< अम्सा 2 >

1 ऐ मेरे बेटे, अगर तू मेरी बातों को क़ुबूल करे, और मेरे फ़रमान को निगाह में रख्खे,
בְּ֭נִי אִם־תִּקַּ֣ח אֲמָרָ֑י וּ֝מִצְוֺתַ֗י תִּצְפֹּ֥ן אִתָּֽךְ׃
2 ऐसा कि तू हिकमत की तरफ़ कान लगाए, और समझ से दिल लगाए,
לְהַקְשִׁ֣יב לַֽחָכְמָ֣ה אָזְנֶ֑ךָ תַּטֶּ֥ה לִ֝בְּךָ֗ לַתְּבוּנָֽה׃
3 बल्कि अगर तू 'अक़्ल को पुकारे, और समझ के लिए आवाज़ बलन्द करे
כִּ֤י אִ֣ם לַבִּינָ֣ה תִקְרָ֑א לַ֝תְּבוּנָ֗ה תִּתֵּ֥ן קוֹלֶֽךָ׃
4 और उसको ऐसा ढूँढे जैसे चाँदी को, और उसकी ऐसी तलाश करे जैसी पोशीदा ख़ज़ानों की;
אִם־תְּבַקְשֶׁ֥נָּה כַכָּ֑סֶף וְֽכַמַּטְמוֹנִ֥ים תַּחְפְּשֶֽׂנָּה׃
5 तो तू ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ को समझेगा, और ख़ुदा के ज़रिए' को हासिल करेगा।
אָ֗ז תָּ֭בִין יִרְאַ֣ת יְהוָ֑ה וְדַ֖עַת אֱלֹהִ֣ים תִּמְצָֽא׃
6 क्यूँकि ख़ुदावन्द हिकमत बख़्शता है; 'इल्म — ओ — समझ उसी के मुँह से निकलते हैं।
כִּֽי־יְ֭הוָה יִתֵּ֣ן חָכְמָ֑ה מִ֝פִּ֗יו דַּ֣עַת וּתְבוּנָֽה׃
7 वह रास्तबाज़ों के लिए मदद तैयार रखता है, और रास्तरौ के लिए सिपर है।
וצפן לַ֭יְשָׁרִים תּוּשִׁיָּ֑ה מָ֝גֵ֗ן לְהֹ֣לְכֵי תֹֽם׃
8 ताकि वह 'अद्ल की राहों की निगहबानी करे, और अपने मुक़द्दसों की राह को महफ़ूज़ रख्खे।
לִ֭נְצֹר אָרְח֣וֹת מִשְׁפָּ֑ט וְדֶ֖רֶךְ חסידו יִשְׁמֹֽר׃
9 तब तू सदाक़त और 'अद्ल और रास्ती को, बल्कि हर एक अच्छी राह को समझेगा।
אָ֗ז תָּ֭בִין צֶ֣דֶק וּמִשְׁפָּ֑ט וּ֝מֵישָׁרִ֗ים כָּל־מַעְגַּל־ טֽוֹב׃
10 क्यूँकि हिकमत तेरे दिल में दाख़िल होगी, और 'इल्म तेरी जान को पसंद होगा,
כִּֽי־תָב֣וֹא חָכְמָ֣ה בְלִבֶּ֑ךָ וְ֝דַ֗עַת לְֽנַפְשְׁךָ֥ יִנְעָֽם׃
11 तमीज़ तेरी निगहबान होगी, समझ तेरी हिफ़ाज़त करेगा;
מְ֭זִמָּה תִּשְׁמֹ֥ר עָלֶ֗יךָ תְּבוּנָ֥ה תִנְצְרֶֽכָּה׃
12 ताकि तुझे शरीर की राह से, और कजगो से बचाएँ।
לְ֭הַצִּ֣ילְךָ מִדֶּ֣רֶךְ רָ֑ע מֵ֝אִ֗ישׁ מְדַבֵּ֥ר תַּהְפֻּכֽוֹת׃
13 जो रास्तबाज़ी की राह को छोड़ते हैं, ताकि तारीकी की राहों में चलें,
הַ֭עֹ֣זְבִים אָרְח֣וֹת יֹ֑שֶׁר לָ֝לֶ֗כֶת בְּדַרְכֵי־חֹֽשֶׁךְ׃
14 जो बदकारी से ख़ुश होते हैं, और शरारत की कजरवी में खु़श रहते हैं,
הַ֭שְּׂמֵחִים לַעֲשׂ֥וֹת רָ֑ע יָ֝גִ֗ילוּ בְּֽתַהְפֻּכ֥וֹת רָֽע׃
15 जिनका चाल चलन ना हमवार, और जिनकी राहें टेढ़ी हैं।
אֲשֶׁ֣ר אָרְחֹתֵיהֶ֣ם עִקְּשִׁ֑ים וּ֝נְלוֹזִ֗ים בְּמַעְגְּלוֹתָֽם׃
16 ताकि तुझे बेगाना 'औरत से बचाएँ, या'नी चिकनी चुपड़ी बातें करने वाली पराई 'औरत से,
לְ֭הַצִּ֣ילְךָ מֵאִשָּׁ֣ה זָרָ֑ה מִ֝נָּכְרִיָּ֗ה אֲמָרֶ֥יהָ הֶחֱלִֽיקָה׃
17 जो अपनी जवानी के साथी को छोड़ देती है, और अपने ख़ुदा के 'अहद को भूल जाती है।
הַ֭עֹזֶבֶת אַלּ֣וּף נְעוּרֶ֑יהָ וְאֶת־בְּרִ֖ית אֱלֹהֶ֣יהָ שָׁכֵֽחָה׃
18 क्यूँकि उसका घर मौत की उतराई पर है, और उसकी राहें पाताल को जाती हैं।
כִּ֤י שָׁ֣חָה אֶל־מָ֣וֶת בֵּיתָ֑הּ וְאֶל־רְ֝פָאִ֗ים מַעְגְּלֹתֶֽיהָ׃
19 जो कोई उसके पास जाता है, वापस नहीं आता; और ज़िन्दगी की राहों तक नहीं पहुँचता।
כָּל־בָּ֭אֶיהָ לֹ֣א יְשׁוּב֑וּן וְלֹֽא־יַ֝שִּׂ֗יגוּ אָרְח֥וֹת חַיִּֽים׃
20 ताकि तू नेकों की राह पर चले, और सादिक़ों की राहों पर क़ाईम रहे।
לְמַ֗עַן תֵּ֭לֵךְ בְּדֶ֣רֶךְ טוֹבִ֑ים וְאָרְח֖וֹת צַדִּיקִ֣ים תִּשְׁמֹֽר׃
21 क्यूँकि रास्तबाज़ मुल्क में बसेंगे, और कामिल उसमें आबाद रहेंगे।
כִּֽי־יְשָׁרִ֥ים יִשְׁכְּנוּ אָ֑רֶץ וּ֝תְמִימִ֗ים יִוָּ֥תְרוּ בָֽהּ׃
22 लेकिन शरीर ज़मीन पर से काट डाले जाएँगे, और दग़ाबाज़ उससे उखाड़ फेंके जाएँगे।
וּ֭רְשָׁעִים מֵאֶ֣רֶץ יִכָּרֵ֑תוּ וּ֝בוֹגְדִ֗ים יִסְּח֥וּ מִמֶּֽנָּה׃ פ

< अम्सा 2 >