< ज़बूर 129 >
1 इस्राईल अब यूँ कहे, “उन्होंने मेरी जवानी से अब तक मुझे बार बार सताया,
[Ein Stufenlied.] Oftmals haben sie mich bedrängt von meiner Jugend an, sage doch Israel,
2 हाँ, उन्होंने मेरी जवानी से अब तक मुझे बार बार सताया, तोभी वह मुझ पर ग़ालिब न आए।
Oftmals haben sie mich bedrängt von meiner Jugend an; dennoch haben sie mich nicht übermocht.
3 हलवाहों ने मेरी पीठ पर हल चलाया, और लम्बी लम्बी रेघारियाँ बनाई।”
Pflüger haben auf meinem Rücken gepflügt, haben lang gezogen ihre Furchen.
4 ख़ुदावन्द सादिक़ है; उसने शरीरों की रसियाँ काट डालीं।
Jehova ist gerecht; er hat durchschnitten das Seil der Gesetzlosen.
5 सिय्यून से नफ़रत रखने वाले, सब शर्मिन्दा और पस्पा हों।
Mögen beschämt werden und zurückweichen alle, die Zion hassen!
6 वह छत पर की घास की तरह हों, जो बढ़ने से पहले ही सूख जाती है;
Mögen sie sein wie das Gras der Dächer, welches verdorrt, ehe man es ausrauft, [O. ehe es aufgeschlossen ist]
7 जिससे फ़सल काटने वाला अपनी मुट्ठी को, और पूले बाँधने वाला अपने दामन को नहीं भरता,
Womit der Schnitter seine Hand nicht füllt, noch der Garbenbinder seinen Schoß;
8 न आने जाने वाले यह कहते हैं, “तुम पर ख़ुदावन्द की बरकत हो! हम ख़ुदावन्द के नाम से तुम को दुआ देते हैं!”
Und die Vorübergehenden sagen nicht: Jehovas Segen über euch! Wir segnen euch im Namen Jehovas.