< लूका 11 >

1 फिर ऐसा हुआ कि वो किसी जगह दुआ कर रहा था; जब कर चुका तो उसके शागिर्दों में से एक ने उससे कहा, “ऐ ख़ुदावन्द! जैसा युहन्ना ने अपने शागिर्दों को दुआ करना सिखाया, तू भी हमें सिखा।”
Καὶ ἐγένετο ἐν τῷ εἶναι αὐτὸν ἐν τόπῳ τινὶ προσευχόμενον, ὡς ἐπαύσατο, εἶπέν τις τῶν μαθητῶν αὐτοῦ πρὸς αὐτόν· κύριε, δίδαξον ἡμᾶς προσεύχεσθαι καθὼς καὶ Ἰωάννης ἐδίδαξεν τοὺς μαθητὰς αὐτοῦ.
2 उसने उनसे कहा, “जब तुम दुआ करो तो कहो, ऐ बाप! तेरा नाम पाक माना जाए, तेरी बादशाही आए।
εἶπεν δὲ αὐτοῖς· ὅταν προσεύχησθε, λέγετε· πάτερ (ἡμῶν ὁ ἐν τοῖς οὐρανοις, *K*) ἁγιασθήτω τὸ ὄνομά σου· ἐλθέτω ἡ βασιλεία σου (γενηθήτω *KO*) (τὸ θέλημά σου ὡς ἐν οὐρανῳ καὶ ἐπὶ τῆς γῆς· *K*)
3 'हमारी रोज़ की रोटी हर रोज़ हमें दिया कर।
τὸν ἄρτον ἡμῶν τὸν ἐπιούσιον δίδου ἡμῖν τὸ καθ᾽ ἡμέραν·
4 और हमारे गुनाह मु'आफ़ कर, क्यूँकि हम भी अपने हर क़र्ज़दार को मु'आफ़ करते हैं, और हमें आज़माइश में न ला'।”
καὶ ἄφες ἡμῖν τὰς ἁμαρτίας ἡμῶν· καὶ γὰρ αὐτοὶ ἀφίομεν παντὶ ὀφείλοντι ἡμῖν· καὶ μὴ εἰσενέγκῃς ἡμᾶς εἰς πειρασμόν (ἀλλὰ ῥῦσαι ἡμᾶς ἀπὸ τοῦ πονηροῦ. *K*)
5 फिर उसने उनसे कहा, “तुम में से कौन है जिसका एक दोस्त हो, और वो आधी रात को उसके पास जाकर उससे कहे, 'ऐ दोस्त, मुझे तीन रोटियाँ दे।
Καὶ εἶπεν πρὸς αὐτούς· τίς ἐξ ὑμῶν ἕξει φίλον, καὶ πορεύσεται πρὸς αὐτὸν μεσονυκτίου καὶ εἴπῃ αὐτῷ· φίλε, χρῆσόν μοι τρεῖς ἄρτους,
6 क्यूँकि मेरा एक दोस्त सफ़र करके मेरे पास आया है, और मेरे पास कुछ नहीं कि उसके आगे रख्खूँ।
ἐπειδὴ φίλος μου παρεγένετο ἐξ ὁδοῦ πρός με, καὶ οὐκ ἔχω ὃ παραθήσω αὐτῷ·
7 और वो अन्दर से जवाब में कहे, 'मुझे तकलीफ़ न दे, अब दरवाज़ा बंद है और मेरे लड़के मेरे पास बिछोने पर हैं, मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता।
κἀκεῖνος κἀκεῖνος ἔσωθεν ἀποκριθεὶς εἴπῃ· μή μοι κόπους πάρεχε. ἤδη ἡ θύρα κέκλεισται, καὶ τὰ παιδία μου μετ᾽ ἐμοῦ εἰς τὴν κοίτην εἰσίν· οὐ δύναμαι ἀναστὰς δοῦναί σοι.
8 मैं तुम से कहता हूँ, कि अगरचे वो इस वजह से कि उसका दोस्त है उठकर उसे न दे, तोभी उसकी बेशर्मी की वजह से उठकर जितनी दरकार है उसे देगा।
λέγω ὑμῖν· εἰ καὶ οὐ δώσει αὐτῷ ἀναστὰς διὰ τὸ εἶναι φίλον αὐτοῦ, διά γε τὴν ἀναίδειαν αὐτοῦ ἐγερθεὶς δώσει αὐτῷ (ὅσων *NK(o)*) χρῄζει.
9 पस मैं तुम से कहता हूँ, माँगो तो तुम्हें दिया जाएगा, ढूँडो तो पाओगे, दरवाज़ा खटखटाओ तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा।
κἀγὼ κἀγὼ ὑμῖν λέγω· αἰτεῖτε, καὶ δοθήσεται ὑμῖν· ζητεῖτε, καὶ εὑρήσετε· κρούετε, καὶ ἀνοιγήσεται ὑμῖν.
10 क्यूँकि जो कोई माँगता है उसे मिलता है, और जो ढूँडता है वो पाता है, और जो खटखटाता है उसके लिए खोला जाएगा।
πᾶς γὰρ ὁ αἰτῶν λαμβάνει, καὶ ὁ ζητῶν εὑρίσκει, καὶ τῷ κρούοντι ἀνοιγήσεται.
11 तुम में से ऐसा कौन सा बाप है, कि जब उसका बेटा रोटी माँगे तो उसे पत्थर दे; या मछली माँगे तो मछली के बदले उसे साँप दे?
Τίνα δὲ (ἐξ *no*) ὑμῶν τὸν πατέρα αἰτήσει ὁ υἱὸς (ἄρτον μὴ λίθον ἐπιδώσει αὐτῷ *KO*) (εἰ *K(o)*) ἰχθύν, καὶ (μὴ *ko*) ἀντὶ ἰχθύος ὄφιν αὐτῷ ἐπιδώσει;
12 या अंडा माँगे तो उसे बिच्छू दे?
ἢ καὶ (ἐὰν *K*) (αἰτήσει *NK(O)*) ᾠόν, (μὴ *ko*) ἐπιδώσει αὐτῷ σκορπίον;
13 पस जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें देना जानते हो, तो आसमानी बाप अपने माँगने वालों को रूह — उल — क़ुद्दूस क्यूँ न देगा।”
εἰ οὖν ὑμεῖς πονηροὶ ὑπάρχοντες οἴδατε δόματα ἀγαθὰ διδόναι τοῖς τέκνοις ὑμῶν, πόσῳ μᾶλλον ὁ πατὴρ ὁ ἐξ οὐρανοῦ δώσει πνεῦμα ἅγιον τοῖς αἰτοῦσιν αὐτόν.
14 फिर वो एक गूँगी बदरूह को निकाल रहा था, और जब वो बदरूह निकल गई तो ऐसा हुआ कि गूँगा बोला और लोगों ने ता'ज्जुब किया।
Καὶ ἦν ἐκβάλλων δαιμόνιον καὶ αὐτὸ ἦν κωφόν. ἐγένετο δὲ τοῦ δαιμονίου ἐξελθόντος ἐλάλησεν ὁ κωφός, καὶ ἐθαύμασαν οἱ ὄχλοι.
15 लेकिन उनमें से कुछ ने कहा, “ये तो बदरूहों के सरदार बा'लज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता है।”
Τινὲς δὲ ἐξ αὐτῶν εἶπον· ἐν Βεελζεβοὺλ (τῷ *no*) ἄρχοντι τῶν δαιμονίων ἐκβάλλει τὰ δαιμόνια.
16 कुछ और लोग आज़माइश के लिए उससे एक आसमानी निशान तलब करने लगे।
Ἕτεροι δὲ πειράζοντες σημεῖον ἐξ οὐρανοῦ ἐζήτουν παρ᾽ αὐτοῦ.
17 मगर उसने उनके ख़यालात को जानकर उनसे कहा, “जिस सल्तनत में फ़ूट पड़े, वो वीरान हो जाती है; और जिस घर में फ़ूट पड़े, वो बरबाद हो जाता है।
αὐτὸς δὲ εἰδὼς αὐτῶν τὰ διανοήματα εἶπεν αὐτοῖς· πᾶσα βασιλεία ἐφ᾽ ἑαυτὴν διαμερισθεῖσα ἐρημοῦται, καὶ οἶκος ἐπὶ οἶκον πίπτει.
18 और अगर शैतान भी अपना मुख़ालिफ़ हो जाए, तो उसकी सल्तनत किस तरह क़ाईम रहेगी? क्यूँकि तुम मेरे बारे में कहते हो, कि ये बदरूहों को बा'लज़बूल की मदद से निकालता है।
εἰ δὲ καὶ ὁ σατανᾶς ἐφ᾽ ἑαυτὸν διεμερίσθη, πῶς σταθήσεται ἡ βασιλεία αὐτοῦ; ὅτι λέγετε ἐν Βεελζεβοὺλ ἐκβάλλειν με τὰ δαιμόνια.
19 और अगर में बदरूहों को बा'लज़बूल की मदद से निकलता हूँ, तो तुम्हारे बेटे किसकी मदद से निकालते हैं? पस वही तुम्हारा फ़ैसला करेंगे।
εἰ δὲ ἐγὼ ἐν Βεελζεβοὺλ ἐκβάλλω τὰ δαιμόνια, οἱ υἱοὶ ὑμῶν ἐν τίνι ἐκβάλλουσιν; διὰ τοῦτο αὐτοὶ ὑμῶν κριταὶ ἔσονται.
20 लेकिन अगर मैं बदरूहों को ख़ुदा की क़ुदरत से निकालता हूँ, तो ख़ुदा की बादशाही तुम्हारे पास आ पहुँची।
εἰ δὲ ἐν δακτύλῳ θεοῦ (ἐγὼ *no*) ἐκβάλλω τὰ δαιμόνια, ἄρα ἔφθασεν ἐφ᾽ ὑμᾶς ἡ βασιλεία τοῦ θεοῦ.
21 जब ताक़तवर आदमी हथियार बाँधे हुए अपनी हवेली की रखवाली करता है, तो उसका माल महफ़ूज़ रहता है।
ὅταν ὁ ἰσχυρὸς καθωπλισμένος φυλάσσῃ τὴν ἑαυτοῦ αὐλήν, ἐν εἰρήνῃ ἐστὶν τὰ ὑπάρχοντα αὐτοῦ·
22 लेकिन जब उससे कोई ताक़तवर हमला करके उस पर ग़ालिब आता है, तो उसके सब हथियार जिन पर उसका भरोसा था छीन लेता और उसका माल लूट कर बाँट देता है।
ἐπὰν δὲ (ὁ *k*) ἰσχυρότερος αὐτοῦ ἐπελθὼν νικήσῃ αὐτόν, τὴν πανοπλίαν αὐτοῦ αἴρει ἐφ᾽ ᾗ ἐπεποίθει, καὶ τὰ σκῦλα αὐτοῦ διαδίδωσιν.
23 जो मेरी तरफ़ नहीं वो मेरे ख़िलाफ़ है, और जो मेरे साथ जमा नहीं करता वो बिखेरता है।”
ὁ μὴ ὢν μετ᾽ ἐμοῦ κατ᾽ ἐμοῦ ἐστιν, καὶ ὁ μὴ συνάγων μετ᾽ ἐμοῦ σκορπίζει.
24 “जब नापाक रूह आदमी में से निकलती है तो सूखे मुक़ामों में आराम ढूँडती फिरती है, और जब नहीं पाती तो कहती है, 'मैं अपने उसी घर में लौट जाऊँगी जिससे निकली हूँ।
Ὅταν τὸ ἀκάθαρτον πνεῦμα ἐξέλθῃ ἀπὸ τοῦ ἀνθρώπου, διέρχεται δι᾽ ἀνύδρων τόπων ζητοῦν ἀνάπαυσιν. καὶ μὴ εὑρίσκον (τότε *NO*) λέγει· ὑποστρέψω εἰς τὸν οἶκόν μου ὅθεν ἐξῆλθον.
25 और आकर उसे झड़ा हुआ और आरास्ता पाती है।
καὶ ἐλθὸν εὑρίσκει (σχολάζοντα *O*) σεσαρωμένον καὶ κεκοσμημένον.
26 फिर जाकर और सात रूहें अपने से बुरी अपने साथ ले आती है और वो उसमें दाख़िल होकर वहाँ बसती हैं, और उस आदमी का पिछला हाल पहले से भी ख़राब हो जाता है।”
τότε πορεύεται καὶ παραλαμβάνει ἕτερα πνεύματα πονηρότερα ἑαυτοῦ ἑπτά, καὶ (εἰσελθόντα *NK(o)*) κατοικεῖ ἐκεῖ· καὶ γίνεται τὰ ἔσχατα τοῦ ἀνθρώπου ἐκείνου χείρονα τῶν πρώτων.
27 जब वो ये बातें कह रहा था तो ऐसा हुआ कि भीड़ में से एक 'औरत ने पुकार कर उससे कहा, मुबारिक़ है वो पेट जिसमें तू रहा और वो आंचल जो तू ने पिए।”
Ἐγένετο δὲ ἐν τῷ λέγειν αὐτὸν ταῦτα, ἐπάρασά τις φωνὴν γυνὴ ἐκ τοῦ ὄχλου εἶπεν αὐτῷ· μακαρία ἡ κοιλία ἡ βαστάσασά σε, καὶ μαστοὶ οὓς ἐθήλασας.
28 उसने कहा, “हाँ; मगर ज़्यादा मुबारिक़ वो है जो ख़ुदा का कलाम सुनते और उस पर 'अमल करते हैं।”
αὐτὸς δὲ εἶπεν· μενοῦν μακάριοι οἱ ἀκούοντες τὸν λόγον τοῦ θεοῦ καὶ φυλάσσοντες (αὐτόν. *k*)
29 जब बड़ी भीड़ जमा होती जाती थी तो वो कहने लगा, “इस ज़माने के लोग बुरे हैं, वो निशान तलब करते हैं; मगर यहून्ना के निशान के सिवा कोई और निशान उनको न दिया जाएगा।”
Τῶν δὲ ὄχλων ἐπαθροιζομένων ἤρξατο λέγειν· ἡ γενεὰ αὕτη (γενεὰ *no*) πονηρά ἐστιν. σημεῖον (ζητεῖ, *N(k)O*) καὶ σημεῖον οὐ δοθήσεται αὐτῇ εἰ μὴ τὸ σημεῖον Ἰωνᾶ (τοῦ προφήτου. *K*)
30 क्यूँकि जिस तरह यहून्ना निनवे के लोगों के लिए निशान ठहरा, उसी तरह इब्न — ए — आदम भी इस ज़माने के लोगों के लिए ठहरेगा।
καθὼς γὰρ ἐγένετο (ὁ *o*) Ἰωνᾶς τοῖς Νινευίταις σημεῖον, οὕτως ἔσται καὶ ὁ υἱὸς τοῦ ἀνθρώπου τῇ γενεᾷ ταύτῃ.
31 दक्खिन की मलिका इस ज़माने के आदमियों के साथ 'अदालत के दिन उठकर उनको मुजरिम ठहराएगी, क्यूँकि वो दुनिया के किनारे से सुलैमान की हिक्मत सुनने को आई, और देखो, यहाँ वो है जो सुलैमान से भी बड़ा है।
βασίλισσα νότου ἐγερθήσεται ἐν τῇ κρίσει μετὰ τῶν ἀνδρῶν τῆς γενεᾶς ταύτης καὶ κατακρινεῖ αὐτούς· ὅτι ἦλθεν ἐκ τῶν περάτων τῆς γῆς ἀκοῦσαι τὴν σοφίαν Σολομῶνος, καὶ ἰδοὺ πλεῖον Σολομῶνος ὧδε.
32 निनवे के लोग इस ज़माने के लोगों के साथ, 'अदालत के दिन खड़े होकर उनको मुजरिम ठहराएँगे; क्यूँकि उन्होंने यहून्ना के एलान पर तौबा कर ली, और देखो, यहाँ वो है जो यहून्ना से भी बड़ा है।
Ἄνδρες (Νινευῖται *N(k)O*) ἀναστήσονται ἐν τῇ κρίσει μετὰ τῆς γενεᾶς ταύτης καὶ κατακρινοῦσιν αὐτήν· ὅτι μετενόησαν εἰς τὸ κήρυγμα Ἰωνᾶ, καὶ ἰδοὺ πλεῖον Ἰωνᾶ ὧδε.
33 “कोई शख़्स चराग़ जला कर तहखाने में या पैमाने के नीचे नहीं रखता, बल्कि चराग़दान पर रखता है ताकि अन्दर जाने वालों को रोशनी दिखाई दे।
Οὐδεὶς (δὲ *k*) λύχνον ἅψας εἰς (κρύπτην *N(K)O*) τίθησιν οὐδὲ ὑπὸ τὸν μόδιον ἀλλ᾽ ἐπὶ τὴν λυχνίαν ἵνα οἱ εἰσπορευόμενοι τὸ (φῶς *N(k)O*) βλέπωσιν.
34 तेरे बदन का चराग़ तेरी आँख है, जब तेरी आँख दुरुस्त है तो तेरा सारा बदन भी रोशन है, और जब ख़राब है तो तेरा बदन भी तारीक है।
Ὁ λύχνος τοῦ σώματός ἐστιν ὁ ὀφθαλμός (σου. *no*) ὅταν (οὖν *K*) ὁ ὀφθαλμός σου ἁπλοῦς ᾖ, καὶ ὅλον τὸ σῶμά σου φωτεινόν ἐστιν· ἐπὰν δὲ πονηρὸς ᾖ, καὶ τὸ σῶμά σου σκοτεινόν.
35 पस देख, जो रोशनी तुझ में है तारीकी तो नहीं!
σκόπει οὖν μὴ τὸ φῶς τὸ ἐν σοὶ σκότος ἐστίν.
36 पस अगर तेरा सारा बदन रोशन हो और कोई हिस्सा तारीक न रहे, तो वो तमाम ऐसा रोशन होगा जैसा उस वक़्त होता है जब चराग़ अपने चमक से रोशन करता है।”
εἰ οὖν τὸ σῶμά σου ὅλον φωτεινὸν μὴ ἔχον μέρος τι σκοτεινόν, ἔσται φωτεινὸν ὅλον, ὡς ὅταν ὁ λύχνος τῇ ἀστραπῇ φωτίζῃ σε.
37 जो वो बात कर रहा था तो किसी फ़रीसी ने उसकी दा'वत की। पस वो अन्दर जाकर खाना खाने बैठा।
Ἐν δὲ τῷ λαλῆσαι (ἐρωτᾷ *N(k)O*) αὐτὸν Φαρισαῖος (τις *k*) ὅπως ἀριστήσῃ παρ᾽ αὐτῷ. εἰσελθὼν δὲ ἀνέπεσεν.
38 फ़रीसी ने ये देखकर ता'अज्जुब किया कि उसने खाने से पहले ग़ुस्ल नहीं किया।
ὁ δὲ Φαρισαῖος ἰδὼν ἐθαύμασεν ὅτι οὐ πρῶτον ἐβαπτίσθη πρὸ τοῦ ἀρίστου.
39 ख़ुदावन्द ने उससे कहा, “ऐ फ़रीसियों! तुम प्याले और तश्तरी को ऊपर से तो साफ़ करते हो, लेकिन तुम्हारे अन्दर लूट और बदी भरी है।”
Εἶπεν δὲ ὁ κύριος πρὸς αὐτόν· νῦν ὑμεῖς οἱ Φαρισαῖοι τὸ ἔξωθεν τοῦ ποτηρίου καὶ τοῦ πίνακος καθαρίζετε, τὸ δὲ ἔσωθεν ὑμῶν γέμει ἁρπαγῆς καὶ πονηρίας.
40 ऐ नादानों! जिसने बाहर को बनाया क्या उसने अन्दर को नहीं बनाया?
ἄφρονες, οὐχ ὁ ποιήσας τὸ ἔξωθεν καὶ τὸ ἔσωθεν ἐποίησεν;
41 हाँ! अन्दर की चीज़ें ख़ैरात कर दो, तो देखो, सब कुछ तुम्हारे लिए पाक होगा।
πλὴν τὰ ἐνόντα δότε ἐλεημοσύνην, καὶ ἰδοὺ πάντα καθαρὰ ὑμῖν ἐστιν.
42 “लेकिन ऐ फ़रीसियों! तुम पर अफ़सोस, कि पुदीने और सुदाब और हर एक तरकारी पर दसवाँ हिस्सा देते हो, और इन्साफ़ और ख़ुदा की मुहब्बत से ग़ाफ़िल रहते हो; लाज़िम था कि ये भी करते और वो भी न छोड़ते।
Ἀλλ᾽ οὐαὶ ὑμῖν τοῖς Φαρισαίοις, ὅτι ἀποδεκατοῦτε τὸ ἡδύοσμον καὶ τὸ πήγανον καὶ πᾶν λάχανον καὶ παρέρχεσθε τὴν κρίσιν καὶ τὴν ἀγάπην τοῦ θεοῦ· ταῦτα (δὲ *NO*) ἔδει ποιῆσαι, κἀκεῖνα κἀκεῖνα μὴ (παρεῖναι. *N(k)O*)
43 ऐ फ़रीसियों! तुम पर अफ़सोस, कि तुम 'इबादतख़ानों में आ'ला दर्जे की कुर्सियाँ और और बाज़ारों में सलाम चाहते हो।
Οὐαὶ ὑμῖν τοῖς Φαρισαίοις, ὅτι ἀγαπᾶτε τὴν πρωτοκαθεδρίαν ἐν ταῖς συναγωγαῖς καὶ τοὺς ἀσπασμοὺς ἐν ταῖς ἀγοραῖς.
44 तुम पर अफ़सोस! क्यूँकि तुम उन छिपी हुई क़ब्रों की तरह हो जिन पर आदमी चलते है, और उनको इस बात की ख़बर नहीं।”
Οὐαὶ ὑμῖν (γραμματεῖς καὶ Φαρισαῖοι ὑποκριταί, *K*) ὅτι ἐστὲ ὡς τὰ μνημεῖα τὰ ἄδηλα, καὶ οἱ ἄνθρωποι οἱ περιπατοῦντες ἐπάνω οὐκ οἴδασιν.
45 फिर शरा' के 'आलिमों में से एक ने जवाब में उससे कहा, “ऐ उस्ताद! इन बातों के कहने से तू हमें भी बे'इज़्ज़त करता है।”
Ἀποκριθεὶς δέ τις τῶν νομικῶν λέγει αὐτῷ· διδάσκαλε, ταῦτα λέγων καὶ ἡμᾶς ὑβρίζεις.
46 उसने कहा, “ऐ शरा' के 'आलिमों! तुम पर भी अफ़सोस, कि तुम ऐसे बोझ जिनको उठाना मुश्किल है, आदमियों पर लादते हो और तुम एक उंगली भी उन बोझों को नहीं लगाते।
Ὁ δὲ εἶπεν· καὶ ὑμῖν τοῖς νομικοῖς οὐαί, ὅτι φορτίζετε τοὺς ἀνθρώπους φορτία δυσβάστακτα καὶ αὐτοὶ ἑνὶ τῶν δακτύλων ὑμῶν οὐ προσψαύετε τοῖς φορτίοις.
47 तुम पर अफ़सोस, कि तुम तो नबियों की क़ब्रों को बनाते हो और तुम्हारे बाप — दादा ने उनको क़त्ल किया था।
Οὐαὶ ὑμῖν, ὅτι οἰκοδομεῖτε τὰ μνημεῖα τῶν προφητῶν, οἱ δὲ πατέρες ὑμῶν ἀπέκτειναν αὐτούς.
48 पस तुम गवाह हो और अपने बाप — दादा के कामों को पसन्द करते हो, क्यूँकि उन्होंने तो उनको क़त्ल किया था और तुम उनकी क़ब्रें बनाते हो।
ἄρα (μάρτυρές *N(k)O*) (ἐστε *no*) καὶ συνευδοκεῖτε τοῖς ἔργοις τῶν πατέρων ὑμῶν· ὅτι αὐτοὶ μὲν ἀπέκτειναν αὐτούς, ὑμεῖς δὲ οἰκοδομεῖτε (αὐτῶν *K*) (τὰ *k*) (μνημεῖα. *K*)
49 इसी लिए ख़ुदा की हिक्मत ने कहा है, मैं नबियों और रसूलों को उनके पास भेजूँगी, वो उनमें से कुछ को क़त्ल करेंगे और कुछ को सताएँगे।
διὰ τοῦτο καὶ ἡ σοφία τοῦ θεοῦ εἶπεν· ἀποστελῶ εἰς αὐτοὺς προφήτας καὶ ἀποστόλους. καὶ ἐξ αὐτῶν ἀποκτενοῦσιν καὶ (διώξουσιν *N(k)O*)
50 ताकि सब नबियों के ख़ून का जो बिना — ए — 'आलम से बहाया गया, इस ज़माने के लोगों से हिसाब किताब लिया जाए।
ἵνα ἐκζητηθῇ τὸ αἷμα πάντων τῶν προφητῶν τὸ (ἐκκεχυμένον *N(k)O*) ἀπὸ καταβολῆς κόσμου ἀπὸ τῆς γενεᾶς ταύτης,
51 हाबिल के ख़ून से लेकर उस ज़करियाह के ख़ून तक, जो क़ुर्बानगाह और मक़्दिस के बीच में हलाक हुआ। मैं तुम से सच कहता हूँ कि इसी ज़माने के लोगों से सब का हिसाब किताब लिया जाएगा।
ἀπὸ (τοῦ *k*) αἵματος Ἅβελ ἕως (τοῦ *k*) αἵματος Ζαχαρίου τοῦ ἀπολομένου μεταξὺ τοῦ θυσιαστηρίου καὶ τοῦ οἴκου. ναὶ λέγω ὑμῖν, ἐκζητηθήσεται ἀπὸ τῆς γενεᾶς ταύτης.
52 ऐ शरा' के 'आलिमों! तुम पर अफ़सोस, कि तुम ने मा'रिफ़त की कुंजी छीन ली, तुम ख़ुद भी दाख़िल न हुए और दाख़िल होने वालों को भी रोका।”
Οὐαὶ ὑμῖν τοῖς νομικοῖς, ὅτι ἤρατε τὴν κλεῖδα τῆς γνώσεως. αὐτοὶ οὐκ εἰσήλθατε καὶ τοὺς εἰσερχομένους ἐκωλύσατε.
53 जब वो वहाँ से निकला, तो आलिम और फ़रीसी उसे बे — तरह चिपटने और छेड़ने लगे ताकि वो बहुत से बातों का ज़िक्र करे,
(Κἀκεῖθεν Κἀκεῖθεν *no*) (ἐξελθόντος *N(k)O*) (δὲ *k*) αὐτοῦ (ταῦτα πρὸς αὐτούς *k*) ἤρξαντο οἱ γραμματεῖς καὶ οἱ Φαρισαῖοι δεινῶς ἐνέχειν καὶ ἀποστοματίζειν αὐτὸν περὶ πλειόνων
54 और उसकी घात में रहे ताकि उसके मुँह की कोई बात पकड़े।
ἐνεδρεύοντες αὐτὸν (καὶ *K*) (ζητοῦντες *KO*) θηρεῦσαί τι ἐκ τοῦ στόματος αὐτοῦ (ἵνα κατηγορήσωσιν αὐτοῦ. *KO*)

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