< ज़बूर 130 >
1 ऐ ख़ुदावन्द! मैंने गहराओ में से तेरे सामने फ़रियाद की है!
A song for pilgrims going up to Jerusalem. Lord, I cry out to you from the depths of my pain.
2 ऐ ख़ुदावन्द! मेरी आवाज़ सुन ले! मेरी इल्तिजा की आवाज़ पर, तेरे कान लगे रहें।
Please listen to my cry, and pay attention to what I'm asking.
3 ऐ ख़ुदावन्द! अगर तू बदकारी को हिसाब में लाए, तो ऐ ख़ुदावन्द कौन क़ाईम रह सकेगा?
Lord, if you kept a list of sins, who could escape being condemned?
4 लेकिन मग़फ़िरत तेरे हाथ में है, ताकि लोग तुझ से डरें।
But you are forgiving so that we might respect you.
5 मैं ख़ुदावन्द का इन्तिज़ार करता हूँ। मेरी जान मुन्तज़िर है, और मुझे उसके कलाम पर भरोसा है।
I'm waiting for the Lord, longingly waiting, for I trust in his word.
6 सुबह का इन्तिज़ार करने वालों से ज़्यादा, हाँ, सुबह का इन्तिज़ार करने वालों से कहीं ज़्यादा, मेरी जान ख़ुदावन्द की मुन्तज़िर है।
I long for the Lord to come, more than watchmen longing for the dawn to come, more than watchmen longing for the dawn to come.
7 ऐ इस्राईल! ख़ुदावन्द पर भरोसा कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द के हाथ में शफ़क़त है, उसी के हाथ में फ़िदिए की कसरत है।
Israel, put your hope in the Lord, for the Lord loves us with a trustworthy love and his salvation knows no limits.
8 और वही इस्राईल का फ़िदिया देकर, उसको सारी बदकारी से छुड़ाएगा।
He will save Israel from every sin.