< ज़बूर 144 >

1 ख़ुदावन्द मेरी चट्टान मुबारक हो, जो मेरे हाथों को जंग करना, और मेरी उँगलियों को लड़ना सिखाता है।
Bendito Jehová mi roca, que enseña mis manos a la batalla, y mis dedos a la guerra.
2 वह मुझ पर शफ़क़त करने वाला, और मेरा क़िला' है; मेरा ऊँचा बुर्ज और मेरा छुड़ाने वाला, वह मेरी ढाल और मेरी पनाहगाह है; जो मेरे लोगों को मेरे ताबे' करता है।
Misericordia mía, y mi castillo: altura mía, y mi libertador: escudo mío en quien he confiado: el que allana mi pueblo delante de mí.
3 ऐ ख़ुदावन्द, इंसान क्या है कि तू उसे याद रख्खे? और आदमज़ाद क्या है कि तू उसका ख़याल करे?
O! Jehová, ¿qué es el hombre, que te haces familiar a él? ¿el hijo del hombre, para que le estimes?
4 इंसान बुतलान की तरह है; उसके दिन ढलते साये की तरह हैं।
El hombre es semejante a la vanidad: sus días son como la sombra que pasa.
5 ऐ ख़ुदावन्द, आसमानों को झुका कर उतर आ! पहाड़ों को छू, तो उनसे धुआँ उठेगा!
O! Jehová, inclina tus cielos y desciende: toca los montes, y humeen.
6 बिजली गिराकर उनको तितर बितर कर दे, अपने तीर चलाकर उनको शिकस्त दे!
Relampaguea relámpagos, y disípalos; envía tus saetas, y contúrbalos.
7 ऊपर से हाथ बढ़ा, मुझे रिहाई दे और बड़े सैलाब, या'नी परदेसियों के हाथ से छुड़ा।
Envía tu mano desde lo alto: redímeme, y escápame de las muchas aguas: de la mano de los hijos extraños.
8 जिनके मुँह से बेकारी निकलती रहती है, और जिनका दहना हाथ झूट का दहना हाथ है।
Cuya boca habla vanidad; y su diestra es diestra de mentira.
9 ऐ ख़ुदा! मैं तेरे लिए नया हम्द गाऊँगा; दस तार वाली बरबत पर मैं तेरी मदहसराई करूँगा।
O! Dios, a ti cantaré canción nueva: con salterio, con decacordio cantaré a ti.
10 वही बादशाहों को नजात बख़्शता है; और अपने बन्दे दाऊद को हलाक़त की तलवार से बचाता है।
El que da salud a los reyes: el que redime a David su siervo de perniciosa espada.
11 मुझे बचा और परदेसियों के हाथ से छुड़ा, जिनके मुँह से बेकारी निकलती रहती है, और जिनका दहना हाथ झूट का दहना हाथ है।
Redímeme, y escápame de mano de los hijos extraños: cuya boca habla vanidad, y su diestra es diestra de mentira.
12 जब हमारे बेटे जवानी में क़दआवर पौदों की तरह हों और हमारी बेटियाँ महल के कोने के लिए तराशे हुए पत्थरों की तरह हों,
Que nuestros hijos sean como plantas crecidas en su juventud: nuestras hijas como las esquinas labradas a manera del palacio:
13 जब हमारे खत्ते भरे हों, जिनसे हर किस्म की जिन्स मिल सके, और हमारी भेड़ बकरियाँ हमारे कूचों में हज़ारों और लाखों बच्चे दें:
Nuestros rincones llenos, proveidos de toda suerte de grano: nuestros ganados que paran a millares, y a diez millares en nuestras plazas.
14 जब हमारे बैल खू़ब लदे हों, जब न रखना हो न ख़ुरूज, और न हमारे कूचों में वावैला हो।
Nuestros bueyes cargados de carnes, no haya portillo, ni quien salga, ni quien dé grita en nuestras calles.
15 मुबारक है वह क़ौम जिसका यह हाल है। मुबारक है वह क़ौम जिसका ख़ुदा ख़ुदावन्द है।
Bienaventurado el pueblo que tiene esto: bienaventurado el pueblo, cuyo Dios es Jehová.

< ज़बूर 144 >