< ज़बूर 42 >
1 जैसे हिरनी पानी के नालों को तरसती है, वैसे ही ऐ ख़ुदा! मेरी रूह तेरे लिए तरसती है।
Dem Vorsänger. Ein Maskil von den Söhnen Korahs. Wie ein Hirsch lechzt nach Wasserbächen, also lechzt meine Seele nach dir, o Gott!
2 मेरी रूह, ख़ुदा की, ज़िन्दा ख़ुदा की प्यासी है। मैं कब जाकर ख़ुदा के सामने हाज़िर हूँगा?
Meine Seele dürstet nach Gott, nach dem lebendigen Gott: Wann werde ich kommen und erscheinen vor Gottes Angesicht?
3 मेरे आँसू दिन रात मेरी खू़राक हैं; जिस हाल कि वह मुझ से बराबर कहते हैं, तेरा ख़ुदा कहाँ है?
Meine Tränen sind mir zur Speise geworden Tag und Nacht, da man den ganzen Tag zu mir sagt: Wo ist dein Gott?
4 इन बातों को याद करके मेरा दिल भरआता है, कि मैं किस तरह भीड़ या'नी 'ईद मनाने वाली जमा'अत के साथ, खु़शी और हम्द करता हुआ उनको ख़ुदा के घर में ले जाता था।
Daran will ich gedenken und in mir ausschütten meine Seele, wie ich einherzog in der Schar, mit ihnen wallte zum Hause Gottes, mit der Stimme des Jubels und des Lobes, eine feiernde Menge.
5 ऐ मेरी जान, तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अन्दर ही अन्दर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि उसके नजात बख़्श दीदार की ख़ातिर मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा।
Was beugst du dich nieder, meine Seele, und bist unruhig in mir? Harre auf Gott! Denn ich werde ihn noch preisen für das Heil seines Angesichts.
6 ऐ मेरे ख़ुदा! मेरी जान मेरे अंदर गिरी जाती है, इसलिए मैं तुझे यरदन की सरज़मीन से और हरमून और कोह — ए — मिस्फ़ार पर से याद करता हूँ।
Mein Gott, es beugt sich nieder in mir meine Seele; darum gedenke ich deiner aus dem Lande des Jordan und des Hermon, vom Berge Mizhar.
7 तेरे आबशारों की आवाज़ से गहराव को पुकारता है। तेरी सब मौजें और लहरें मुझ पर से गुज़र गई।
Tiefe ruft der Tiefe beim Brausen deiner Wassergüsse; alle deine Wogen und deine Wellen sind über mich hingegangen.
8 तोभी दिन को ख़ुदावन्द अपनी शफ़क़त दिखाएगा; और रात को मैं उसका हम्द गाऊँगा, बल्कि अपनी ज़िन्दगी के ख़ुदा से दुआ करूँगा।
Des Tages wird Jehova seine Güte entbieten, und des Nachts wird sein Lied bei mir sein, ein Gebet zu dem Gott meines Lebens.
9 मैं ख़ुदा से जो मेरी चट्टान है कहूँगा, “तू मुझे क्यूँ भूल गया? मैं दुश्मन के ज़ुल्म की वजह से, क्यूँ मातम करता फिरता हूँ?”
Sagen will ich zu Gott, meinem Fels: Warum hast du mich vergessen? Warum gehe ich trauernd einher wegen der Bedrückung des Feindes?
10 मेरे मुख़ालिफ़ों की मलामत, जैसे मेरी हड्डियों में तलवार है, क्यूँकि वह मुझ से बराबर कहते हैं, “तेरा ख़ुदा कहाँ है?”
Wie eine Zermalmung in meinen Gebeinen höhnen mich meine Bedränger, indem sie den ganzen Tag zu mir sagen: Wo ist dein Gott?
11 ऐ मेरी जान! तू क्यूँ गिरी जाती है? तू अंदर ही अंदर क्यूँ बेचैन है? ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि वह मेरे चेहरे की रौनक और मेरा ख़ुदा है; मैं फिर उसकी सिताइश करूँगा।
Was beugst du dich nieder, meine Seele, und was bist du unruhig in mir? Harre auf Gott! Denn ich werde ihn noch preisen, der das Heil meines Angesichts und mein Gott ist.