< ज़बूर 130 >

1 ऐ ख़ुदावन्द! मैंने गहराओ में से तेरे सामने फ़रियाद की है!
Cantique des montées. Du fond de l’abîme je crie vers toi, Yahweh.
2 ऐ ख़ुदावन्द! मेरी आवाज़ सुन ले! मेरी इल्तिजा की आवाज़ पर, तेरे कान लगे रहें।
Seigneur, écoute ma voix; que tes oreilles soient attentives aux accents de ma prière!
3 ऐ ख़ुदावन्द! अगर तू बदकारी को हिसाब में लाए, तो ऐ ख़ुदावन्द कौन क़ाईम रह सकेगा?
Si tu gardes le souvenir de l’iniquité, Yahweh, Seigneur, qui pourra subsister?
4 लेकिन मग़फ़िरत तेरे हाथ में है, ताकि लोग तुझ से डरें।
Mais auprès de toi est le pardon, afin qu’on te révère.
5 मैं ख़ुदावन्द का इन्तिज़ार करता हूँ। मेरी जान मुन्तज़िर है, और मुझे उसके कलाम पर भरोसा है।
J’espère en Yahweh; mon âme espère, et j’attends sa parole.
6 सुबह का इन्तिज़ार करने वालों से ज़्यादा, हाँ, सुबह का इन्तिज़ार करने वालों से कहीं ज़्यादा, मेरी जान ख़ुदावन्द की मुन्तज़िर है।
Mon âme aspire après le Seigneur plus que les guetteurs n’aspirent après l’aurore.
7 ऐ इस्राईल! ख़ुदावन्द पर भरोसा कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द के हाथ में शफ़क़त है, उसी के हाथ में फ़िदिए की कसरत है।
Israël, mets ton espoir en Yahweh! Car avec Yahweh est la miséricorde, avec lui une surabondante délivrance.
8 और वही इस्राईल का फ़िदिया देकर, उसको सारी बदकारी से छुड़ाएगा।
C’est lui qui rachètera Israël de toutes ses iniquités.

< ज़बूर 130 >