< ज़बूर 130 >

1 ऐ ख़ुदावन्द! मैंने गहराओ में से तेरे सामने फ़रियाद की है!
Un cántico para los peregrinos que van a Jerusalén. Señor, clamo a ti desde lo más profundo de mi dolor.
2 ऐ ख़ुदावन्द! मेरी आवाज़ सुन ले! मेरी इल्तिजा की आवाज़ पर, तेरे कान लगे रहें।
Por favor escucha mi llanto, presta atención a lo que pido.
3 ऐ ख़ुदावन्द! अगर तू बदकारी को हिसाब में लाए, तो ऐ ख़ुदावन्द कौन क़ाईम रह सकेगा?
Señor, si guardaras una lista de nuestros pecados, ¿Quién podría escapar de ser condenado?
4 लेकिन मग़फ़िरत तेरे हाथ में है, ताकि लोग तुझ से डरें।
Pero tú eres un Dios perdonador y por eso debes ser respetado.
5 मैं ख़ुदावन्द का इन्तिज़ार करता हूँ। मेरी जान मुन्तज़िर है, और मुझे उसके कलाम पर भरोसा है।
Yo espero en el Señor, espero ansiosamente, porque confío en su palabra.
6 सुबह का इन्तिज़ार करने वालों से ज़्यादा, हाँ, सुबह का इन्तिज़ार करने वालों से कहीं ज़्यादा, मेरी जान ख़ुदावन्द की मुन्तज़िर है।
Anhelo que el Señor vuelva, más que los vigilantes añorando el amanecer.
7 ऐ इस्राईल! ख़ुदावन्द पर भरोसा कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द के हाथ में शफ़क़त है, उसी के हाथ में फ़िदिए की कसरत है।
Israel, deposita tus esperanzas en el Señor, porque el Señor nos ama con su inmenso amor, y su salvación no conoce límites.
8 और वही इस्राईल का फ़िदिया देकर, उसको सारी बदकारी से छुड़ाएगा।
Él redimirá a Israel de todos sus pecados.

< ज़बूर 130 >