< ज़बूर 42 >

1 जैसे हिरनी पानी के नालों को तरसती है, वैसे ही ऐ ख़ुदा! मेरी रूह तेरे लिए तरसती है।
Dem Musikmeister; ein Lehrgedicht der Korahiten. Wie der Hirsch lechzt nach Wasserbächen,
2 मेरी रूह, ख़ुदा की, ज़िन्दा ख़ुदा की प्यासी है। मैं कब जाकर ख़ुदा के सामने हाज़िर हूँगा?
Meine Seele dürstet nach Gott, dem lebendigen Gott: wann werde ich dahin kommen, daß ich erscheine vor Gottes Angesicht?
3 मेरे आँसू दिन रात मेरी खू़राक हैं; जिस हाल कि वह मुझ से बराबर कहते हैं, तेरा ख़ुदा कहाँ है?
Meine Tränen sind meine Speise geworden bei Tag und bei Nacht, weil man den ganzen Tag zu mir sagt: »Wo ist nun dein Gott?«
4 इन बातों को याद करके मेरा दिल भरआता है, कि मैं किस तरह भीड़ या'नी 'ईद मनाने वाली जमा'अत के साथ, खु़शी और हम्द करता हुआ उनको ख़ुदा के घर में ले जाता था।
Daran will ich gedenken – und meinem Schmerz freien Lauf in mir lassen –, wie einst ich dahinschritt in dichter Schar, mit ihnen wallte zum Hause Gottes, umbraust von lautem Jubel und Lobgesang inmitten der feiernden Menge.
5 ऐ मेरी जान, तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अन्दर ही अन्दर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि उसके नजात बख़्श दीदार की ख़ातिर मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा।
Was betrübst du dich, meine Seele, und stürmst so ruhlos in mir? Harre auf Gott! Denn ich werde ihm noch danken, ihm, meines Angesichts Hilfe und meinem Gott.
6 ऐ मेरे ख़ुदा! मेरी जान मेरे अंदर गिरी जाती है, इसलिए मैं तुझे यरदन की सरज़मीन से और हरमून और कोह — ए — मिस्फ़ार पर से याद करता हूँ।
Gebeugt ist meine Seele in mir: drum denk’ ich an dich im Lande des Jordans und der Hermongipfel, am Berge Mizar:
7 तेरे आबशारों की आवाज़ से गहराव को पुकारता है। तेरी सब मौजें और लहरें मुझ पर से गुज़र गई।
Flut ruft der Flut zu beim Tosen deiner Wasserstürze; alle, alle deine Wogen und Wellen sind über mich hingegangen!
8 तोभी दिन को ख़ुदावन्द अपनी शफ़क़त दिखाएगा; और रात को मैं उसका हम्द गाऊँगा, बल्कि अपनी ज़िन्दगी के ख़ुदा से दुआ करूँगा।
Bei Tag seufz’ ich: »Es entbiete der HERR seine Gnade!«, und nachts ist sein Lied in meinem Munde, ein Gebet zum Gott meines Lebens.
9 मैं ख़ुदा से जो मेरी चट्टान है कहूँगा, “तू मुझे क्यूँ भूल गया? मैं दुश्मन के ज़ुल्म की वजह से, क्यूँ मातम करता फिरता हूँ?”
Ich sage zu Gott, meinem Felsen: »Warum hast du mich vergessen? Warum muß ich trauernd einhergehn unter dem Druck des Feindes?«
10 मेरे मुख़ालिफ़ों की मलामत, जैसे मेरी हड्डियों में तलवार है, क्यूँकि वह मुझ से बराबर कहते हैं, “तेरा ख़ुदा कहाँ है?”
Wie Zermalmung liegt mir in meinen Gebeinen der Hohn meiner Dränger, weil sie den ganzen Tag zu mir sagen: »Wo ist nun dein Gott?«
11 ऐ मेरी जान! तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अंदर ही अंदर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि वह मेरे चेहरे की रौनक और मेरा ख़ुदा है; मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा।
Was betrübst du dich, meine Seele, und stürmst so ruhlos in mir? Harre auf Gott! Denn ich werde ihm noch danken, ihm, meines Angesichts Hilfe und meinem Gott.

< ज़बूर 42 >