< ज़बूर 4 >
1 जब मै पुकारूँ तो मुझे जबाब दे ऐ मेरी सदाक़त के ख़ुदा! तंगी में तूने मुझे कुशादगी बख़्शी, मुझ पर रहम कर और मेरी दुआ सुन ले।
¡Oh ʼElohim de mi justicia, respóndeme cuando clamo! Tú que me diste holgura en la estrechez, Ten compasión de mí y escucha mi oración.
2 ऐ बनी आदम! कब तक मेरी 'इज़्ज़त के बदले रुस्वाई होगी? तुम कब तक बकवास से मुहब्बत रखोगे और झूट के दर पे रहोगे?
Oh hijos de [los] hombres, ¿Por cuánto tiempo convertirán mi honra en infamia? ¿Hasta cuando amarán vanidad y buscarán la mentira? (Selah)
3 जान लो कि ख़ुदावन्द ने दीनदार को अपने लिए अलग कर रखा है; जब मैं ख़ुदावन्द को पुकारूँगा तो वह सुन लेगा।
Sepan, pues, que Yavé apartó al piadoso para Él.
4 थरथराओ और गुनाह न करो; अपने अपने बिस्तर पर दिल में सोचो और ख़ामोश रहो।
Aírense, pero no pequen. Mediten en su corazón sobre sus camas. Guarden silencio. (Selah)
5 सदाक़त की कु़र्बानियाँ पेश करो, और ख़ुदावन्द पर भरोसा करो।
Ofrezcan sacrificios de justicia, Y confíen en Yavé.
6 बहुत से कहते हैं कौन हम को कुछ भलाई दिखाएगा? ऐ ख़ुदावन्द तू अपने चेहरे का नूर हम पर जलवह गर फ़रमा।
Muchos dicen: ¡Oh, que viéramos algún bien! ¡Oh Yavé, levanta sobre nosotros la luz de tu rostro!
7 तूने मेरे दिल को उससे ज़्यादा खु़शी बख़्शी है, जो उनको ग़ल्ले और मय की बहुतायत से होती थी।
Diste alegría a mi corazón, Mayor que la de ellos, aun cuando abundan en grano y mosto.
8 मैं सलामती से लेट जाऊँगा और सो रहूँगाः क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द! सिर्फ़ तू ही मुझे मुत्मईन रखता है!
En paz me acostaré y así dormiré, Porque solo Tú, Yavé, me haces vivir confiado.