< ज़बूर 114 >
1 जब इस्राईल मिस्र से निकलआया, या'नी या'क़ूब का घराना अजनबी ज़बान वाली क़ौम में से;
When Israel came forth from Egypt, The house of Jacob from a people of strange language,
2 तो यहूदाह उसका हैकल, और इस्राईल उसकी ममलुकत ठहरा।
Judah was his sanctuary, And Israel his dominion.
3 यह देखते ही समन्दर भागा; यरदन पीछे हट गया।
The sea beheld, and fled; The Jordan turned back.
4 पहाड़ मेंढों की तरह उछले, पहाड़ियाँ भेड़ के बच्चों की तरह कूदे।
The mountains skipped like rams, And the hills like lambs.
5 ऐ समन्दर, तुझे क्या हुआ के तू भागता है? ऐ यरदन, तुझे क्या हुआ कि तू पीछे हटता है?
What aileth thee, O thou sea! that thou fleest? Thou, Jordan, that thou runnest back?
6 ऐ पहाड़ो, तुम को क्या हुआ के तुम मेंढों की तरह उछलते हो? ऐ पहाड़ियो, तुम को क्या हुआ के तुम भेड़ के बच्चों की तरह कूदती हो?
Ye mountains, that ye skip like rams, And ye hills like lambs?
7 ऐ ज़मीन, तू रब्ब के सामने, या'क़ूब के ख़ुदा के सामने थरथरा;
Tremble, O earth! at the presence of the Lord, At the presence of the God of Jacob;
8 जो चट्टान को झील, और चक़माक़ की पानी का चश्मा बना देता है।
Who turned the rock into a standing lake, And the flint into a fountain of water!