< फिलिप्पियों 4 >
1 इस वास्ते ऐ मेरे प्यारे भाइयों! जिनका मैं मुश्ताक़ हूँ जो मेरी ख़ुशी और ताज हो। ऐ प्यारो! ख़ुदावन्द में इसी तरह क़ाईम रहो।
hE madIyAnandamukuTasvarUpAH priyatamA abhISTatamA bhrAtaraH, hE mama snEhapAtrAH, yUyam itthaM pabhau sthirAstiSThata|
2 मैं यहुदिया को भी नसीहत करता हूँ और सुनतुखे को भी कि वो ख़ुदावन्द में एक दिल रहे।
hE ivadiyE hE suntukhi yuvAM prabhau EkabhAvE bhavatam Etad ahaM prArthayE|
3 और ऐ सच्चे हमख़िदमत, तुझ से भी दरख़्वास्त करता हूँ कि तू उन 'औरतों की मदद कर, क्यूँकि उन्होंने ख़ुशख़बरी फैलाने में क्लेमेंस और मेरे बाक़ी उन हम ख़िदमतों समेत मेहनत की, जिनके नाम किताब — ए — हयात में दर्ज हैं।
hE mama satya sahakArin tvAmapi vinIya vadAmi EtayOrupakArastvayA kriyatAM yatastE klIminAdibhiH sahakAribhiH sArddhaM susaMvAdapracAraNAya mama sAhAyyArthaM parizramam akurvvatAM tESAM sarvvESAM nAmAni ca jIvanapustakE likhitAni vidyantE|
4 ख़ुदावन्द में हर वक़्त ख़ुश रहो; मैं फिर कहता हूँ कि ख़ुश रहो।
yUyaM prabhau sarvvadAnandata| puna rvadAmi yUyam Anandata|
5 तुम्हारी नर्म मिज़ाजी सब आदमियों पर ज़ाहिर हो, ख़ुदावन्द क़रीब है।
yuSmAkaM vinItatvaM sarvvamAnavai rjnjAyatAM, prabhuH sannidhau vidyatE|
6 किसी बात की फ़िक्र न करो, बल्कि हर एक बात में तुम्हारी दरख़्वास्तें दुआ और मिन्नत के वसीले से शुक्रगुज़ारी के साथ ख़ुदा के सामने पेश की जाएँ।
yUyaM kimapi na cintayata kintu dhanyavAdayuktAbhyAM prArthanAyAnjcAbhyAM sarvvaviSayE svaprArthanIyam IzvarAya nivEdayata|
7 तो ख़ुदा का इत्मीनान जो समझ से बिल्कुल बाहर है, वो तुम्हारे दिलो और ख़यालों को मसीह 'ईसा में महफ़ूज़ रखेगा।
tathA kRta IzvarIyA yA zAntiH sarvvAM buddhim atizEtE sA yuSmAkaM cittAni manAMsi ca khrISTE yIzau rakSiSyati|
8 ग़रज़ ऐ भाइयों! जितनी बातें सच हैं, और जितनी बातें शराफ़त की हैं, और जितनी बातें वाजिब हैं, और जितनी बातें पाक हैं, और जितनी बातें पसन्दीदा हैं, और जितनी बातें दिलकश हैं; ग़रज़ जो नेकी और ता 'रीफ़ की बातें हैं, उन पर ग़ौर किया करो।
hE bhrAtaraH, zESE vadAmi yadyat satyam AdaraNIyaM nyAyyaM sAdhu priyaM sukhyAtam anyENa yEna kEnacit prakArENa vA guNayuktaM prazaMsanIyaM vA bhavati tatraiva manAMsi nidhadhvaM|
9 जो बातें तुमने मुझ से सीखीं, और हासिल की, और सुनीं, और मुझ में देखीं, उन पर अमल किया करो, तो ख़ुदा जो इत्मीनान का चश्मा है तुम्हारे साथ रहेगा।
yUyaM mAM dRSTvA zrutvA ca yadyat zikSitavantO gRhItavantazca tadEvAcarata tasmAt zAntidAyaka IzvarO yuSmAbhiH sArddhaM sthAsyati|
10 मैं ख़ुदावन्द में बहुत ख़ुश हूँ कि अब इतनी मुद्दत के बाद तुम्हारा ख़याल मेरे लिए सरसब्ज़ हुआ; बेशक तुम्हें पहले भी इसका ख़याल था, मगर मौक़ा न मिला।
mamOpakArAya yuSmAkaM yA cintA pUrvvam AsIt kintu karmmadvAraM na prApnOt idAnIM sA punaraphalat ityasmin prabhau mama paramAhlAdO'jAyata|
11 ये नहीं कि मैं मोहताजी के लिहाज़ से कहता हूँ; क्यूँकि मैंने ये सीखा है कि जिस हालत में हूँ उसी पर राज़ी रहूँ
ahaM yad dainyakAraNAd idaM vadAmi tannahi yatO mama yA kAcid avasthA bhavEt tasyAM santOSTum azikSayaM|
12 मैं पस्त होना भी जनता हूँ और बढ़ना भी जनता हूँ; हर एक बात और सब हालतों में मैंने सेर होना, भूखा रहना और बढ़ना घटना सीखा है।
daridratAM bhOktuM zaknOmi dhanAPhyatAm api bhOktuM zaknOmi sarvvathA sarvvaviSayESu vinItO'haM pracuratAM kSudhAnjca dhanaM dainyanjcAvagatO'smi|
13 जो मुझे ताक़त बख़्शता है, उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ।
mama zaktidAyakEna khrISTEna sarvvamEva mayA zakyaM bhavati|
14 तो भी तुम ने अच्छा किया जो मेरी मुसीबतों में शरीक हुए।
kintu yuSmAbhi rdainyanivAraNAya mAm upakRtya satkarmmAkAri|
15 और ऐ फिलिप्प्यों! तुम ख़ुद भी जानते हो कि ख़ुशख़बरी के शुरू में, जब मैं मकिदुनिया से रवाना हुआ तो तुम्हारे सिवा किसी कलीसिया ने लेने — देने में मेरी मदद न की।
hE philipIyalOkAH, susaMvAdasyOdayakAlE yadAhaM mAkidaniyAdEzAt pratiSThE tadA kEvalAn yuSmAn vinAparayA kayApi samityA saha dAnAdAnayO rmama kO'pi sambandhO nAsId iti yUyamapi jAnItha|
16 चुनाँचे थिस्सलुनीकियों में भी मेरी एहतियाज रफ़ा' करने के लिए तुमने एक दफ़ा' नहीं, बल्कि दो दफ़ा' कुछ भेजा था।
yatO yuSmAbhi rmama prayOjanAya thiSalanIkInagaramapi mAM prati punaH punardAnaM prESitaM|
17 ये नहीं कि मैं ईनाम चाहता हूँ बल्कि ऐसा फल चाहता हूँ जो तुम्हारे हिसाब से ज़्यादा हो जाए
ahaM yad dAnaM mRgayE tannahi kintu yuSmAkaM lAbhavarddhakaM phalaM mRgayE|
18 मेरे पास सब कुछ है, बल्कि बहुतायत से है; तुम्हारी भेजी हुई चीज़ों इप्फ़्र्दितुस के हाथ से लेकर मैं आसूदा हो गया हूँ, वो ख़ुशबू और मक़बूल क़ुर्बानी हैं जो ख़ुदा को पसन्दीदा है।
kintu mama kasyApyabhAvO nAsti sarvvaM pracuram AstE yata Izvarasya grAhyaM tuSTijanakaM sugandhinaivEdyasvarUpaM yuSmAkaM dAnaM ipAphraditAd gRhItvAhaM paritRptO'smi|
19 मेरा ख़ुदा अपनी दौलत के मुवाफ़िक़ जलाल से मसीह 'ईसा में तुम्हारी हर एक कमी रफ़ा' करेगा।
mamEzvarO'pi khrISTEna yIzunA svakIyavibhavanidhitaH prayOjanIyaM sarvvaviSayaM pUrNarUpaM yuSmabhyaM dEyAt|
20 हमारे ख़ुदा और बाप की हमेशा से हमेशा तक बड़ाई होती रहे आमीन (aiōn )
asmAkaM piturIzvarasya dhanyavAdO'nantakAlaM yAvad bhavatu| AmEn| (aiōn )
21 हर एक मुक़द्दस से जो मसीह ईसा में है सलाम कहो। जो भाई मेरे साथ हैं तुम्हें सलाम कहते है।
yUyaM yIzukhrISTasyaikaikaM pavitrajanaM namaskuruta| mama saggibhrAtarO yUSmAn namaskurvvatE|
22 सब मुक़द्दस खुसूसन, क़ैसर के घर वाले तुम्हें सलाम कहते हैं।
sarvvE pavitralOkA vizESataH kaisarasya parijanA yuSmAn namaskurvvatE|
23 ख़ुदावन्द ईसा मसीह का फ़ज़ल तुम्हारी रूह के साथ रहे।
asmAkaM prabhO ryIzukhrISTasya prasAdaH sarvvAn yuSmAn prati bhUyAt| AmEn|