< ज़बूर 122 >

1 मैं ख़ुश हुआ जब वह मुझ से कहने लगे “आओ ख़ुदावन्द के घर चलें।”
שִׁ֥יר הַֽמַּעֲל֗וֹת לְדָ֫וִ֥ד שָׂ֭מַחְתִּי בְּאֹמְרִ֣ים לִ֑י בֵּ֖ית יְהוָ֣ה נֵלֵֽךְ׃
2 ऐ येरूशलेम! हमारे क़दम, तेरे फाटकों के अन्दर हैं।
עֹ֭מְדוֹת הָי֣וּ רַגְלֵ֑ינוּ בִּ֝שְׁעָרַ֗יִךְ יְרוּשָׁלִָֽם׃
3 ऐ येरूशलेम तू ऐसे शहर के तरह है जो गुनजान बना हो।
יְרוּשָׁלִַ֥ם הַבְּנוּיָ֑ה כְּ֝עִ֗יר שֶׁחֻבְּרָה־לָּ֥הּ יַחְדָּֽו׃
4 जहाँ क़बीले या'नी ख़ुदावन्द के क़बीले, इस्राईल की शहादत के लिए, ख़ुदावन्द के नाम का शुक्र करने को जातें हैं।
שֶׁשָּׁ֨ם עָל֪וּ שְׁבָטִ֡ים שִׁבְטֵי־יָ֭הּ עֵד֣וּת לְיִשְׂרָאֵ֑ל לְ֝הֹד֗וֹת לְשֵׁ֣ם יְהוָֽה׃
5 क्यूँकि वहाँ 'अदालत के तख़्त, या'नी दाऊद के ख़ान्दान के तख़्त क़ाईम हैं।
כִּ֤י שָׁ֨מָּה ׀ יָשְׁב֣וּ כִסְא֣וֹת לְמִשְׁפָּ֑ט כִּ֝סְא֗וֹת לְבֵ֣ית דָּוִֽיד׃
6 येरूशलेम की सलामती की दुआ करो, वह जो तुझ से मुहब्बत रखते हैं इकबालमंद होंगे।
שַׁ֭אֲלוּ שְׁל֣וֹם יְרוּשָׁלִָ֑ם יִ֝שְׁלָ֗יוּ אֹהֲבָֽיִךְ׃
7 तेरी फ़सील के अन्दर सलामती, और तेरे महलों में इकबालमंदी हो।
יְהִֽי־שָׁל֥וֹם בְּחֵילֵ֑ךְ שַׁ֝לְוָ֗ה בְּאַרְמְנוֹתָֽיִךְ׃
8 मैं अपने भाइयों और दोस्तों की ख़ातिर, अब कहूँगा तुझ में सलामती रहे!
לְ֭מַעַן אַחַ֣י וְרֵעָ֑י אֲדַבְּרָה־נָּ֖א שָׁל֣וֹם בָּֽךְ׃
9 ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के घर की ख़ातिर, मैं तेरी भलाई का तालिब रहूँगा।
לְ֭מַעַן בֵּית־יְהוָ֣ה אֱלֹהֵ֑ינוּ אֲבַקְשָׁ֖ה ט֣וֹב לָֽךְ׃

< ज़बूर 122 >