< नहे 9 >
1 फिर इसी महीने की चौबीसवीं तारीख़ को बनी — इस्राईल रोज़ा रखकर और टाट ओढ़कर और मिट्टी अपने सिर पर डालकर इकट्ठे हुए।
El día veinticuatro de este mes se reunieron los hijos de Israel con ayuno, con cilicio y con tierra sobre ellos.
2 और इस्राईल की नसल के लोग सब परदेसियों से अलग हो गए, और खड़े होकर अपने गुनाहों और अपने बाप — दादा की ख़ताओं का इक़रार किया।
Los descendientes de Israel se separaron de todos los extranjeros y se pusieron de pie y confesaron sus pecados y las iniquidades de sus padres.
3 और उन्होंने अपनी अपनी जगह पर खड़े होकर एक पहर तक ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की किताब पढ़ी; और दूसरे पहर में, इक़रार करके ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सिज्दा करते रहे।
Se pusieron de pie en su lugar y leyeron en el libro de la ley de Yahvé su Dios la cuarta parte del día; y la cuarta parte la confesaron y adoraron a Yahvé su Dios.
4 तब क़दमीएल, यशू'अ, और बानी, और सबनियाह, बुन्नी और सरीबियाह, और बानी, और कना'नी ने लावियों की सीढ़ियों पर खड़े होकर बलन्द आवाज़ से ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से फ़रियाद की।
Entonces Jesúa, Baní, Cadmiel, Sebanías, Buní, Serebías, Baní y Quenaní, de los levitas, se pusieron de pie en la escalera y clamaron en voz alta a Yahvé su Dios.
5 फिर यशू'अ, और क़दमिएल और बानी और हसबनियाह और सरीबियाह और हूदियाह, और सबनियाह, और फ़तहियाह लावियों ने कहा, खड़े हो जाओ, और कहो, ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा इब्तिदा से हमेशा तक मुबारक है; तेरा जलाली नाम मुबारक हो, जो सब हम्द — ओ — ता'रीफ़ से बाला है।
Entonces los levitas, Jesúa y Cadmiel, Baní, Hasabneías, Serebías, Hodías, Sebanías y Petaías, dijeron: “¡Ponte de pie y bendice a Yahvé, tu Dios, desde la eternidad hasta la eternidad! ¡Bendito sea tu nombre glorioso, que es exaltado sobre toda bendición y alabanza!
6 तू ही अकेला ख़ुदावन्द है; तूने आसमान और आसमानों के आसमान को और उनके सारे लश्कर को, और ज़मीन को और जो कुछ उसपर है, और समन्दरों को और जो कुछ उनमें है बनाया और तू उन सभों का परवरदिगार है; और आसमान का लश्कर तुझे सिज्दा करता है।
Tú eres Yahvé, tú solo. Tú has hecho el cielo, el cielo de los cielos, con todo su ejército, la tierra y todo lo que hay en ella, los mares y todo lo que hay en ellos, y tú lo conservas todo. El ejército de los cielos te adora.
7 तू वह ख़ुदावन्द ख़ुदा है जिसने इब्रहाम को चुन लिया, और उसे कसदियों के ऊर से निकाल लाया, और उसका नाम अब्रहाम रख्खा;
Tú eres Yahvé, el Dios que eligió a Abram, lo sacó de Ur de los Caldeos, le dio el nombre de Abraham,
8 तूने उसका दिल अपने सामने वफ़ादार पाया, और कना'नियों हित्तियों और अमोरियों फ़रिज़्ज़ियों और यबूसियों और जिरजासियों का मुल्क देने का 'अहद उससे बाँधा ताकि उसे उसकी नसल को दे; और तूने अपने सुख़न पूरे किए क्यूँकि तू सादिक़ है।
encontró su corazón fiel ante ti, e hizo un pacto con él para darle la tierra del cananeo, del hitita, del amorreo, del ferezeo, del jebuseo y del gergeseo, para dársela a su descendencia, y has cumplido tus palabras, porque eres justo.
9 और तूने मिस्र में हमारे बाप — दादा की मुसीबत पर नज़र की, और बहर — ए — कु़लजु़म के किनारे उनकी फ़रियाद सुनी।
“Viste la aflicción de nuestros padres en Egipto, y oíste su clamor junto al Mar Rojo,
10 और फ़िर'औन और उसके सब नौकरों, और उसके मुल्क की सब र'इयत पर निशान और 'अजायब कर दिखाए; क्यूँकि तू जानता था कि वह ग़ुरूर के साथ उनसे पेश आए। इसलिए तेरा बड़ा नाम हुआ, जैसा आज है।
y mostraste señales y prodigios contra el Faraón, contra todos sus siervos y contra todo el pueblo de su tierra, porque sabías que se burlaban de ellos, y te hiciste un nombre, como lo es hoy.
11 और तूने उनके आगे समन्दर को दो हिस्से किया, ऐसा कि वह समन्दर के बीच सूखी ज़मीन पर होकर चले; और तूने उनका पीछा करनेवालों को गहराओ में डाला, जैसा पत्थर समन्दर में फेंका जाता है।
Dividiste el mar delante de ellos, de modo que pasaron por el medio del mar en seco; y arrojaste a sus perseguidores a las profundidades, como una piedra a las aguas impetuosas.
12 और तूने दिन को बादल के सुतून में होकर उनकी रहनुमाई की और रात को आग के सुतून में, ताकि जिस रास्ते उनको चलना था उसमें उनको रोशनी मिले।
Además, en una columna de nube los guiaste de día, y en una columna de fuego de noche, para alumbrarles el camino que debían seguir.
13 और तू कोह-ए-सीना पर उतर आया, और तूने आसमान पर से उनके साथ बातें कीं, और रास्त अहकाम और सच्चे क़ानून और अच्छे आईन — ओ — फ़रमान उनको दिए,
“También bajaste al monte Sinaí, y hablaste con ellos desde el cielo, y les diste ordenanzas rectas y leyes verdaderas, buenos estatutos y mandamientos,
14 और उनको अपने पाक सबत से वाक़िफ़ किया, और अपने बन्दे मूसा के ज़रिए' उनको अहकाम और आईन और शरी'अत दी।
y les diste a conocer tu santo sábado, y les ordenaste mandamientos, estatutos y una ley, por medio de Moisés, tu siervo,
15 और तूने उनकी भूक मिटाने को आसमान पर से रोटी दी, और उनकी प्यास बुझाने को चट्टान में से उनके लिए पानी निकाला, और उनको फ़रमाया कि वह जाकर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करें जिसको उनको देने की तूने क़सम खाई थी।
y les diste pan del cielo para su hambre, y les sacaste agua de la roca para su sed, y les ordenaste que entraran a poseer la tierra que habías jurado darles.
16 लेकिन उन्होंने और हमारे बाप — दादा ने ग़ुरूर किया, और बाग़ी बने और तेरे हुक्मों को न माना;
“Pero ellos y nuestros padres se comportaron con soberbia, endurecieron su cerviz, no escucharon tus mandamientos,
17 और फ़रमाँबरदारी से इन्कार किया, और तेरे 'अजायब को जो तूने उनके बीच किए याद न रख्खा; बल्कि बाग़ी बने और अपनी बग़ावत में अपने लिए एक सरदार मुक़र्रर किया, ताकि अपनी ग़ुलामी की तरफ़ लौट जाएँ। लेकिन तू वह ख़ुदा है जो रहीम — ओ — करीम मु'आफ़ करने को तैयार, और क़हर करने में धीमा, और शफ़क़त में ग़नी है, इसलिए तूने उनको छोड़ न दिया।
y se negaron a obedecer. No tuvieron en cuenta tus maravillas que hiciste entre ellos, sino que endurecieron su cerviz, y en su rebeldía nombraron un capitán para volver a su esclavitud. Pero tú eres un Dios dispuesto a perdonar, clemente y misericordioso, lento para la ira y abundante en bondades, y no los abandonaste.
18 लेकिन जब उन्होंने अपने लिए ढाला हुआ बछड़ा बनाकर कहा, 'ये तेरा ख़ुदा है, जो तुझे मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया, और यूँ ग़ुस्सा दिलाने के बड़े बड़े काम किए;
Sí, cuando se hicieron un becerro moldeado y dijeron: “Este es vuestro Dios, que os hizo subir de Egipto”, y cometieron horribles blasfemias,
19 तो भी तूने अपनी गूँनागूँ रहमतों से उनको वीराने में छोड़ न दिया; दिन को बादल का सुतून उनके ऊपर से दूर न हुआ, ताकि रास्ते में उनकी रहनुमाई करे, और न रात को आग का सुतून दूर हुआ, ताकि वह उनको रोशनी और वह रास्ता दिखाए जिससे उनको चलना था।
pero tú, en tus múltiples misericordias, no los abandonaste en el desierto. La columna de nube no se apartó de ellos durante el día para guiarlos por el camino, ni la columna de fuego durante la noche para mostrarles la luz y el camino que debían seguir.
20 और तूने अपनी नेक रूह भी उनकी तरबियत के लिए बख़्शी, और मन को उनके मुँह से न रोका, और उनको प्यास को बुझाने को पानी दिया।
También diste tu buen Espíritu para instruirlos, y no retuviste tu maná de su boca, y les diste agua para su sed.
21 चालीस बरस तक तू वीराने में उनकी परवरिश करता रहा; वह किसी चीज़ के मुहताज न हुए, न तो उनके कपड़े पुराने हुए और न उनके पाँव सूजे।
“Sí, cuarenta años los sostuviste en el desierto. Nada les faltó. Sus vestidos no envejecieron y sus pies no se hincharon.
22 इसके सिवा तूने उनको ममलुकतें और उम्मतें बख़्शीं, जिनको तूने उनके हिस्सों के मुताबिक़ उनको बाँट दिया; चुनाँचे वह सीहोन के मुल्क, और शाह — ए — हस्बोन के मुल्क, और बसन के बादशाह 'ओज के मुल्क पर क़ाबिज़ हुए।
Además, les diste reinos y pueblos, que asignaste según sus porciones. Así poseyeron la tierra de Sehón, la tierra del rey de Hesbón y la tierra de Og, rey de Basán.
23 तूने उनकी औलाद को बढ़ाकर आसमान के सितारों की तरह कर दिया, और उनको उस मुल्क में लाया जिसके बारे में तूने उनके बाप — दादा से कहा था कि वह जाकर उसपर क़ब्ज़ा करें।
También multiplicaste sus hijos como las estrellas del cielo, y los introdujiste en la tierra sobre la que habías dicho a sus padres que entrarían a poseerla.
24 तब उनकी औलाद ने आकर इस मुल्क पर क़ब्ज़ा किया, और तूने उनके आगे इस मुल्क के बाशिन्दों या'नी कना'नियों को मग़लूब किया, और उनको उनके बादशाहों और इस मुल्क के लोगों के साथ उनके हाथ में कर दिया कि जैसा चाहें वैसा उनसे करें।
“Así que los hijos entraron y poseyeron la tierra; y tú sometiste ante ellos a los habitantes de la tierra, los cananeos, y los entregaste en sus manos, con sus reyes y los pueblos de la tierra, para que hicieran con ellos lo que quisieran.
25 तब उन्होंने फ़सीलदार शहरों और ज़रख़ेज़ मुल्क को ले लिया, और वह सब तरह के अच्छे माल से भरे हुए घरों और खोदे हुए कुँवों, और बहुत से अंगूरिस्तानों और ज़ैतून के बाग़ों और फलदार दरख़्तों के मालिक हुए; फिर वह खा कर सेर हुए और मोटे ताज़े हो गए, और तेरे बड़े एहसान से बहुत हज़ उठाया।
Tomaron ciudades fortificadas y una tierra rica, y poseyeron casas llenas de todos los bienes, cisternas excavadas, viñas, olivares y árboles frutales en abundancia. Así comieron, se saciaron, engordaron y se deleitaron en tu gran bondad.
26 तो भी वह ना — फ़रमान होकर तुझ से बाग़ी हुए, और उन्होंने तेरी शरी'अत को पीठ पीछे फेंका, और तेरे नबियों को जो उनके ख़िलाफ़ गवाही देते थे ताकि उनको तेरी तरफ़ फिरा लायें क़त्ल किया और उन्होंने ग़ुस्सा दिलाने के बड़े — बड़े काम किए।
“Sin embargo, fueron desobedientes y se rebelaron contra ti, echaron tu ley a sus espaldas, mataron a tus profetas que testificaban contra ellos para que se volvieran a ti, y cometieron horribles blasfemias.
27 इसलिए तूने उनको उनके दुश्मनों के हाथ में कर दिया, जिन्होंने उनको सताया; और अपने दुख के वक़्त में जब उन्होंने तुझ से फ़रियाद की, तो तूने आसमान पर से सुन लिया और अपनी गूँनागूँ रहमतों के मुताबिक़ उनको छुड़ाने वाले दिए जिन्होंने उनको उनके दुश्मनों के हाथ से छुड़ाया।
Por eso los entregaste en manos de sus adversarios, que los angustiaron. En el tiempo de su angustia, cuando clamaron a ti, tú oíste desde el cielo; y según tus múltiples misericordias les diste salvadores que los salvaron de las manos de sus adversarios.
28 लेकिन जब उनको आराम मिला तो उन्होंने फिर तेरे आगे बदकारी की, इसलिए तूने उनको उनके दुश्मनों के क़ब्ज़े में छोड़ दिया इसलिए वह उन पर मुसल्लत रहे; तो भी जब वह रुजू' लाए और तुझ से फ़रियाद की, तो तूने आसमान पर से सुन लिया और अपनी रहमतों के मुताबिक़ उनको बार — बार छुड़ाया;
Pero después de haber descansado, volvieron a hacer el mal ante ti; por eso los dejaste en manos de sus enemigos, para que se enseñorearan de ellos; sin embargo, cuando volvieron y clamaron a ti, tú oíste desde el cielo; y muchas veces los libraste según tus misericordias,
29 और तूने उनके ख़िलाफ़ गवाही दी, ताकि अपनी शरी'अत की तरफ़ उनको फेर लाए। लेकिन उन्होंने ग़ुरूर किया और तेरे फ़रमान न माने, बल्कि तेरे अहकाम के बरख़िलाफ़ गुनाह किया जिनको अगर कोई माने, तो उनकी वजह से जीता रहेगा, और अपने कन्धे को हटाकर बाग़ी बन गए और न सुना।
y diste testimonio contra ellos, para que volvieran a tu ley. Sin embargo, fueron arrogantes y no escucharon tus mandamientos, sino que pecaron contra tus ordenanzas (que si el hombre hace, vivirá en ellas), volvieron la espalda, endurecieron su cerviz y no quisieron escuchar.
30 तो भी तू बहुत बरसों तक उनकी बर्दाश्त करता रहा, और अपनी रूह से अपने नबियों के ज़रिए' उनके ख़िलाफ़ गवाही देता रहा; तो भी उन्होंने कान न लगाया, इसलिए तूने उनको और मुल्को के लोगों के हाथ में कर दिया।
Sin embargo, durante muchos años los aguantaste y les diste testimonio con tu Espíritu por medio de tus profetas. Sin embargo, no quisieron escuchar. Por eso los entregaste en manos de los pueblos de las tierras.
31 बावजूद इसके तूने अपनी गूँनागूँ रहमतों के ज़रिए' उनको नाबूद न कर दिया और न उनको छोड़ा, क्यूँकि तू रहीम — ओ — करीम ख़ुदा है।
“Sin embargo, en tus múltiples misericordias, no les pusiste fin ni los abandonaste, porque eres un Dios clemente y misericordioso.
32 “इसलिए अब, ऐ हमारे ख़ुदा, बुज़ुर्ग, और क़ादिर — ओ — मुहीब ख़ुदा जो 'अहद — ओ — रहमत को क़ाईम रखता है। वह दुख जो हम पर और हमारे बादशाहों पर, और हमारे सरदारों और हमारे काहिनों पर, और हमारे नबियों और हमारे बाप — दादा पर, और तेरे सब लोगों पर असूर के बादशाहों के ज़माने से आज तक पड़ा है, इसलिए तेरे सामने हल्का न मा'लूम हो;
Ahora, pues, Dios nuestro, el grande, el poderoso y el imponente, que guarda el pacto y la bondad amorosa, no dejes que te parezcan pequeños todos los trabajos que nos han sobrevenido, a nuestros reyes, a nuestros príncipes, a nuestros sacerdotes, a nuestros profetas, a nuestros padres y a todo tu pueblo, desde el tiempo de los reyes de Asiria hasta hoy.
33 तो भी जो कुछ हम पर आया है उस सब में तू 'आदिल है क्यूँकि तू सच्चाई से पेश आया, लेकिन हम ने शरारत की।
Sin embargo, tú eres justo en todo lo que ha recaído sobre nosotros; porque tú has actuado con verdad, pero nosotros hemos hecho maldad.
34 और हमारे बादशाहों और सरदारों और हमारे काहिनों और बाप — दादा ने न तो तेरी शरी'अत पर 'अमल किया और न तेरे अहकाम और शहादतों को माना, जिनसे तू उनके ख़िलाफ़ गवाही देता रहा।
También nuestros reyes, nuestros príncipes, nuestros sacerdotes y nuestros padres no han guardado tu ley, ni han escuchado tus mandamientos y tus testimonios con los que testificaste contra ellos.
35 क्यूँकि उन्होंने अपनी ममलुकत में, और तेरे बड़े एहसान के वक़्त जो तूने उन पर किया, और इस वसी' और ज़रख़ेज़ मुल्क में जो तूने उनके हवाले कर दिया, तेरी इबादत न की और न वह अपनी बदकारियों से बाज़ आए।
Porque no te han servido en su reino y en tu gran bondad que les diste, y en la tierra grande y rica que les diste. No se convirtieron de sus obras malvadas.
36 देख, आज हम ग़ुलाम हैं, बल्कि उसी मुल्क में जो तूने हमारे बाप — दादा को दिया कि उसका फल और पैदावार खाएँ; इसलिए देख, हम उसी में ग़ुलाम हैं।
“He aquí que hoy somos siervos, y en cuanto a la tierra que diste a nuestros padres para comer su fruto y su bien, he aquí que somos siervos en ella.
37 वह अपनी कसीर पैदावार उन बादशाहों को देता है, जिनको तूने हमारे गुनाहों की वजह से हम पर मुसल्लत किया है; वह हमारे जिस्मों और हमारी मवाशी पर भी जैसा चाहते हैं इख़्तियार रखते हैं, और हम सख़्त मुसीबत में हैं।”
La tierra da muchos frutos a los reyes que has puesto sobre nosotros a causa de nuestros pecados. También tienen poder sobre nuestros cuerpos y sobre nuestro ganado, a su antojo, y estamos en gran aflicción.
38 “इन सब बातों की वजह से हम सच्चा 'अहद करते और लिख भी देते हैं, और हमारे हाकिम, और हमारे लावी, और हमारे काहिन उसपर मुहर करते हैं।”
Sin embargo, por todo esto, hacemos un pacto seguro y lo escribimos; y nuestros príncipes, nuestros levitas y nuestros sacerdotes lo sellan.”