< अह 21 >

1 और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि 'हारून के बेटों से जो काहिन हैं कह कि अपने क़बीले के मुर्दे की वजह से कोई अपने आप को नजिस न कर ले।
وَقَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى: «أَوْصِ الْكَهَنَةَ أَبْنَاءَ هَرُونَ أَلّا يُنَجِّسَ أَحَدٌ مِنْهُمْ نَفْسَهُ بِلَمْسِ جُثَّةِ مَيْتٍ مِنْ قَوْمِهِ،١
2 अपने क़रीबी रिश्तेदारों की वजह से जैसे अपनी माँ की वजह से, और अपने बाप की वजह से, और अपने बेटे — बेटी की वजह से, और अपने भाई की वजह से,
إِلّا إِذَا كَانَ الْمَيْتُ أَقْرَبَ أَقْرِبَائِهِ إِلَيْهِ: أُمَّهُ وَأَبَاهُ وَابْنَهُ وَابْنَتَهُ وَأَخَاهُ،٢
3 और अपनी सगी कुँवारी बहन की वजह से जिसने शौहर न किया हो, इन की ख़ातिर वह अपने को नजिस कर सकता है।
وَأُخْتَهُ الْعَذْرَاءَ الَّتِي لَمْ تَتَزَوَّجْ، الْمُقِيمَةَ عَلَى مَقْرُبَةٍ مِنْهُ، فَمِنْ أَجْلِهَا يَتَنَجَّسُ،٣
4 चूँकि वह अपने लोगों में सरदार है, इसलिए वह अपने आप को ऐसा आलूदा न करे कि नापाक हो जाए।
لأَنَّ الْكَاهِنَ هُوَ رَئِيسٌ فِي قَوْمِهِ، وَعَلَيْهِ أَلّا يُنَجِّسَ نَفْسَهُ شَعَائِرِيًّا كَغَيْرِهِ مِنَ النَّاسِ الْعَادِيِّينَ.٤
5 वह न अपने सिर उनकी ख़ातिर बीच से घुटवाएँ और न अपनी दाढ़ी के कोने मुण्डवाएँ, और न अपने को ज़ख़्मी करें।
وَلا يَحْلِقَ الْكَاهِنُ شَعْرَهُ قَرْعَةً، أَوْ جَانِبَيْ لِحْيَتِهِ، أَوْ يَجْرَحَ جَسَدَهُ حُزْناً عَلَى مَيْتٍ.٥
6 वह अपने ख़ुदा के लिए पाक बने रहें और अपने ख़ुदा के नाम को बेहुरमत न करें, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द की आतिशीन क़ुर्बानियाँ जो उनके ख़ुदा की गिज़ा है पेश करते हैं; इसलिए वह पाक रहें।
وَعَلَى الْكَهَنَةِ أَنْ يَكُونُوا مَفْرُوزِينَ لإِلَهِهِمْ. لَا يُدَنِّسُوا اسْمَهُ لأَنَّهُمْ يُقَرِّبُونَ وَقَائِدَ الرَّبِّ كَأَنَّهَا طَعَامٌ يُقَدِّمُونَهُ لإِلَهِهِمْ فَيَكُونُ مُقَدَّساً.٦
7 वह किसी फ़ाहिशा या नापाक 'औरत से ब्याह न करें, और न उस 'औरत से ब्याह करें जिसे उसके शौहर ने तलाक़ दी हो; क्यूँकि काहिन अपने ख़ुदा के लिए पाक है।
وَلا يَتَزَوَّجُوا امْرَأَةً زَانِيَةً أَوْ مِنْ غَيْرِ سِبْطِهِمْ، أَوِ امْرَأَةً مُطَلَّقَةً مِنْ زَوْجِهَا، لأَنَّهُمْ مُقَدَّسُونَ لإِلَهِهِمْ،٧
8 तब तू काहिन को पाक जानना क्यूँकि वह तेरे ख़ुदा की गिज़ा पेश करता है; इसलिए वह तेरी नज़र में पाक ठहरे, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द जो तुम को पाक करता हूँ क़ुद्दूस हूँ।
لأَنَّ الْكَاهِنَ مُفْرَزٌ لِيُقَدِّمَ ذَبَائِحَ لإِلَهِكَ فَهُوَ مُقَدَّسٌ عِنْدَكَ، لأَنِّي أَنَا الرَّبُّ مُقَدِّسُكُمْ، قُدُّوسٌ.٨
9 और अगर काहिन की बेटी फ़ाहिशा बनकर अपने आप को नापाक करे तो वह अपने बाप को नापाक ठहराती है, वह 'औरत आग में जलाई जाए।
وَإذَا زَنَتِ ابْنَةُ الْكَاهِنِ فَيَجِبُ حَرْقُهَا لأَنَّهَا دَنَّسَتْ قَدَاسَةَ أَبِيهَا.٩
10 और वह जो अपने भाइयों के बीच सरदार काहिन हो, जिसके सिर पर मसह करने का तेल डाला गया और जो पाक लिबास पहनने के लिए मख़्सूस किया गया, वह अपने सिर के बाल बिखरने न दे और अपने कपड़े न फाड़े।
وَالْكَاهِنُ الأَعْظَمُ بَيْنَ إِخْوَتِهِ، الَّذِي سُكِبَ عَلَى رَأْسِهِ دُهْنُ الْمَسْحَةِ، وَتَكَرَّسَ لِيَرْتَدِيَ الثِّيَابَ الْمُقَدَّسَةَ، لَا يَكْشِفُ عَنْ رَأْسِهِ وَلا يَشُقُّ ثِيَابَهُ حِدَاداً عَلَى مَيْتٍ.١٠
11 वह किसी मुर्दे के पास न जाए, और न अपने बाप या माँ की ख़ातिर अपने आप को नजिस करे।
وَلْيَتَفَادَ الدُّخُولَ إِلَى مَكَانٍ فِيهِ جُثَّةُ مَيْتٍ. وَلا يُنَجِّسْ نَفْسَهُ بِلَمْسِ جُثْمَانِ مَيْتٍ، حَتَّى لَوْ كَانَ ذَلِكَ جُثْمَانَ أَبِيهِ أَوْ أُمِّهِ.١١
12 और वह हैकल के बाहर भी न निकले और न अपने ख़ुदा के हैकल को बेहुरमत करे, क्यूँकि उसके ख़ुदा के मसह करने के तेल का ताज उस पर है; मैं ख़ुदावन्द हूँ।
لَا يُفَارِقِ الْمَقْدِسَ فِي أَثْنَاءِ خِدْمَتِهِ، لِئَلّا يُدَنِّسَ مَقْدِسَ إِلَهِهِ، لأَنَّهُ قَدْ تَمَّ تَكْرِيسُهُ بِسَكْبِ دُهْنِ مَسْحَةِ إِلَهِهِ عَلَيْهِ، فَأَنَا الرَّبُّ.١٢
13 और वह कुँवारी 'औरत से ब्याह करे;
لِيَتَزَوَّجْ مِنْ عَذْرَاءَ،١٣
14 जो बेवा या मुतल्लक़ा या नापाक 'औरत या फ़ाहिशा हो, उनसे वह ब्याह न करे बल्कि वह अपनी ही क़ौम की कुँवारी को ब्याह ले।
لَا مِنْ أَرْمَلَةٍ، وَلا مُطَلَّقَةٍ، وَلا زَانِيَةٍ مُدَنَّسَةٍ، بَلْ يَتَزَوَّجُ عَذْرَاءَ مِنْ سِبْطِهِ.١٤
15 और वह अपने तुख़्म को अपनी क़ौम में नापाक न ठहराए, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द हूँ जो उसे पाक करता हूँ।
فَلا يُدَنِّسُ نَسْلَهُ بَيْنَ شَعْبِهِ، لأَنِّي أَنَا الرَّبُّ الَّذِي أُقَدِّسُهُ».١٥
16 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि,
وَقَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى:١٦
17 “हारून से कह दे कि तेरी नसल में नसल — दर — नसल अगर कोई किसी तरह का 'ऐब रखता हो, तो वह अपने ख़ुदा की गिज़ा पेश करने को नज़दीक न आए;
«قُلْ لِهَرُونَ: لَا يُقَرِّبْ رَجُلٌ مِنْ نَسْلِكَ فِيهِ عَاهَةٌ ذَبَائِحَ لإِلَهِهِ عَلَى مَدَى أَجْيَالِهِمْ،١٧
18 चाहे कोई हो जिसमें 'ऐब हो वह नज़दीक न आए चाहे वह अन्धा हो या लंगड़ा, या नकचपटा हो, या ज़ाइद — उल — 'आज़ा,
فَكُلُّ رَجُلٍ مُصَابٍ بِعَاهَةٍ لَا يَتَقَدَّمْ سَوَاءٌ أَكَانَ أَعْمَى أَمْ أَعْرَجَ أَمْ مُشَوَّهَ الْوَجْهِ أَمْ فِيهِ عُضْوٌ زَائِدٌ،١٨
19 या उसका पाँव टूटा हो, या हाथ टूटा हो
وَلا مَكْسُورَ الْيَدِ أَوِ الرِّجْلِ،١٩
20 या वह कुबड़ा या बौना हो, या उसकी आँख में कुछ नुक्स हो, या खुजली भरा हो, या उसके पपड़ियाँ हों, या उसके खुसिए पिचके हों।
وَلا أَحْدَبَ وَلا قَزْمَ، أَوْ مَنْ فِي عَيْنِهِ بَيَاضٌ، وَلا الأَجْرَبَ وَلا الأَكْلَفَ وَلا مَرْضُوضَ الْخِصْيَةِ.٢٠
21 हारून काहिन की नसल में से कोई जो 'ऐबदार हो ख़ुदावन्द की आतिशी क़ुर्बानियाँ पेश करने को नज़दीक न आए, वह 'ऐबदार है; वह हरगिज़ अपने ख़ुदा की ग़िज़ा पेश करने को पास न आए।
يُحَظَرُ عَلَى كُلِّ رَجُلٍ فِيهِ عَاهَةٌ مِنْ نَسْلِ هرُونَ الْكَاهِنِ أَنْ يَتَقَدَّمَ لِيُقَرِّبَ ذَبَائِحَ الرَّبِّ،٢١
22 वह अपने ख़ुदा की बहुत ही मुक़द्दस और पाक दोनों तरह की रोटी खाए,
وَلَكِنَّهُ يَأْكُلُ مِنْ ذَبَائِحِ إِلَهِهِ، الْمُقَدَّمَةِ فِي قُدْسِ الأَقْدَاسِ وَالْقُدْسِ.٢٢
23 लेकिन पर्दे के अन्दर दाख़िल न हो, न मज़बह के पास आए इसलिए कि वह 'ऐबदार है; कहीं ऐसा न हो कि वह मेरे पाक मक़ामों को बे — हुरमत करे, क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द उनका पाक करने वाला हूँ।”
غَيْرَ أَنَّهُ لَا يَدْخُلُ إِلَى مَا وَرَاءِ الحِجَابِ، وَلا يَقْتَرِبُ مِنَ الْمَذْبَحِ، لأَنَّ فِيهِ عَيْباً، لِئَلّا يُدَنِّسَ مَقْدِسِي، لأَنَّنِي أَنَا الرَّبُّ الَّذِي أُقَدِّسُهُمْ».٢٣
24 तब मूसा ने हारून और उसके बेटों और सब बनी — इस्राईल से यह बातें कहीं।
وَهَكَذَا أَبْلَغَ مُوسَى هَذِهِ الْوَصَايَا لِهَرُونَ وَأَبْنَائِهِ وَسَائِرِ بَنِي إِسْرَائِيلَ.٢٤

< अह 21 >