< ज़बूर 13 >
1 ऐ ख़ुदावन्द, कब तक? क्या तू हमेशा मुझे भूला रहेगा? तू कब तक अपना चेहरा मुझ से छिपाए रख्खेगा?
Au maître-chantre. Psaume de David.
2 कब तक मैं जी ही जी में मन्सूबा बाँधता रहूँ, और सारे दिन अपने दिल में ग़म किया करू? कब तक मेरा दुश्मन मुझ पर सर बुलन्द रहेगा?
Jusques à quand, ô Éternel, m'oublieras-tu toujours? Jusques à quand me cacheras-tu ta face?
3 ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मेरी तरफ़ तवज्जुह कर और मुझे जवाब दे। मेरी आँखे रोशन कर, ऐसा न हो कि मुझे मौत की नींद आ जाए
Jusques à quand formerai-je des projets dans mon âme, et aurai-je le chagrin au cœur tout le jour? Jusques à quand mon ennemi s'élèvera-t-il contre moi?
4 ऐसा न हो कि मेरा दुश्मन कहे, कि मैं इस पर ग़ालिब आ गया। ऐसा न हो कि जब मैं जुम्बिश खाऊँ तो मेरे मुखालिफ़ ख़ुश हों।
Éternel, mon Dieu, regarde, exauce-moi; éclaire mes yeux, de peur que je ne m'endorme du sommeil de la mort;
5 लेकिन मैंने तो तेरी रहमत पर भरोसा किया है; मेरा दिल तेरी नजात से खु़श होगा।
De peur que mon ennemi ne dise: J'ai eu le dessus; que mes adversaires ne se réjouissent, si j'étais ébranlé.
6 मैं ख़ुदावन्द का हम्द गाऊँगा क्यूँकि उसने मुझ पर एहसान किया है।
Pour moi, je me confie en ta bonté; mon cœur se réjouira de ton salut; je chanterai à l'Éternel, parce qu'il m'aura fait du bien.