< ज़बूर 18 >

1 ऐ ख़ुदावन्द, ऐ मेरी ताक़त! मैं तुझसे मुहब्बत रखता हूँ।
[Vergl. 2. Sam. 22] [Dem Vorsänger. Von dem Knechte Jehovas, von David, der die Worte dieses Liedes zu Jehova redete an dem Tage, als Jehova ihn errettet hatte aus der Hand aller seiner Feinde und aus der Hand Sauls.] [Und er sprach: ] Ich liebe dich, Jehova, meine Stärke!
2 ख़ुदावन्द मेरी चट्टान, और मेरा किला और मेरा छुड़ाने वाला है; मेरा ख़ुदा, मेरी चट्टान जिस पर मैं भरोसा रखूँगा, मेरी ढाल और मेरी नजात का सींग, मेरा ऊँचा बुर्ज।
Jehova ist mein Fels und meine Burg und mein Erretter; mein Gott, [El] mein Hort, [Eig. Felsen] auf ihn werde ich trauen, mein Schild und das Horn meines Heils, meine hohe Feste.
3 मैं ख़ुदावन्द को, जो सिताइश के लायक़ है पुकारूँगा। यूँ मैं अपने दुश्मनों से बचाया जाऊँगा।
Ich werde Jehova anrufen, der zu loben ist, und ich werde gerettet werden von meinen Feinden.
4 मौत की रस्सियों ने मुझे घेर लिया, और बेदीनी के सैलाबों ने मुझे डराया;
Es umfingen mich die Bande des Todes, und die Ströme [Eig. Wildbäche] Belials erschreckten [O. überfielen; so auch 2. Sam. 22,5] mich;
5 पाताल की रस्सियाँ मेरे चारों तरफ़ थीं, मौत के फंदे मुझ पर आ पड़े थे। (Sheol h7585)
Die Bande des Scheols umringten mich, es ereilten mich die Fallstricke des Todes. (Sheol h7585)
6 अपनी मुसीबत में मैंने ख़ुदावन्द को पुकाराः और अपने ख़ुदा से फ़रियाद की; उसने अपनी हैकल में से मेरी आवाज़ सुनी, और मेरी फ़रियाद जो उसके सामने थी, उसके कान में पहुँची।
In meiner Bedrängnis rief ich zu Jehova, und ich schrie zu meinem Gott; er hörte aus seinem Tempel [Eig. Palast] meine Stimme, und mein Schrei vor ihm kam in seine Ohren.
7 तब ज़मीन हिल गई और कॉप उठी, पहाड़ों की बुनियादों ने जुम्बिश खाई और हिल गई, इसलिए कि वह ग़ज़बनाक हुआ।
Da wankte und bebte die Erde, und die Grundfesten der Berge erzitterten und wankten, weil er entbrannt war.
8 उसके नथनों से धुवाँ उठा, और उसके मुँह से आग निकलकर भसम करने लगी; कोयले उससे दहक उठे।
Rauch stieg auf von seiner Nase, und Feuer fraß aus seinem Munde; glühende Kohlen brannten aus ihm.
9 उसने आसमानों को भी झुका दिया और नीचे उतर आया; और उसके पाँव तले गहरी तारीकी थी।
Und er neigte die Himmel und fuhr hernieder, und Dunkel war unter seinen Füßen.
10 वह करूबी पर सवार होकर उड़ा, बल्कि वह तेज़ी से हवा के बाजू़ओं पर उड़ा।
Und er fuhr auf einem Cherub und flog daher, und er schwebte auf den Fittichen des Windes.
11 उसने ज़ुल्मत या'नी बादल की तारीकी और आसमान के दलदार बादलों को अपने चारों तरफ़अपने छिपने की जगह और अपना शामियाना बनाया।
Finsternis machte er zu seinem Bergungsort, zu seinem Zelte rings um sich her, Finsternis der Wasser, dichtes Himmelsgewölk.
12 उसकी हुज़ूरी की झलक से उसके दलदार बादल फट गए, ओले और अंगारे।
Aus dem Glanze vor ihm fuhr sein dichtes Gewölk vorüber, Hagel [O. vor ihm durchfuhren sein dichtes Gewölk Hagel usw.] und feurige Kohlen.
13 और ख़ुदावन्द आसमान में गरजा, हक़ ता'ला ने अपनी आवाज़ सुनाई, ओले और अंगारे।
Und es donnerte Jehova in den Himmeln, und der Höchste ließ seine Stimme erschallen, Hagel-und feurige Kohlen.
14 उसने अपने तीर चलाकर उनको तितर बितर किया, बल्कि ताबड़ तोड़ बिजली से उनको शिकस्त दी।
Und er schoß seine Pfeile und zerstreute sie, [d. h. die Feinde] und er schleuderte Blitze [And. üb.: und der Blitze viel] und verwirrte sie. [d. h. die Feinde]
15 तब तेरी डाँट से ऐ ख़ुदावन्द! तेरे नथनों के दम के झोंके से, पानी की थाह दिखाई देने लगीऔर जहान की बुनियादें नमूदार हुई।
Und es wurden gesehen die Betten der Wasser, und die Grundfesten des Erdkreises wurden aufgedeckt vor deinem Schelten, Jehova, vor dem Schnauben des Hauches deiner Nase.
16 उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, और मुझे बहुत पानी में से खींचकर बाहर निकाला।
Er streckte seine Hand aus von der Höhe, er nahm mich, er zog mich aus großen Wassern.
17 उसने मेरे ताक़तवर दुश्मन और मेरे'अदावत रखने वालों से मुझे छुड़ा लिया, क्यूँकि वह मेरे लिए बहुत ही ज़बरदस्त थे।
Er errettete mich von meinem starken Feinde und von meinen Hassern, denn sie waren mächtiger als ich.
18 वह मेरी मुसीबत के दिन मुझ पर आ पड़े; लेकिन ख़ुदावन्द मेरा सहारा था।
Sie ereilten mich am Tage meines Unglücks, aber Jehova ward mir zur Stütze.
19 वह मुझे कुशादा जगह में निकाल भी लाया। उसने मुझे छुड़ाया, इसलिए कि वह मुझ से ख़ुश था।
Und er führte mich heraus ins Weite, er befreite mich, weil er Lust an mir hatte.
20 ख़ुदावन्द ने मेरी रास्ती के मुवाफ़िक़ मुझे बदला दिया: और मेरे हाथों की पाकीज़गी के मुताबिक़ मुझे बदला दिया।
Jehova vergalt mir nach meiner Gerechtigkeit, nach der Reinheit meiner Hände erstattete er mir.
21 क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द की राहों पर चलता रहा, और शरारत से अपने ख़ुदा से अलग न हुआ।
Denn ich habe die Wege Jehovas bewahrt, und bin von meinem Gott nicht frevelhaft abgewichen.
22 क्यूँकि उसके सब फ़ैसले मेरे सामने रहे, और मैं उसके आईन से नाफ़रमान न हुआ।
Denn alle seine Rechte waren vor mir, und seine Satzungen, ich entfernte sie nicht von mir.
23 मैं उसके सामने कामिल भी रहा, और अपने को अपनी बदकारी से रोके रख्खा।
Und ich war vollkommen [O. redlich, untadlig, lauter; so auch v 25. 30. 32] gegen ihn, und hütete mich vor meiner Ungerechtigkeit.
24 ख़ुदावन्द ने मुझे मेरी रास्ती के मुवाफ़िक़ और मेरे हाथों की पाकीज़गी के मुताबिक़ जो उसके सामने थी बदला दिया।
Und Jehova erstattete mir nach meiner Gerechtigkeit, nach der Reinheit meiner Hände vor seinen Augen.
25 रहम दिल के साथ तू रहीम होगा, और कामिल आदमी के साथ कामिल।
Gegen den Gütigen erzeigst du dich gütig, gegen den vollkommenen Mann erzeigst du dich vollkommen;
26 नेकोकार के साथ नेक होगा, और कजरों के साथ टेढ़ा।
Gegen den Reinen erzeigst du dich rein, und gegen den Verkehrten erzeigst du dich entgegenstreitend. [Eig. verdreht]
27 क्यूँकि तू मुसीबत ज़दा लोगों को बचाएगा; लेकिन मग़रूरों की आँखों को नीचा करेगा।
Denn du, du wirst retten das elende Volk, und die hohen Augen wirst du erniedrigen.
28 इसलिए के तू मेरे चराग़ को रौशन करेगा: ख़ुदावन्द मेरा ख़ुदा मेरे अंधेरे को उजाला कर देगा।
Denn du, du machst meine Leuchte scheinen; Jehova, mein Gott, erhellt meine Finsternis.
29 क्यूँकि तेरी बदौलत मैं फ़ौज पर धावा करता हूँ। और अपने ख़ुदा की बदौलत दीवार फाँद जाता हूँ।
Denn mit dir werde ich gegen eine Schar anrennen, und mit meinem Gott werde ich eine Mauer überspringen.
30 लेकिन ख़ुदा की राह कामिल है; ख़ुदावन्द का कलाम ताया हुआ है; वह उन सबकी ढाल है जो उस पर भरोसा रखते हैं।
Gott, [El] -sein Weg ist vollkommen; Jehovas Wort ist geläutert; ein Schild ist er allen, die auf ihn trauen.
31 क्यूँकि ख़ुदावन्द के अलावा और कौन ख़ुदा है? और हमारे ख़ुदा को छोड़कर और कौन चट्टान है?
Denn wer ist Gott, [Eloah] außer Jehova? und wer ein Fels, als nur unser Gott?
32 ख़ुदा ही मुझे ताक़त से कमर बस्ता करता है, और मेरी राह को कामिल करता है।
Der Gott, [El] der mich mit Kraft umgürtet und vollkommen macht meinen Weg;
33 वही मेरे पाँव हिरनीयों के से बना देता है, और मुझे मेरी ऊँची जगहों में क़ाईम करता है।
Der meine Füße denen der Hindinnen gleich macht, und mich hinstellt auf meine Höhen;
34 वह मेरे हाथों को जंग करना सिखाता है, यहाँ तक कि मेरे बाजू़ पीतल की कमान को झुका देते हैं।
der meine Hände den Streit lehrt, und meine Arme spannen den ehernen Bogen!
35 तूने मुझ को अपनी नजात की ढाल बख़्शी, और तेरे दहने हाथ ने मुझे संभाला, और तेरी नमी ने मुझे बुज़ूर्ग बनाया है।
Und du gabst mir den Schild deines Heils, und deine Rechte stützte mich, und deine Herablassung machte mich groß.
36 तूने मेरे नीचे, मेरे क़दम कुशादा कर दिए; और मेरे पाँव नहीं फिसले।
Du machtest Raum meinen Schritten unter mir, und meine Knöchel haben nicht gewankt.
37 मैं अपने दुश्मनों का पीछा करके उनको जा लूँगा; और जब तक वह फ़ना न हो जाएँ, वापस नहीं आऊँगा।
Meinen Feinden jagte ich nach und erreichte sie, und ich kehrte nicht um, bis sie aufgerieben waren.
38 मैं उनको ऐसा छेदुँगा कि वह उठ न सकेंगे; वह मेरे पाँव के नीचे गिर पड़ेंगे।
Ich zerschmetterte sie, und sie vermochten nicht aufzustehen; sie fielen unter meine Füße.
39 क्यूँकि तूने लड़ाई के लिए मुझे ताक़त से कमरबस्ता किया; और मेरे मुख़ालिफ़ों को मेरे सामने नीचा दिखाया।
Und du umgürtetest mich mit Kraft zum Streite, beugtest unter mich, die wider mich aufstanden.
40 तूने मेरे दुश्मनों की नसल मेरी तरफ़ फेर दी, ताकि मैं अपने 'अदावत रखने वालों को काट डालूँ।
Und du hast mir gegeben den Rücken meiner Feinde; und meine Hasser, ich vernichtete sie.
41 उन्होंने दुहाई दी लेकिन कोई न था जो बचाए, ख़ुदावन्द को भी पुकारा लेकिन उसने उनको जवाब न दिया।
Sie schrieen, und kein Retter war da-zu Jehova, und er antwortete ihnen nicht.
42 तब मैंने उनको कूट कूट कर हवा में उड़ती हुई गर्द की तरह कर दिया; मैंने उनको गली कूचों की कीचड़ की तरह निकाल फेंका
Und ich zermalmte sie wie Staub vor dem Winde; wie Straßenkot schüttete ich sie aus.
43 तूने मुझे क़ौम के झगड़ों से भी छुड़ाया; तूने मुझे क़ौमों का सरदार बनाया है; जिस क़ौम से मैं वाक़िफ़ भी नहीं वह मेरी फ़र्माबरदार होगी।
Du errettetest mich aus den Streitigkeiten des Volkes; du setztest mich zum Haupte der Nationen; ein Volk, das ich nicht kannte, dient mir. [O. diente mir]
44 मेरा नाम सुनते ही वह मेरी फ़रमाबरदारी करेंगे; परदेसी मेरे ताबे' हो जाएँगे।
Sowie ihr Ohr hörte, gehorchten sie mir; die Söhne der Fremde unterwarfen sich mir mit Schmeichelei. [Eig. heuchelten mir [d. h. Gehorsam]]
45 परदेसी मुरझा जाएँगे, और अपने क़िले' से थरथराते हुए निकलेंगे।
Die Söhne der Fremde sanken hin und zitterten hervor aus ihren Schlössern.
46 ख़ुदावन्द ज़िन्दा है! मेरी चट्टान मुबारक हो, और मेरा नजात देने वाला ख़ुदा मुम्ताज़ हो।
Jehova lebt, und gepriesen sei mein Fels! und erhoben werde der Gott meines Heils!
47 वही ख़ुदा जो मेरा इन्तक़ाम लेता है; और उम्मतों को मेरे सामने नीचा करता है।
Der Gott, [El] der mir Rache gab und die Völker mir unterwarf,
48 वह मुझे मेरे दुश्मनों से छुड़ाता है; बल्कि तू मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों पर सरफ़राज़ करता है। तू मुझे टेढ़े आदमी से रिहाई देता है।
Der mich errettete von meinen Feinden. Ja, du erhöhtest mich über die, welche wider mich aufstanden; von dem Manne der Gewalttat befreitest du mich.
49 इसलिए ऐ ख़ुदावन्द! मैं क़ौमों के बीच तेरी शुक्रगुज़ारी, और तेरे नाम की मदहसराई करूँगा।
Darum, Jehova, will ich dich preisen unter den Nationen, und Psalmen singen [Eig. und singspielen] deinem Namen,
50 वह अपने बादशाह को बड़ी नजात 'इनायत करता है, और अपने मम्सूह दाऊद और उसकी नसल पर हमेशा शफ़क़त करता है।
Dich, der groß macht die Rettungen seines Königs, und Güte erweist seinem Gesalbten, David und seinem Samen ewiglich.

< ज़बूर 18 >