< ज़बूर 32 >

1 मुबारक है वह जिसकी ख़ता बख़्शी गई, और जिसका गुनाह ढाँका गया।
لِدَاوُدَ. مَزْمُورٌ تَعْلِيمِيٌّ. طُوبَى لِلَّذِي غُفِرَتْ آثَامُهُ وَسُتِرَتْ خَطَايَاهُ.١
2 मुबारक है वह आदमी जिसकी बदकारी को ख़ुदावन्द हिसाब में नहीं लाता, और जिसके दिल में दिखावा नहीं।
طُوبَى لِلرَّجُلِ الَّذِي لَا يَحْسِبُ لَهُ الرَّبُّ خَطِيئَةً، وَلَيْسَ فِي رُوحِهِ غِشٌّ.٢
3 जब मैं ख़ामोश रहा तो दिन भर के कराहने से मेरी हड्डियाँ घुल गई।
حِينَ سَكَتُّ عَنِ الاعْتِرَافِ بِالذَّنْبِ بَلِيَتْ عِظَامِي فِي تَأَوُّهِي النَّهَارَ كُلَّهُ،٣
4 क्यूँकि तेरा हाथ रात दिन मुझ पर भारी था; मेरी तरावट गर्मियों की खु़श्की से बदल गई। (सिलाह)
فَقَدْ كَانَتْ يَدُكَ ثَقِيلَةً عَلَيَّ نَهَاراً وَلَيْلاً، حَتَّى تَحَوَّلَتْ نَضَارَتِي إِلَى جَفَافِ حَرِّ الصَّيْفِ٤
5 मैंने तेरे सामने अपने गुनाह को मान लिया और अपनी बदकारी को न छिपाया, मैंने कहा, मैं ख़ुदावन्द के सामने अपनी ख़ताओं का इक़रार करूँगा और तूने मेरे गुनाह की बुराई को मु'आफ़ किया। (सिलाह)
أَعْتَرِفُ لَكَ بِخَطِيئَتِي، وَلَا أَكْتُمُ إِثْمِي. قُلْتُ: أَعْتَرِفُ لِلرَّبِّ بِمَعَاصِيَّ، حَقّاً صَفَحْتَ عَنْ إِثْمِ خَطِيئَتِي٥
6 इसीलिए हर दीनदार तुझ से ऐसे वक़्त में दुआ करे जब तू मिल सकता है। यक़ीनन जब सैलाब आए तो उस तक नहीं पहुँचेगा।
لِهَذَا لِيَعْتَرِفْ لَكَ كُلُّ تَقِيٍّ بِخَطَايَاهُ وَقْتَمَا يَجِدُكَ فلَا تَبْلُغَ إِلَيْهِ سُيُولُ التَّجَارِبِ الطَّامِيَةِ.٦
7 तू मेरे छिपने की जगह है; तू मुझे दुख से बचाये रख्खेगा; तू मुझे रिहाई के नाग़मों से घेर लेगा। (सिलाह)
أَنْتَ سِتْرٌ لِي، فِي الضِّيقِ تَحْرُسُنِي. بِتَرَانِيمِ بَهْجَةِ النَّجَاةِ تُطَوِّقُنِي.٧
8 मैं तुझे ता'लीम दूँगा, और जिस राह पर तुझे चलना होगा तुझे बताऊँगा; मैं तुझे सलाह दूँगा, मेरी नज़र तुझ पर होगी।
يَقُولُ الرَّبُّ: أُعَلِّمُكَ وَأُرْشِدُكَ الطَّرِيقَ الَّتِي تَسْلُكُهَا. أَنْصَحُكَ. عَيْنِي تَرْعَاكَ.٨
9 तुम घोड़े या खच्चर की तरह न बनो जिनमें समझ नहीं, जिनको क़ाबू में रखने का साज़ दहाना और लगाम है, वर्ना वह तेरे पास आने के भी नहीं।
لَا تَكُونُوا بِلَا عَقْلٍ كَالْحِصَانِ وَالْبَغْلِ؛ الَّذِي لَا يُطِيعُ إلّا إذَا ضُبِطَ بِاللِّجَامِ وَقُيِّدَ بِالْحَبْلِ.٩
10 शरीर पर बहुत सी मुसीबतें आएँगी; पर जिसका भरोसा ख़ुदावन्द पर है, रहमत उसे घेरे रहेगी।
كَثِيرَةٌ هِيَ أَوْجَاعُ الأَشْرَارِ. أَمَّا الْوَاثِقُ بِالرَّبِّ فَالرَّحْمَةُ تُحِيطُ بِهِ.١٠
11 ऐ सादिक़ो, ख़ुदावन्द में ख़ुश — ओ — बुर्रम रहो; और ऐ रास्तदिलो, खु़शी से ललकारो!
افْرَحُوا بِالرَّبِّ أَيُّهَا الأَبْرَارُ وَابْتَهِجُوا. اهْتِفُوا يَا جَمِيعَ الْمُسْتَقِيمِي الْقُلُوبِ.١١

< ज़बूर 32 >