< ज़बूर 122 >
1 मैं ख़ुश हुआ जब वह मुझ से कहने लगे “आओ ख़ुदावन्द के घर चलें।”
Yo me alegré con los que me decían: A la casa de Jehová iremos.
2 ऐ येरूशलेम! हमारे क़दम, तेरे फाटकों के अन्दर हैं।
Nuestros pies estuvieron en tus puertas, o! Jerusalem.
3 ऐ येरूशलेम तू ऐसे शहर के तरह है जो गुनजान बना हो।
Jerusalem, la que es edificada como una ciudad que está unida consigo a una.
4 जहाँ क़बीले या'नी ख़ुदावन्द के क़बीले, इस्राईल की शहादत के लिए, ख़ुदावन्द के नाम का शुक्र करने को जातें हैं।
Porque allá subieron las tribus, las tribus de Jehová, el testimonio a Israel, para alabar el nombre de Jehová.
5 क्यूँकि वहाँ 'अदालत के तख़्त, या'नी दाऊद के ख़ान्दान के तख़्त क़ाईम हैं।
Porque allá están las sillas del juicio: las sillas de la casa de David.
6 येरूशलेम की सलामती की दुआ करो, वह जो तुझ से मुहब्बत रखते हैं इकबालमंद होंगे।
Demandád la paz de Jerusalem: sean pacificados los que te aman.
7 तेरी फ़सील के अन्दर सलामती, और तेरे महलों में इकबालमंदी हो।
Haya paz en tu antemuro, descanso en tus palacios.
8 मैं अपने भाइयों और दोस्तों की ख़ातिर, अब कहूँगा तुझ में सलामती रहे!
A causa de mis hermanos y mis compañeros hablaré ahora paz de ti.
9 ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर की ख़ातिर, मैं तेरी भलाई का तालिब रहूँगा।
A causa de la casa de Jehová nuestro Dios buscaré bien para ti.