< ज़बूर 142 >

1 मैं अपनी ही आवाज़ बुलंद करके ख़ुदावन्द से फ़रियाद करता हूँ मै अपनी ही आवाज़ से ख़ुदावन्द से मिन्नत करता हूँ।
Учение Давида. Молитва его, когда он был в пещере. Голосом моим к Господу воззвал я, голосом моим к Господу помолился;
2 मैं उसके सामने फ़रियाद करता हूँ, मैं अपना दुख उसके सामने बयान करता हूँ।
излил пред Ним моление мое; печаль мою открыл Ему.
3 जब मुझ में मेरी जान निढाल थी, तू मेरी राह से वाक़िफ़ था! जिस राह पर मैं चलता हूँ उसमे उन्होंने मेरे लिए फंदा लगाया है।
Когда изнемогал во мне дух мой, Ты знал стезю мою. На пути, которым я ходил, они скрытно поставили сети для меня.
4 दहनी तरफ़ निगाह कर और देख, मुझे कोई नहीं पहचानता। मेरे लिए कहीं पनाह न रही, किसी को मेरी जान की फ़िक्र नहीं।
Смотрю на правую сторону, и вижу, что никто не признает меня: не стало для меня убежища, никто не заботится о душе моей.
5 ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तुझ से फ़रियाद की; मैंने कहा, तू मेरी पनाह है, और ज़िन्दों की ज़मीन में मेरा बख़रा।
Я воззвал к Тебе, Господи, я сказал: Ты прибежище мое и часть моя на земле живых.
6 मेरी फ़रियाद पर तवज्जुह कर, क्यूँकि मैं बहुत पस्त हो गया हूँ! मेरे सताने वालों से मुझे रिहाई बख़्श, क्यूँकि वह मुझ से ताक़तवर हैं।
Внемли воплю моему, ибо я очень изнемог; избавь меня от гонителей моих, ибо они сильнее меня.
7 मेरी जान को कै़द से निकाल, ताकि तेरे नाम का शुक्र करूँ सादिक़ मेरे गिर्द जमा होंगे क्यूँकि तू मुझ पर एहसान करेगा।
Выведи из темницы душу мою, чтобы мне славить имя Твое. Вокруг меня соберутся праведные, когда Ты явишь мне благодеяние.

< ज़बूर 142 >