< ज़बूर 143 >

1 ऐ ख़ुदावन्द, मेरी दू'आ सुन, मेरी इल्तिजा पर कान लगा। अपनी वफ़ादारी और सदाक़त में मुझे जवाब दे,
Ó Senhor, ouve a minha oração, inclina os ouvidos ás minhas supplicas: escuta-me segundo a tua verdade, e segundo a tua justiça,
2 और अपने बन्दे को 'अदालत में न ला, क्यूँकि तेरी नज़र में कोई आदमी रास्तबाज़ नहीं ठहर सकता।
E não entres em juizo com o teu servo, porque á tua vista não se achará justo nenhum vivente.
3 इसलिए कि दुश्मन ने मेरी जान को सताया है; उसने मेरी ज़िन्दगी को ख़ाक में मिला दिया, और मुझे अँधेरी जगहों में उनकी तरह बसाया है जिनको मरे मुद्दत हो गई हो।
Pois o inimigo perseguiu a minha alma; atropellou-me até ao chão; fez-me habitar na escuridão, como aquelles que morreram ha muito.
4 इसी वजह से मुझ में मेरी जान निढाल है; और मेरा दिल मुझ में बेकल है।
Pelo que o meu espirito se angustia em mim; e o meu coração em mim está desolado.
5 मैं पिछले ज़मानों को याद करता हूँ, मैं तेरे सब कामों पर ग़ौर करता हूँ, और तेरी दस्तकारी पर ध्यान करता हूँ।
Lembro-me dos dias antigos; considero todos os teus feitos; medito na obra das tuas mãos.
6 मैं अपने हाथ तेरी तरफ़ फैलाता हूँ मेरी जान खु़श्क ज़मीन की तरह तेरी प्यासी है।
Estendo para ti as minhas mãos; a minha alma tem sêde de ti, como terra sedenta (Selah)
7 ऐ ख़ुदावन्द, जल्द मुझे जवाब दे: मेरी रूह गुदाज़ हो चली! अपना चेहरा मुझ से न छिपा, ऐसा न हो कि मैं क़ब्र में उतरने वालों की तरह हो जाऊँ।
Ouve-me depressa, ó Senhor; o meu espirito desmaia; não escondas de mim a tua face, para que não seja similhante aos que descem á cova.
8 सुबह को मुझे अपनी शफ़क़त की ख़बर दे, क्यूँकि मेरा भरोसा तुझ पर है। मुझे वह राह बता जिस पर मैं चलूं, क्यूँकि मैं अपना दिल तेरी ही तरफ़ लगाता हूँ।
Faze-me ouvir a tua benignidade pela manhã, pois em ti confio; faze-me saber o caminho que devo seguir, porque a ti levanto a minha alma.
9 ऐ ख़ुदावन्द, मुझे मेरे दुश्मनों से रिहाई बख्श; क्यूँकि मैं पनाह के लिए तेरे पास भाग आया हूँ।
Livra-me, ó Senhor, dos meus inimigos; fujo para ti, para me esconder.
10 मुझे सिखा के तेरी मर्ज़ी पर चलूँ, इसलिए कि तू मेरा ख़ुदा है! तेरी नेक रूह मुझे रास्ती के मुल्क में ले चले!
Ensina-me a fazer a tua vontade, pois és o meu Deus: o teu Espirito é bom; guia-me por terra plana.
11 ऐ ख़ुदावन्द, अपने नाम की ख़ातिर मुझे ज़िन्दा कर! अपनी सदाक़त में मेरी जान को मुसीबत से निकाल!
Vivifica-me, ó Senhor, por amor do teu nome; por amor da tua justiça, tira a minha alma da angustia.
12 अपनी शफ़क़त से मेरे दुश्मनों को काट डाल, और मेरी जान के सब दुख देने वालों को हलाक कर दे, क्यूँकि मैं तेरा बन्दा हूँ।
E por tua misericordia desarreiga os meus inimigos, e destroe a todos os que angustiam a minha alma: pois sou teu servo.

< ज़बूर 143 >