< ज़बूर 18 >
1 ऐ ख़ुदावन्द, ऐ मेरी ताक़त! मैं तुझसे मुहब्बत रखता हूँ।
in finem puero Domini David quae locutus est Domino verba cantici huius in die qua eripuit eum Dominus de manu omnium inimicorum eius et de manu Saul et dixit diligam te Domine fortitudo mea
2 ख़ुदावन्द मेरी चट्टान, और मेरा किला और मेरा छुड़ाने वाला है; मेरा ख़ुदा, मेरी चट्टान जिस पर मैं भरोसा रखूँगा, मेरी ढाल और मेरी नजात का सींग, मेरा ऊँचा बुर्ज।
Dominus firmamentum meum et refugium meum et liberator meus Deus meus adiutor meus et sperabo in eum protector meus et cornu salutis meae et susceptor meus
3 मैं ख़ुदावन्द को, जो सिताइश के लायक़ है पुकारूँगा। यूँ मैं अपने दुश्मनों से बचाया जाऊँगा।
laudans invocabo Dominum et ab inimicis meis salvus ero
4 मौत की रस्सियों ने मुझे घेर लिया, और बेदीनी के सैलाबों ने मुझे डराया;
circumdederunt me dolores mortis et torrentes iniquitatis conturbaverunt me
5 पाताल की रस्सियाँ मेरे चारों तरफ़ थीं, मौत के फंदे मुझ पर आ पड़े थे। (Sheol )
dolores inferni circumdederunt me praeoccupaverunt me laquei mortis (Sheol )
6 अपनी मुसीबत में मैंने ख़ुदावन्द को पुकाराः और अपने ख़ुदा से फ़रियाद की; उसने अपनी हैकल में से मेरी आवाज़ सुनी, और मेरी फ़रियाद जो उसके सामने थी, उसके कान में पहुँची।
cum tribularer invocavi Dominum et ad Deum meum clamavi exaudivit de templo sancto suo vocem meam et clamor meus in conspectu eius introibit in aures eius
7 तब ज़मीन हिल गई और कॉप उठी, पहाड़ों की बुनियादों ने जुम्बिश खाई और हिल गई, इसलिए कि वह ग़ज़बनाक हुआ।
et commota est et contremuit terra et fundamenta montium conturbata sunt et commota sunt quoniam iratus est eis
8 उसके नथनों से धुवाँ उठा, और उसके मुँह से आग निकलकर भसम करने लगी; कोयले उससे दहक उठे।
ascendit fumus in ira eius et ignis a facie eius exarsit carbones succensi sunt ab eo
9 उसने आसमानों को भी झुका दिया और नीचे उतर आया; और उसके पाँव तले गहरी तारीकी थी।
inclinavit caelos et descendit et caligo sub pedibus eius
10 वह करूबी पर सवार होकर उड़ा, बल्कि वह तेज़ी से हवा के बाजू़ओं पर उड़ा।
et ascendit super cherubin et volavit volavit super pinnas ventorum
11 उसने ज़ुल्मत या'नी बादल की तारीकी और आसमान के दलदार बादलों को अपने चारों तरफ़अपने छिपने की जगह और अपना शामियाना बनाया।
et posuit tenebras latibulum suum in circuitu eius tabernaculum eius tenebrosa aqua in nubibus aeris
12 उसकी हुज़ूरी की झलक से उसके दलदार बादल फट गए, ओले और अंगारे।
prae fulgore in conspectu eius nubes eius; transierunt grando et carbones ignis
13 और ख़ुदावन्द आसमान में गरजा, हक़ ता'ला ने अपनी आवाज़ सुनाई, ओले और अंगारे।
et intonuit de caelo Dominus et Altissimus dedit vocem suam grando et carbones ignis;
14 उसने अपने तीर चलाकर उनको तितर बितर किया, बल्कि ताबड़ तोड़ बिजली से उनको शिकस्त दी।
et misit sagittas et dissipavit eos et fulgora multiplicavit et conturbavit eos
15 तब तेरी डाँट से ऐ ख़ुदावन्द! तेरे नथनों के दम के झोंके से, पानी की थाह दिखाई देने लगीऔर जहान की बुनियादें नमूदार हुई।
et apparuerunt fontes aquarum et revelata sunt fundamenta orbis terrarum ab increpatione tua Domine ab inspiratione spiritus irae tuae
16 उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, और मुझे बहुत पानी में से खींचकर बाहर निकाला।
misit de summo et accepit me adsumpsit me de aquis multis
17 उसने मेरे ताक़तवर दुश्मन और मेरे'अदावत रखने वालों से मुझे छुड़ा लिया, क्यूँकि वह मेरे लिए बहुत ही ज़बरदस्त थे।
eripiet me de inimicis meis fortissimis et ab his qui oderunt me quoniam confirmati sunt super me
18 वह मेरी मुसीबत के दिन मुझ पर आ पड़े; लेकिन ख़ुदावन्द मेरा सहारा था।
praevenerunt me in die adflictionis meae et factus est Dominus protector meus
19 वह मुझे कुशादा जगह में निकाल भी लाया। उसने मुझे छुड़ाया, इसलिए कि वह मुझ से ख़ुश था।
et eduxit me in latitudinem salvum me faciet quoniam voluit me
20 ख़ुदावन्द ने मेरी रास्ती के मुवाफ़िक़ मुझे बदला दिया: और मेरे हाथों की पाकीज़गी के मुताबिक़ मुझे बदला दिया।
et retribuet mihi Dominus secundum iustitiam meam et secundum puritatem manuum mearum retribuet mihi
21 क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द की राहों पर चलता रहा, और शरारत से अपने ख़ुदा से अलग न हुआ।
quia custodivi vias Domini nec impie gessi a Deo meo
22 क्यूँकि उसके सब फ़ैसले मेरे सामने रहे, और मैं उसके आईन से नाफ़रमान न हुआ।
quoniam omnia iudicia eius in conspectu meo sunt et iustitias eius non reppuli a me
23 मैं उसके सामने कामिल भी रहा, और अपने को अपनी बदकारी से रोके रख्खा।
et ero inmaculatus cum eo et observabo ab iniquitate mea
24 ख़ुदावन्द ने मुझे मेरी रास्ती के मुवाफ़िक़ और मेरे हाथों की पाकीज़गी के मुताबिक़ जो उसके सामने थी बदला दिया।
et retribuet mihi Dominus secundum iustitiam meam et secundum puritatem manuum mearum in conspectu oculorum eius
25 रहम दिल के साथ तू रहीम होगा, और कामिल आदमी के साथ कामिल।
cum sancto sanctus eris et cum viro innocente innocens eris
26 नेकोकार के साथ नेक होगा, और कजरों के साथ टेढ़ा।
et cum electo electus eris et cum perverso perverteris
27 क्यूँकि तू मुसीबत ज़दा लोगों को बचाएगा; लेकिन मग़रूरों की आँखों को नीचा करेगा।
quoniam tu populum humilem salvum facies et oculos superborum humiliabis
28 इसलिए के तू मेरे चराग़ को रौशन करेगा: ख़ुदावन्द मेरा ख़ुदा मेरे अंधेरे को उजाला कर देगा।
quoniam tu inluminas lucernam meam Domine Deus meus inluminas tenebras meas
29 क्यूँकि तेरी बदौलत मैं फ़ौज पर धावा करता हूँ। और अपने ख़ुदा की बदौलत दीवार फाँद जाता हूँ।
quoniam in te eripiar a temptatione et in Deo meo transgrediar murum
30 लेकिन ख़ुदा की राह कामिल है; ख़ुदावन्द का कलाम ताया हुआ है; वह उन सबकी ढाल है जो उस पर भरोसा रखते हैं।
Deus meus inpolluta via eius eloquia Domini igne examinata protector est omnium sperantium in eum
31 क्यूँकि ख़ुदावन्द के अलावा और कौन ख़ुदा है? और हमारे ख़ुदा को छोड़कर और कौन चट्टान है?
quoniam quis deus praeter Dominum et quis deus praeter Deum nostrum
32 ख़ुदा ही मुझे ताक़त से कमर बस्ता करता है, और मेरी राह को कामिल करता है।
Deus qui praecingit me virtute et posuit inmaculatam viam meam
33 वही मेरे पाँव हिरनीयों के से बना देता है, और मुझे मेरी ऊँची जगहों में क़ाईम करता है।
qui perfecit pedes meos tamquam cervorum et super excelsa statuens me
34 वह मेरे हाथों को जंग करना सिखाता है, यहाँ तक कि मेरे बाजू़ पीतल की कमान को झुका देते हैं।
qui doces manus meas in proelium et posuisti arcum aereum brachia mea
35 तूने मुझ को अपनी नजात की ढाल बख़्शी, और तेरे दहने हाथ ने मुझे संभाला, और तेरी नमी ने मुझे बुज़ूर्ग बनाया है।
et dedisti mihi protectionem salutis tuae et dextera tua suscepit me et disciplina tua correxit me in finem et disciplina tua ipsa me docebit
36 तूने मेरे नीचे, मेरे क़दम कुशादा कर दिए; और मेरे पाँव नहीं फिसले।
dilatasti gressus meos subtus me et non sunt infirmata vestigia mea
37 मैं अपने दुश्मनों का पीछा करके उनको जा लूँगा; और जब तक वह फ़ना न हो जाएँ, वापस नहीं आऊँगा।
persequar inimicos meos et conprehendam illos et non convertar donec deficiant
38 मैं उनको ऐसा छेदुँगा कि वह उठ न सकेंगे; वह मेरे पाँव के नीचे गिर पड़ेंगे।
confringam illos nec poterunt stare cadent subtus pedes meos
39 क्यूँकि तूने लड़ाई के लिए मुझे ताक़त से कमरबस्ता किया; और मेरे मुख़ालिफ़ों को मेरे सामने नीचा दिखाया।
et praecinxisti me virtute ad bellum subplantasti insurgentes in me subtus me
40 तूने मेरे दुश्मनों की नसल मेरी तरफ़ फेर दी, ताकि मैं अपने 'अदावत रखने वालों को काट डालूँ।
et inimicos meos dedisti mihi dorsum et odientes me disperdisti
41 उन्होंने दुहाई दी लेकिन कोई न था जो बचाए, ख़ुदावन्द को भी पुकारा लेकिन उसने उनको जवाब न दिया।
clamaverunt nec erat qui salvos faceret ad Dominum nec exaudivit eos
42 तब मैंने उनको कूट कूट कर हवा में उड़ती हुई गर्द की तरह कर दिया; मैंने उनको गली कूचों की कीचड़ की तरह निकाल फेंका
et comminuam illos ut pulverem ante faciem venti ut lutum platearum delebo eos
43 तूने मुझे क़ौम के झगड़ों से भी छुड़ाया; तूने मुझे क़ौमों का सरदार बनाया है; जिस क़ौम से मैं वाक़िफ़ भी नहीं वह मेरी फ़र्माबरदार होगी।
eripe me de contradictionibus populi constitues me in caput gentium
44 मेरा नाम सुनते ही वह मेरी फ़रमाबरदारी करेंगे; परदेसी मेरे ताबे' हो जाएँगे।
populus quem non cognovi servivit mihi in auditu auris oboedivit mihi
45 परदेसी मुरझा जाएँगे, और अपने क़िले' से थरथराते हुए निकलेंगे।
filii alieni mentiti sunt mihi filii alieni inveterati sunt et claudicaverunt a semitis suis
46 ख़ुदावन्द ज़िन्दा है! मेरी चट्टान मुबारक हो, और मेरा नजात देने वाला ख़ुदा मुम्ताज़ हो।
vivit Dominus et benedictus Deus meus et exaltetur Deus salutis meae
47 वही ख़ुदा जो मेरा इन्तक़ाम लेता है; और उम्मतों को मेरे सामने नीचा करता है।
Deus qui dat vindictas mihi et subdidit populos sub me liberator meus de gentibus iracundis
48 वह मुझे मेरे दुश्मनों से छुड़ाता है; बल्कि तू मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों पर सरफ़राज़ करता है। तू मुझे टेढ़े आदमी से रिहाई देता है।
et ab insurgentibus in me exaltabis me a viro iniquo eripies me
49 इसलिए ऐ ख़ुदावन्द! मैं क़ौमों के बीच तेरी शुक्रगुज़ारी, और तेरे नाम की मदहसराई करूँगा।
propterea confitebor tibi in nationibus Domine et psalmum dicam nomini tuo
50 वह अपने बादशाह को बड़ी नजात 'इनायत करता है, और अपने मम्सूह दाऊद और उसकी नसल पर हमेशा शफ़क़त करता है।
magnificans salutes regis eius et faciens misericordiam christo suo David et semini eius usque in saeculum