< मरकुस 14 >
1 दो दिन के बाद फ़सह और 'ईद — ए — फ़ितर होने वाली थी और सरदार काहिन और फ़क़ीह मौक़ा ढूँड रहे थे कि उसे क्यूँकर धोखे से पकड़ कर क़त्ल करें।
tadA nistArOtsavakiNvahInapUpOtsavayOrArambhasya dinadvayE 'vaziSTE pradhAnayAjakA adhyApakAzca kEnApi chalEna yIzuM dharttAM hantunjca mRgayAnjcakrirE;
2 क्यूँकि कहते थे ई'द में नहीं “ऐसा न हो कि लोगों में बलवा हो जाए”
kintu lOkAnAM kalahabhayAdUcirE, nacOtsavakAla ucitamEtaditi|
3 जब वो बैत अन्नियाह में शमौन जो पहले कौढ़ी था उसके घर में खाना खाने बैठा तो एक औरत जटामासी का बेशक़ीमती इत्र संगे मरमर के इत्र दान में लाई और इत्र दान तोड़ कर इत्र को उसके सिर पर डाला।
anantaraM baithaniyApurE zimOnakuSThinO gRhE yOzau bhOtkumupaviSTE sati kAcid yOSit pANParapASANasya sampuTakEna mahArghyOttamatailam AnIya sampuTakaM bhaMktvA tasyOttamAggE tailadhArAM pAtayAnjcakrE|
4 मगर कुछ अपने दिल में ख़फ़ा हो कर कहने लगे “ये इत्र किस लिए ज़ाया किया गया।
tasmAt kEcit svAntE kupyantaH kathitavaMntaH kutOyaM tailApavyayaH?
5 क्यूँकि ये इत्र तक़रीबन तीन सौ दिन की मज़दूरी से ज़्यादा की क़ीमत में बिक कर ग़रीबों को दिया जा सकता था” और वो उसे मलामत करने लगे।
yadyEtat taila vyakrESyata tarhi mudrApAdazatatrayAdapyadhikaM tasya prAptamUlyaM daridralOkEbhyO dAtumazakSyata, kathAmEtAM kathayitvA tayA yOSitA sAkaM vAcAyuhyan|
6 ईसा ने कहा “उसे छोड़ दो उसे क्यूँ दिक़ करते हो उसने मेरे साथ भलाई की है।
kintu yIzuruvAca, kuta Etasyai kRcchraM dadAsi? mahyamiyaM karmmOttamaM kRtavatI|
7 क्यूँकि ग़रीब और ग़ुरबा तो हमेशा तुम्हारे पास हैं जब चाहो उनके साथ नेकी कर सकते हो; लेकिन मैं तुम्हारे पास हमेशा न रहूँगा।
daridrAH sarvvadA yuSmAbhiH saha tiSThanti, tasmAd yUyaM yadEcchatha tadaiva tAnupakarttAM zaknutha, kintvahaM yubhAbhiH saha nirantaraM na tiSThAmi|
8 जो कुछ वो कर सकी उसने किया उसने दफ़्न के लिए मेरे बदन पर पहले ही से इत्र मला।
asyA yathAsAdhyaM tathaivAkarOdiyaM, zmazAnayApanAt pUrvvaM samEtya madvapuSi tailam amarddayat|
9 मैं तुम से सच कहता हूँ कि, तमाम दुनिया में जहाँ कहीं इन्जील की मनादी की जाएगी, ये भी जो इस ने किया उस की यादगारी में बयान किया जाएगा।”
ahaM yuSmabhyaM yathArthaM kathayAmi, jagatAM madhyE yatra yatra susaMvAdOyaM pracArayiSyatE tatra tatra yOSita EtasyAH smaraNArthaM tatkRtakarmmaitat pracArayiSyatE|
10 फिर यहूदाह इस्करियोती जो उन बारह में से था, सरदार काहिन के पास चला गया ताकि उसे उनके हवाले कर दे।
tataH paraM dvAdazAnAM ziSyANAmEka ISkariyOtIyayihUdAkhyO yIzuM parakarESu samarpayituM pradhAnayAjakAnAM samIpamiyAya|
11 वो ये सुन कर ख़ुश हुए और उसको रुपऐ देने का इक़रार किया और वो मौक़ा ढूँडने लगा कि किस तरह क़ाबू पाकर उसे पकड़वा दे।
tE tasya vAkyaM samAkarNya santuSTAH santastasmai mudrA dAtuM pratyajAnata; tasmAt sa taM tESAM karESu samarpaNAyOpAyaM mRgayAmAsa|
12 ई'द 'ए फ़ितर के पहले दिन या'नी जिस रोज़ फ़सह को ज़बह किया करते थे “उसके शागिर्दों ने उससे कहा? तू कहाँ चाहता है कि हम जाकर तेरे लिए फ़सह खाने की तैयारी करें।”
anantaraM kiNvazUnyapUpOtsavasya prathamE'hani nistArOtmavArthaM mESamAraNAsamayE ziSyAstaM papracchaH kutra gatvA vayaM nistArOtsavasya bhOjyamAsAdayiSyAmaH? kimicchati bhavAn?
13 उसने अपने शागिर्दो में से दो को भेजा और उनसे कहा “शहर में जाओ एक शख़्स पानी का घड़ा लिए हुए तुम्हें मिलेगा, उसके पीछे हो लेना।
tadAnIM sa tESAM dvayaM prErayan babhASE yuvayOH puramadhyaM gatayOH satO ryO janaH sajalakumbhaM vahan yuvAM sAkSAt kariSyati tasyaiva pazcAd yAtaM;
14 और जहाँ वो दाख़िल हो उस घर के मालिक से कहना ‘उस्ताद कहता है? मेरा मेहमानख़ाना जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह खाउँ कहाँ है।’
sa yat sadanaM pravEkSyati tadbhavanapatiM vadataM, gururAha yatra saziSyOhaM nistArOtsavIyaM bhOjanaM kariSyAmi, sA bhOjanazAlA kutrAsti?
15 वो आप तुम को एक बड़ा मेहमानख़ाना आरास्ता और तैयार दिखाएगा वहीं हमारे लिए तैयारी करना।”
tataH sa pariSkRtAM susajjitAM bRhatIcanjca yAM zAlAM darzayiSyati tasyAmasmadarthaM bhOjyadravyANyAsAdayataM|
16 पस शागिर्द चले गए और शहर में आकर जैसा ईसा ने उन से कहा था वैसा ही पाया और फ़सह को तैयार किया।
tataH ziSyau prasthAya puraM pravizya sa yathOktavAn tathaiva prApya nistArOtsavasya bhOjyadravyANi samAsAdayEtAm|
17 जब शाम हुई तो वो उन बारह के साथ आया।
anantaraM yIzuH sAyaMkAlE dvAdazabhiH ziSyaiH sArddhaM jagAma;
18 और जब वो बैठे खा रहे थे तो ईसा ने कहा “मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम में से एक जो मेरे साथ खाता है मुझे पकड़वाएगा।”
sarvvESu bhOjanAya prOpaviSTESu sa tAnuditavAn yuSmAnahaM yathArthaM vyAharAmi, atra yuSmAkamEkO janO yO mayA saha bhuMktE mAM parakErESu samarpayiSyatE|
19 वो दुखी होकर और एक एक करके उससे कहने लगे, “क्या मैं हूँ?”
tadAnIM tE duHkhitAH santa EkaikazastaM praSTumArabdhavantaH sa kimahaM? pazcAd anya EkObhidadhE sa kimahaM?
20 उसने उनसे कहा, “वो बारह में से एक है जो मेरे साथ थाल में हाथ डालता है।
tataH sa pratyavadad EtESAM dvAdazAnAM yO janO mayA samaM bhOjanApAtrE pANiM majjayiSyati sa Eva|
21 क्यूँकि इब्न — ए आदम तो जैसा उसके हक़ में लिखा है जाता ही है लेकिन उस आदमी पर अफ़सोस जिसके वसीले से इब्न — ए आदम पकड़वाया जाता है, अगर वो आदमी पैदा ही न होता तो उसके लिए अच्छा था।”
manujatanayamadhi yAdRzaM likhitamAstE tadanurUpA gatistasya bhaviSyati, kintu yO janO mAnavasutaM samarpayiSyatE hanta tasya janmAbhAvE sati bhadramabhaviSyat|
22 और वो खा ही रहे थे कि उसने रोटी ली और बर्क़त देकर तोड़ी और उनको दी और कहा “लो ये मेरा बदन है।”
aparanjca tESAM bhOjanasamayE yIzuH pUpaM gRhItvEzvaraguNAn anukIrtya bhagktvA tEbhyO dattvA babhASE, Etad gRhItvA bhunjjIdhvam Etanmama vigraharUpaM|
23 फिर उसने प्याला लेकर शुक्र किया और उनको दिया और उन सभों ने उस में से पिया।
anantaraM sa kaMsaM gRhItvEzvarasya guNAn kIrttayitvA tEbhyO dadau, tatastE sarvvE papuH|
24 उसने उनसे कहा “ये मेरा वो अहद का ख़ून है जो बहुतेरों के लिए बहाया जाता है।
aparaM sa tAnavAdId bahUnAM nimittaM pAtitaM mama navInaniyamarUpaM zONitamEtat|
25 मैं तुम से सच कहता हूँ कि अंगूर का शीरा फिर कभी न पिऊँगा; उस दिन तक कि ख़ुदा की बादशाही में नया न पिऊँ।”
yuSmAnahaM yathArthaM vadAmi, Izvarasya rAjyE yAvat sadyOjAtaM drAkSArasaM na pAsyAmi, tAvadahaM drAkSAphalarasaM puna rna pAsyAmi|
26 फिर हम्द गा कर बाहर ज़ैतून के पहाड़ पर गए।
tadanantaraM tE gItamEkaM saMgIya bahi rjaitunaM zikhariNaM yayuH
27 और ईसा ने उनसे कहा “तुम सब ठोकर खाओगे क्यूँकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा और भेड़ें इधर उधर हो जाएँगी।’
atha yIzustAnuvAca nizAyAmasyAM mayi yuSmAkaM sarvvESAM pratyUhO bhaviSyati yatO likhitamAstE yathA, mESANAM rakSakanjcAhaM prahariSyAmi vai tataH| mESANAM nivahO nUnaM pravikIrNO bhaviSyati|
28 मगर मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।”
kantu madutthAnE jAtE yuSmAkamagrE'haM gAlIlaM vrajiSyAmi|
29 पतरस ने उससे कहा, “चाहे सब ठोकर खाएँ लेकिन मैं न खाउँगा।”
tadA pitaraH pratibabhASE, yadyapi sarvvESAM pratyUhO bhavati tathApi mama naiva bhaviSyati|
30 ईसा ने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ। कि तू आज इसी रात मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले तीन बार मेरा इन्कार करेगा।”
tatO yIzuruktAvAn ahaM tubhyaM tathyaM kathayAmi, kSaNAdAyAmadya kukkuTasya dvitIyavAraravaNAt pUrvvaM tvaM vAratrayaM mAmapahnOSyasE|
31 लेकिन उसने बहुत ज़ोर देकर कहा, “अगर तेरे साथ मुझे मरना भी पड़े तोभी तेरा इन्कार हरगिज़ न करूँगा।” इसी तरह और सब ने भी कहा।
kintu sa gAPhaM vyAharad yadyapi tvayA sArddhaM mama prANO yAti tathApi kathamapi tvAM nApahnOSyE; sarvvE'pItarE tathaiva babhASirE|
32 फिर वो एक जगह आए जिसका नाम गतसिमनी था और उसने अपने शागिर्दों से कहा, “यहाँ बैठे रहो जब तक मैं दुआ करूँ।”
aparanjca tESu gEtzimAnInAmakaM sthAna gatESu sa ziSyAn jagAda, yAvadahaM prArthayE tAvadatra sthAnE yUyaM samupavizata|
33 और पतरस और या'क़ूब और यूहन्ना को अपने साथ लेकर निहायत हैरान और बेक़रार होने लगा।
atha sa pitaraM yAkUbaM yOhananjca gRhItvA vavrAja; atyantaM trAsitO vyAkulitazca tEbhyaH kathayAmAsa,
34 और उसने कहा “मेरी जान निहायत ग़मगीन है यहाँ तक कि मरने की नौबत पहुँच गई है तुम यहाँ ठहरो और जागते रहो।”
nidhanakAlavat prANO mE'tIva daHkhamEti, yUyaM jAgratOtra sthAnE tiSThata|
35 और वो थोड़ा आगे बढ़ा और ज़मीन पर गिर कर दुआ करने लगा, कि अगर हो सके तो ये वक़्त मुझ पर से टल जाए।
tataH sa kinjciddUraM gatvA bhUmAvadhOmukhaH patitvA prArthitavAnEtat, yadi bhavituM zakyaM tarhi duHkhasamayOyaM mattO dUrIbhavatu|
36 और कहा “ऐ अब्बा ऐ बाप तुझ से सब कुछ हो सकता है इस प्याले को मेरे पास से हटा ले तोभी जो मैं चाहता हूँ वो नहीं बल्कि जो तू चाहता है वही हो।”
aparamuditavAn hE pita rhE pitaH sarvvEM tvayA sAdhyaM, tatO hEtOrimaM kaMsaM mattO dUrIkuru, kintu tan mamEcchAtO na tavEcchAtO bhavatu|
37 फिर वो आया और उन्हें सोते पाकर पतरस से कहा “ऐ शमौन तू सोता है? क्या तू एक घड़ी भी न जाग सका।
tataH paraM sa Etya tAn nidritAn nirIkSya pitaraM prOvAca, zimOn tvaM kiM nidrAsi? ghaTikAmEkAm api jAgarituM na zaknOSi?
38 जागो और दुआ करो, ताकि आज़माइश में न पड़ो रूह तो मुसतैद है मगर जिस्म कमज़ोर है।”
parIkSAyAM yathA na patatha tadarthaM sacEtanAH santaH prArthayadhvaM; mana udyuktamiti satyaM kintu vapurazaktikaM|
39 वो फिर चला गया और वही बात कह कर दुआ की।
atha sa punarvrajitvA pUrvvavat prArthayAnjcakrE|
40 और फिर आकर उन्हें सोते पाया क्यूँकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं और वो न जानते थे कि उसे क्या जवाब दें।
parAvRtyAgatya punarapi tAn nidritAn dadarza tadA tESAM lOcanAni nidrayA pUrNAni, tasmAttasmai kA kathA kathayitavyA ta Etad bOddhuM na zEkuH|
41 फिर तीसरी बार आकर उनसे कहा “अब सोते रहो और आराम करो बस वक़्त आ पहुँचा है देखो; इब्न — ए आदम गुनाहगारों के हाथ में हवाले किया जाता है।
tataHparaM tRtIyavAraM Agatya tEbhyO 'kathayad idAnImapi zayitvA vizrAmyatha? yathESTaM jAtaM, samayazcOpasthitaH pazyata mAnavatanayaH pApilOkAnAM pANiSu samarpyatE|
42 उठो चलो देखो मेरा पकड़वाने वाला नज़दीक आ पहुँचा है।”
uttiSThata, vayaM vrajAmO yO janO mAM parapANiSu samarpayiSyatE pazyata sa samIpamAyAtaH|
43 वो ये कह ही रहा था कि फ़ौरन यहूदाह जो उन बारह में से था और उसके साथ एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए सरदार काहिनों और फ़क़ीहों की तरफ़ से आ पहुँची।
imAM kathAM kathayati sa, EtarhidvAdazAnAmEkO yihUdA nAmA ziSyaH pradhAnayAjakAnAm upAdhyAyAnAM prAcInalOkAnAnjca sannidhEH khaggalaguPadhAriNO bahulOkAn gRhItvA tasya samIpa upasthitavAn|
44 और उसके पकड़वाने वाले ने उन्हें ये निशान दिया था जिसका मैं बोसा लूँ वही है उसे पकड़ कर हिफ़ाज़त से ले जाना।
aparanjcAsau parapANiSu samarpayitA pUrvvamiti sagkEtaM kRtavAn yamahaM cumbiSyAmi sa EvAsau tamEva dhRtvA sAvadhAnaM nayata|
45 वो आकर फ़ौरन उसके पास गया और कहा, “ऐ रब्बी!” और उसके बोसे लिए।
atO hEtOH sa Agatyaiva yOzOH savidhaM gatvA hE gurO hE gurO, ityuktvA taM cucumba|
46 उन्होंने उस पर हाथ डाल कर उसे पकड़ लिया।
tadA tE tadupari pANInarpayitvA taM dadhnuH|
47 उन में से जो पास खड़े थे एक ने तलवार खींचकर सरदार काहिन के नौकर पर चलाई और उसका कान उड़ा दिया।
tatastasya pArzvasthAnAM lOkAnAmEkaH khaggaM niSkOSayan mahAyAjakasya dAsamEkaM prahRtya tasya karNaM cicchEda|
48 ईसा ने उनसे कहा “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू की तरह पकड़ने निकले हो?
pazcAd yIzustAn vyAjahAra khaggAn laguPAMzca gRhItvA mAM kiM cauraM dharttAM samAyAtAH?
49 मैं हर रोज़ तुम्हारे पास हैकल में ता'लीम देता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा लेकिन ये इसलिए हुआ कि लिखा हुआ पूरा हों।”
madhyEmandiraM samupadizan pratyahaM yuSmAbhiH saha sthitavAnatahaM, tasmin kAlE yUyaM mAM nAdIdharata, kintvanEna zAstrIyaM vacanaM sEdhanIyaM|
50 इस पर सब शगिर्द उसे छोड़कर भाग गए।
tadA sarvvE ziSyAstaM parityajya palAyAnjcakrirE|
51 मगर एक जवान अपने नंगे बदन पर महीन चादर ओढ़े हुए उसके पीछे हो लिया, उसे लोगों ने पकड़ा।
athaikO yuvA mAnavO nagnakAyE vastramEkaM nidhAya tasya pazcAd vrajan yuvalOkai rdhRtO
52 मगर वो चादर छोड़ कर नंगा भाग गया।
vastraM vihAya nagnaH palAyAnjcakrE|
53 फिर वो ईसा को सरदार काहिन के पास ले गए; और अब सरदार काहिन और बुज़ुर्ग और फ़क़ीह उसके यहाँ जमा हुए।
aparanjca yasmin sthAnE pradhAnayAjakA upAdhyAyAH prAcInalOkAzca mahAyAjakEna saha sadasi sthitAstasmin sthAnE mahAyAjakasya samIpaM yIzuM ninyuH|
54 पतरस फ़ासले पर उसके पीछे पीछे सरदार काहिन के दिवानख़ाने के अन्दर तक गया और सिपाहियों के साथ बैठ कर आग तापने लगा।
pitarO dUrE tatpazcAd itvA mahAyAjakasyATTAlikAM pravizya kigkaraiH sahOpavizya vahnitApaM jagrAha|
55 और सरदार काहिन सब सद्रे — अदालत वाले ईसा को मार डालने के लिए उसके ख़िलाफ़ गवाही ढूँडने लगे मगर न पाई।
tadAnIM pradhAnayAjakA mantriNazca yIzuM ghAtayituM tatprAtikUlyEna sAkSiNO mRgayAnjcakrirE, kintu na prAptAH|
56 क्यूँकि बहुतेरों ने उस पर झूठी गवाहियाँ तो दीं लेकिन उनकी गवाहियाँ सहीह न थीं।
anEkaistadviruddhaM mRSAsAkSyE dattEpi tESAM vAkyAni na samagacchanta|
57 फिर कुछ ने उठकर उस पर ये झूठी गवाही दी।
sarvvazESE kiyanta utthAya tasya prAtikUlyEna mRSAsAkSyaM dattvA kathayAmAsuH,
58 “हम ने उसे ये कहते सुना है मैं इस मक़दिस को जो हाथ से बना है ढाऊँगा और तीन दिन में दूसरा बनाऊँगा जो हाथ से न बना हो।”
idaM karakRtamandiraM vinAzya dinatrayamadhyE punaraparam akarakRtaM mandiraM nirmmAsyAmi, iti vAkyam asya mukhAt zrutamasmAbhiriti|
59 लेकिन इस पर भी उसकी गवाही सही न निकली।
kintu tatrApi tESAM sAkSyakathA na saggAtAH|
60 “फिर सरदार काहिन ने बीच में खड़े हो कर ईसा से पूछा तू कुछ जवाब नहीं देता? ये तेरे ख़िलाफ़ क्या गवाही देते हैं।”
atha mahAyAjakO madhyEsabham utthAya yIzuM vyAjahAra, EtE janAstvayi yat sAkSyamaduH tvamEtasya kimapyuttaraM kiM na dAsyasi?
61 “मगर वो ख़ामोश ही रहा और कुछ जवाब न दिया? सरदार काहिन ने उससे फिर सवाल किया और कहा क्या तू उस यूसुफ़ का बेटा मसीह है।”
kintu sa kimapyuttaraM na datvA maunIbhUya tasyau; tatO mahAyAjakaH punarapi taM pRSTAvAn tvaM saccidAnandasya tanayO 'bhiSiktastratA?
62 ईसा ने कहा, “हाँ मैं हूँ। और तुम इब्न — ए आदम को क़ादिर ए मुतल्लिक़ की दहनी तरफ़ बैठे और आसमान के बादलों के साथ आते देखोगे।”
tadA yIzustaM prOvAca bhavAmyaham yUyanjca sarvvazaktimatO dakSINapArzvE samupavizantaM mEgha mAruhya samAyAntanjca manuSyaputraM sandrakSyatha|
63 सरदार काहिन ने अपने कपड़े फाड़ कर कहा “अब हमें गवाहों की क्या ज़रूरत रही।
tadA mahAyAjakaH svaM vamanaM chitvA vyAvaharat
64 तुम ने ये कुफ़्र सुना तुम्हारी क्या राय है? उन सब ने फ़तवा दिया कि वो क़त्ल के लायक़ है।”
kimasmAkaM sAkSibhiH prayOjanam? IzvaranindAvAkyaM yuSmAbhirazrAvi kiM vicArayatha? tadAnIM sarvvE jagadurayaM nidhanadaNPamarhati|
65 तब कुछ उस पर थूकने और उसका मुँह ढाँपने और उसके मुक्के मारने और उससे कहने लगे “नबुव्वत की बातें सुना! और सिपाहियों ने उसे तमाचे मार मार कर अपने क़ब्ज़े में लिया।”
tataH kazcit kazcit tadvapuSi niSThIvaM nicikSEpa tathA tanmukhamAcchAdya capETEna hatvA gaditavAn gaNayitvA vada, anucarAzca capETaistamAjaghnuH
66 जब पतरस नीचे सहन में था तो सरदार काहिन की लौंडियों में से एक वहाँ आई।
tataH paraM pitarE'TTAlikAdhaHkOSThE tiSThati mahAyAjakasyaikA dAsI samEtya
67 और पतरस को आग तापते देख कर उस पर नज़र की और कहने लगी “तू भी उस नासरी ईसा के साथ था।”
taM vihnitApaM gRhlantaM vilOkya taM sunirIkSya babhASE tvamapi nAsaratIyayIzOH sagginAm EkO jana AsIH|
68 उसने इन्कार किया और कहा “मैं तो न जानता और न समझता हूँ।” कि तू क्या कहती है फिर वो बाहर सहन में गया [और मुर्ग़ ने बाँग दी]।
kintu sOpahnutya jagAda tamahaM na vadmi tvaM yat kathayami tadapyahaM na buddhyE| tadAnIM pitarE catvaraM gatavati kukkuTO rurAva|
69 वो लौंडी उसे देख कर उन से जो पास खड़े थे, फिर कहने लगी “ये उन में से है।”
athAnyA dAsI pitaraM dRSTvA samIpasthAn janAn jagAda ayaM tESAmEkO janaH|
70 “मगर उसने फिर इन्कार किया और थोड़ी देर बाद उन्होंने जो पास खड़े थे पतरस से फिर कहा बेशक तू उन में से है क्यूँकि तू गलीली भी है।”
tataH sa dvitIyavAram apahnutavAn pazcAt tatrasthA lOkAH pitaraM prOcustvamavazyaM tESAmEkO janaH yatastvaM gAlIlIyO nara iti tavOccAraNaM prakAzayati|
71 “मगर वो ला'नत करने और क़सम खाने लगा में इस आदमी को जिसका तुम ज़िक्र करते हो नहीं जानता।”
tadA sa zapathAbhizApau kRtvA prOvAca yUyaM kathAM kathayatha taM naraM na jAnE'haM|
72 और फ़ौरन मुर्ग़ ने दूसरी बार बाँग दी पतरस को वो बात जो ईसा ने उससे कही थी याद आई “मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले तू तीन बार इन्कार करेगा” और उस पर ग़ौर करके रो पड़ा।
tadAnIM dvitIyavAraM kukkuTO 'rAvIt| kukkuTasya dvitIyaravAt pUrvvaM tvaM mAM vAratrayam apahnOSyasi, iti yadvAkyaM yIzunA samuditaM tat tadA saMsmRtya pitarO rOditum Arabhata|