< ज़बूर 11 >

1 मेरा भरोसा ख़ुदावन्द पर है तुम क्यूँकर मेरी जान से कहते हो कि चिड़िया की तरह अपने पहाड़ पर उड़ जा?
In finem. Psalmus David. In Domino confido; quomodo dicitis animæ meæ: Transmigra in montem sicut passer?
2 क्यूँकि देखो! शरीर कमान खींचते हैं वह तीर को चिल्ले पर रखते हैं ताकि अँधेरे में रास्त दिलों पर चलायें।
Quoniam ecce peccatores intenderunt arcum; paraverunt sagittas suas in pharetra, ut sagittent in obscuro rectos corde:
3 अगर बुनयाद ही उखाड़ दी जाये तो सादिक़ क्या कर सकता है।
quoniam quæ perfecisti destruxerunt; justus autem, quid fecit?
4 ख़ुदावन्द अपनी पाक हैकल में है ख़ुदावन्द का तख़्त आसमान पर है। उसकी आँखें बनी आदम को देखती और उसकी पलकें उनको जाँचती हैं।
Dominus in templo sancto suo; Dominus in cælo sedes ejus. Oculi ejus in pauperem respiciunt; palpebræ ejus interrogant filios hominum.
5 ख़ुदावन्द सादिक़ को परखता है लेकिन शरीर और ज़ुल्म को पसन्द करने वाले से उसकी रूह को नफ़रत है
Dominus interrogat justum et impium; qui autem diligit iniquitatem, odit animam suam.
6 वह शरीरों पर फंदे बरसायेगा आग और गंधक और लू उनके प्याले का हिस्सा होगा।
Pluet super peccatores laqueos; ignis et sulphur, et spiritus procellarum, pars calicis eorum.
7 क्यूँकि ख़ुदावन्द सादिक़ है वह सच्चाई को पसंद करता है रास्त बाज़ उसका दीदार हासिल करेंगे।
Quoniam justus Dominus, et justitias dilexit: æquitatem vidit vultus ejus.

< ज़बूर 11 >