui réjouit ma jeunesse. Je te rendrai gloire sur la cithare, ô Dieu, ô mon Dieu!
5 ऐ मेरी जान! तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अन्दर ही अन्दर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि वह मेरे चेहरे की रौनक़ और मेरा ख़ुदा है; मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा।
O mon âme, pourquoi es-tu triste, et pourquoi me troubles-tu? Espère en Dieu; car je lui rendrai grâces, à lui le salut de ma face, à lui mon Dieu.